Karva Chauth Katha: जानिए यह पवित्र व्रत कैसे और क्यों मनाया जाता है?

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Karva Chauth Katha: जानिए यह पवित्र व्रत कैसे और क्यों मनाया जाता है?

Karva Chauth Vrat Katha: क्या आपने कभी सोचा है कि करवा चौथ का नाम सुनते ही हर सुहागिन के चेहरे पर वो खास-सी चमक क्यों आ जाती है? आखिर ऐसा क्या है इस व्रत में जो इसे सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि प्रेम, आस्था और समर्पण का प्रतीक बना देता है? इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूर्योदय से लेकर चंद्रमा के दर्शन तक निर्जला उपवास रखती हैं — न पानी, न अन्न, बस दिल में भक्ति और आँखों में उम्मीद। लेकिन क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि इस व्रत की शुरुआत कैसे हुई थी? इसके पीछे कौन-सी कहानी छिपी है जो इसे इतना पवित्र और भावनात्मक बनाती है? आइए, जानते हैं करवा चौथ व्रत कथा के बारे में विस्तार से।

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करवा चौथ व्रत कथा (Karva Chauth Vrat Katha)

बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। 

शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो

उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है।

सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

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करवा चौथ का अर्थ और महत्व

‘करवा चौथ’ दो शब्दों से मिलकर बना है — करवा यानी मिट्टी का बर्तन और चौथ यानी चौथा दिन। यह व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी और चंद्रदेव की पूजा करती हैं। माना जाता है कि करवा चौथ का व्रत रखने से पति की आयु बढ़ती है और वैवाहिक जीवन में सुख, समृद्धि और प्रेम बना रहता है।

पुराणों के अनुसार, इस व्रत का उल्लेख महाभारत काल में भी मिलता है। द्रौपदी ने भी एक बार अर्जुन की सुरक्षा के लिए इस व्रत को किया था। यह कथा महिलाओं के अटूट विश्वास और उनके पति के प्रति समर्पण की प्रतीक मानी जाती है।

करवा चौथ व्रत के पीछे का संदेश (Karva Chauth Vrat Message)

करवा चौथ की कथा हमें यह सिखाती है कि विश्वास और समर्पण से असंभव भी संभव हो सकता है। यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में केवल परंपरा नहीं जोड़ता, बल्कि उनके बीच भावनात्मक जुड़ाव को भी और गहरा करता है।

आज के समय में भी, जब जीवन तेज़ रफ्तार और व्यस्त हो गया है, यह व्रत एक ऐसा अवसर बन जाता है जब पति-पत्नी साथ बैठकर अपने रिश्ते की नींव को फिर से मजबूत करते हैं।

करवा चौथ की पूजा विधि (Karva Chauth Ki Pooja Vidhi)

करवा चौथ की पूजा में न केवल व्रत का महत्व है, बल्कि विधि-विधान से पूजा करना भी उतना ही आवश्यक होता है। आइए जानते हैं कि यह पूजा कैसे की जाती है —

  1. सूर्योदय से पहले सरगी का सेवन करें – सुबह सास अपनी बहू को ‘सरगी’ देती हैं जिसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे और पारंपरिक व्यंजन होते हैं। इसे खाने के बाद व्रत की शुरुआत होती है।

  2. दिनभर निर्जला व्रत रखें – सूर्योदय से लेकर चंद्रमा के दर्शन तक महिलाएं पानी तक नहीं पीतीं।

  3. शाम को करवा और चौथ माता की पूजा करें – शाम को महिलाएं सज-धजकर माता पार्वती, भगवान शिव, गणेश जी और चंद्रदेव की पूजा करती हैं। करवा में जल भरकर पूजा की जाती है।

  4. करवा चौथ की व्रत कथा सुनना आवश्यक है – पूजा के दौरान करवा चौथ की व्रत कथा सुनना शुभ माना जाता है।

  5. चंद्रमा को अर्घ्य देना – जब चंद्रमा दिखाई देता है, तो महिलाएं छलनी से चंद्रमा को देखती हैं, फिर अपने पति को देखती हैं और उनके हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं।

करवा चौथ सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में निहित उस भाव का प्रतीक है, जो प्रेम, विश्वास और समर्पण से भरा हुआ है। चाहे वीरावती की कथा हो या सावित्री का साहस — दोनों कहानियाँ हमें यही सिखाती हैं कि सच्चा प्रेम किसी सीमा या परिस्थिति से नहीं बंधता।

आज भी जब कोई पत्नी चाँद की पहली झलक देखकर अपने पति के लिए प्रार्थना करती है, तो वह केवल एक रस्म नहीं निभा रही होती — वह सदियों पुरानी उस परंपरा को आगे बढ़ा रही होती है जो रिश्तों को प्रेम, आस्था और सम्मान से जोड़ती है।

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