
Narak Chaturdashi 2025 Puja Vidhi: क्या आपने कभी सोचा है कि दीपावली सिर्फ एक दिन का त्योहार क्यों नहीं है और यह पांच दिनों तक क्यों मनाई जाती है? भारत में दीपावली की यह परंपरा सदियों पुरानी है, जिसमें हर दिन का अपना अलग महत्व होता है। इन पांच दिनों में नरक चतुर्दशी का दिन सबसे खास क्यों माना जाता है?
नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली या रूप चौदस भी कहा जाता है। क्या आप जानते हैं कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था? इसी कारण यह दिन अंधकार और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बन गया है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्यों है?
क्या आप जानना चाहते हैं कि इस दिन क्या खास पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं? नरक चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान, यम दीपदान और श्रीकृष्ण, यमराज व देवी लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि कैसे आती है? जानिए पूरी विधि और महत्व ताकि आपका त्योहार और भी शुभ हो।
नरक चतुर्दशी की पूजा दो भागों में की जाती है — सुबह का अभ्यंग स्नान और शाम का यम दीपदान। दोनों का अपना अलग धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।
इस दिन का आरंभ पवित्र स्नान से होता है, जिसे अभ्यंग स्नान कहा जाता है। यह स्नान पापों का नाश करता है और शरीर को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है।
पूजा विधि इस प्रकार है:
ब्रह्म मुहूर्त में यानी सूर्योदय से पहले उठें।
शरीर पर तिल या सरसों के तेल का लेप करें। इससे न केवल शरीर की शुद्धि होती है बल्कि यह आयु वृद्धि और रोगों से रक्षा करता है।
शरीर पर उबटन (चंदन, हल्दी, बेसन, या गुलाबजल) लगाएं।
इसके बाद गंगाजल या गंगाजल मिले जल से स्नान करें।
स्नान के पश्चात सूर्य देव को अर्घ्य दें और उनके समक्ष दिनभर के लिए ऊर्जा और शांति की प्रार्थना करें।
स्नान के बाद घर की साफ-सफाई करें और दीपावली की सजावट शुरू करें।
यह माना जाता है कि जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान करता है, वह नरक के भय से मुक्त हो जाता है और उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
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नरक चतुर्दशी की शाम का समय विशेष रूप से यम दीपदान के लिए शुभ माना जाता है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य यमराज को प्रसन्न कर अकाल मृत्यु के भय को दूर करना होता है।
पूजन की संपूर्ण विधि:
सूर्यास्त के बाद घर की सफाई कर पवित्र स्थान पर दीपक जलाएं।
घर के मुख्य द्वार के बाहर एक छोटी सी अनाज की ढेरी (अक्सर धान या गेहूं की) बनाएं।
गेहूं के आटे से एक चौमुखी दीपक बनाएं, जिसमें चार बत्तियाँ लगाएं और उसमें सरसों का तेल डालें।
दीपक के नीचे काले तिल और धान का लावा रखें।
दीपक को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रखें, क्योंकि यह दिशा यमराज की मानी जाती है।
अब दीपक जलाकर यमराज के नाम से दीपदान करें और प्रार्थना करें –
“मृत्यु के भय से रक्षा करें, दीर्घायु और सुखमय जीवन प्रदान करें।”
इसके बाद घर के भीतर श्रीकृष्ण और देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
इस दिन देवी-देवताओं को ताजे फूल, मिठाई, धूप और दीप अर्पित करें। परिवार सहित आरती करें और प्रसाद का वितरण करें।
नरक चतुर्दशी की शाम को घर के बाहर दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना गया है। मुख्य द्वार के दोनों ओर, आंगन, बालकनी और तुलसी के पास दीपक जलाएं। यह दीपक न केवल यमराज को समर्पित होता है, बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक भी है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन दीपक जलाता है, उसके घर में कभी अकाल मृत्यु नहीं होती और उसके पूर्वजों को भी मोक्ष प्राप्त होता है।
नरक चतुर्दशी की शाम को श्रीकृष्ण और देवी लक्ष्मी की पूजा का विशेष विधान है।
पूजा विधि इस प्रकार है:
सबसे पहले पूजा स्थान को साफ करें और एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं।
उस पर श्रीकृष्ण और देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
दीपक, धूप, चंदन, फूल और नैवेद्य अर्पित करें।
श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन से सारे अंधकार और कष्टों का नाश करें।
देवी लक्ष्मी से निवेदन करें कि वे घर में धन, वैभव और सौभाग्य का वास करें।
पूजा के बाद आरती करें और परिवार के सभी सदस्य दीपक लेकर घर के हर कोने में रोशनी फैलाएं।
नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी है। तिल या सरसों का तेल त्वचा से विषैले तत्वों को बाहर निकालता है, जिससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। सर्दी के मौसम की शुरुआत में यह स्नान शरीर को गर्म रखता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। गंगाजल के प्रयोग से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है, जिससे दिनभर का कार्य शुभ फलदायी होता है।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है। जब इस दिशा में दीपक जलाया जाता है, तो यह प्रतीकात्मक रूप से मृत्यु और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है। काले तिल और धान का लावा यमराज को प्रिय होते हैं, इसलिए इन्हें दीपक के नीचे रखा जाता है। इस विधि से व्यक्ति के जीवन में दीर्घायु, सुख और स्थिरता आती है।
इस दिन दान-पुण्य करना अत्यंत शुभ माना जाता है। तिल, गुड़, वस्त्र और अनाज का दान करें।
अपने घर की दक्षिण दिशा में रोशनी अवश्य करें।
गरीबों को भोजन या मिठाई बांटें, इससे देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
शाम को परिवार सहित दीपदान और आरती में भाग लें, इससे घर में सकारात्मकता बढ़ती है।
घर के मुख्य द्वार को खुले रखें ताकि शुभ ऊर्जा का प्रवेश हो सके।
कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह नरक में नहीं जाता। इसीलिए इस दिन स्नान के बाद नए वस्त्र पहनना और पूजा में भाग लेना विशेष फलदायी माना गया है। यह दिन दीपावली की शुरुआत का संकेत देता है और घर में प्रकाश, प्रेम और समृद्धि का माहौल बनाता है।
नरक चतुर्दशी सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन को शुद्धता, अनुशासन और आध्यात्मिकता की ओर ले जाने वाला दिन है। सुबह के अभ्यंग स्नान से शरीर और मन की शुद्धि होती है, जबकि शाम का यम दीपदान हमें मृत्यु भय से मुक्ति और दीर्घायु का वरदान देता है। इस दिन श्रद्धा, भक्ति और प्रेम से की गई पूजा हमारे जीवन में प्रकाश, शांति और समृद्धि का संचार करती है। इसलिए, इस नरक चतुर्दशी पर पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करें और अपने घर को दिव्यता की रोशनी से आलोकित करें।
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