कुंडली में संतान योग

Thu, Feb 21, 2019
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कुंडली में संतान योग

जैसे विवाह के बिना जीवन अधूरा माना जाता है, वैसे ही संतान के बिना परिवार भी अधूरा होता है। बच्चों की किलकारियों से घर गुलजार हो जाता है। विवाह के बाद, संतान प्राप्ति की इच्छा स्वाभाविक रूप से मन में आती है। कुछ दंपतियों को जल्दी ही संतान सुख प्राप्त होता है, तो कुछ को थोड़ा इंतजार करना पड़ता है। कई बार, लाख कोशिशों के बाद भी संतान प्राप्ति में बाधाएं आती हैं।

ज्योतिष और संतान प्राप्ति

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में ग्रहों की स्थिति और उनकी दशाओं से संतान प्राप्ति की संभावना का अनुमान लगाया जा सकता है।

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ग्रहों की शुभ दशाएं जो संतान योग बनाती हैं

एस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जब पंचम पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान योग बनने की संभावनाएं प्रबल होती हैं। जब जातक की कुंडली में शुक्र अच्छा होता है तो वह गर्भ में शिशु कन्सीव होने के लिये एक शुभ योग बनाता है। अब गर्भ में शिशु स्वस्थ रहे और स्वस्थ ही वह जन्म ले इसके लिये बृहस्पति का शुभ होना मंगलकारी माना जाता है। लग्नेश एवं पंचमेश का संबंध भी संतानोत्पत्ति के लिये अच्छा योग बनाता है। बृहस्पति का लग्न में या भाग्य में या एकादश में बैठना और महादशा में चलना भी संतान उत्पति का प्रबल योग बनाता है। जब शुक्र पंचम को देख रहा हो या वह पंचमेश में हो तो इन परिस्थितियों में संतान पैदा होने की तमाम संभावनाएं जन्म लेती हैं। इस प्रकार यदि कोई जातक संतान को लेकर चिंतित है तो उसे स्वास्थ्य जांच के साथ-साथ अपनी कुंडली का अध्ययन विद्वान ज्योतिषाचार्यों से अवश्य करवाना चाहिये और जानना चाहिये कि कहीं ग्रहों की दशा प्रतिकूल तो नहीं। कहीं संतान उत्पति में देरी का कारण ग्रहों की यह प्रतिकूल दशा तो नहीं। 

  • पंचम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि: पंचम भाव संतान का घर माना जाता है। यदि इस भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान प्राप्ति की संभावनाएं प्रबल होती हैं।

  • शुक्र ग्रह: शुक्र ग्रह प्रजनन का कारक माना जाता है। यदि कुंडली में शुक्र मजबूत हो तो गर्भधारण में सफलता मिलती है।

  • बृहस्पति ग्रह: बृहस्पति ग्रह को पितृत्व का कारक माना जाता है। यदि बृहस्पति मजबूत हो तो स्वस्थ संतान प्राप्ति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

  • लग्नेश और पंचमेश का संबंध: लग्नेश और पंचमेश का संबंध भी संतान प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है।

  • बृहस्पति की महादशा: यदि बृहस्पति लग्न, भाग्य या एकादश भाव में स्थित हो और महादशा में चल रहा हो तो यह भी संतान प्राप्ति का प्रबल योग बनाता है।

  • शुक्र पंचम भाव में: यदि शुक्र पंचम भाव को देख रहा हो या पंचमेश में हो तो संतान प्राप्ति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

ग्रहों की अशुभ दशाएं जो संतान प्राप्ति में विघ्न डालती हैं

ग्रहों के शुभ योग से संतान उत्पति की संभावनाएं तो पैदा होती हैं लेकिन यदि ग्रहों के इस शुभ योग पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी परिस्थितियों में संतान उत्पति में में विलंब हो सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि पंचम स्थान पर राहू की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में संतान को हानि पहुंच सकती है। यहां तक बच्चे के लिये प्राणघातक योग भी बन जाता है अन्यथा बाधा तो पहुंचती ही है। संतान उत्पति का कारक घर पंचम है यदि इस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ती है तो इससे नकारात्मक योग बनता है। इससे संतान होने में बाधा होती है। कभी कभी संतान मृत पैदा होती है या फिर पैदा होने के कुछ समय बाद उसकी मौत हो जाती है तो उसका कारण भी ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यही पाप ग्रह होते हैं।

  • पंचम भाव पर राहु की दृष्टि: पंचम भाव पर राहु की दृष्टि होने से संतान को हानि हो सकती है।

  • पाप ग्रहों की दृष्टि: पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि संतान प्राप्ति में बाधा डाल सकती है।

  • दुर्बल ग्रह: यदि कुंडली में संतान कारक ग्रह कमजोर हों तो संतान प्राप्ति में देरी हो सकती है या संतान प्राप्ति में बाधाएं आ सकती हैं।

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✍️By- टीम एस्ट्रोयोगी

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