
Rath yatra: पुरी, ओडिशा की रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि श्रद्धा, आस्था और आत्मा की मुक्ति का पर्व है। हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ गुंडिचा मंदिर की ओर रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं। इस यात्रा में भाग लेना, रथ को खींचना या मात्र दर्शन करना भी अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। स्कंद पुराण जैसे ग्रंथों में इसका उल्लेख है कि इस यात्रा में भाग लेने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
लेकिन यदि आपने यह यात्रा शुरू की हो और किसी कारणवश आपको इसे बीच में छोड़ना पड़ जाए—तो क्या कोई दोष लगता है? क्या इससे पुण्य में कमी आती है? या फिर भगवान नाराज़ होते हैं?
कई लोग सोचते हैं कि यदि किसी धार्मिक कार्य को अधूरा छोड़ दिया जाए, तो उसका कोई नकारात्मक असर जरूर होता है। लेकिन जब बात भगवान जगन्नाथ जैसे करुणामय देव की हो, तो स्थिति थोड़ी अलग होती है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, यदि कोई भक्त पूरी श्रद्धा से यात्रा में शामिल होता है और फिर किसी अनपेक्षित परिस्थिति, जैसे स्वास्थ्य समस्या, पारिवारिक आपातकाल, या अन्य मजबूरी के कारण यात्रा पूरी नहीं कर पाता, तो उसे दोषी नहीं माना जाता।
जगन्नाथ भगवान की महिमा ही ऐसी है कि वे भक्त के भाव को सबसे अधिक महत्व देते हैं, न कि मात्र उसकी उपस्थिति को। इसलिए यदि आप आस्था, श्रद्धा और समर्पण के साथ यात्रा में शामिल हुए हैं, तो अधूरी यात्रा भी पुण्यदायी मानी जाती है।
यदि आपने यात्रा में रथ खींचा, दर्शन किए या भगवान के नाम का जाप किया—तो ये सभी कर्म पुण्यदायी हैं। हां, यदि पूरी यात्रा कर लेते, तो अधिक पुण्य मिलता। लेकिन मजबूरीवश अधूरी यात्रा से पुण्य में थोड़ी कमी हो सकती है, पर कोई बड़ा 'दोष' नहीं लगता।
ज्योतिष शास्त्र में किसी भी शुभ कार्य को अधूरा छोड़ने को साधारणतः मानसिक बेचैनी, कार्य में विलंब या कभी-कभी असंतोष का कारण माना जाता है। लेकिन इसका प्रभाव व्यक्ति की कुंडली और ग्रह दशा पर भी निर्भर करता है।
अगर आपकी कुंडली में कुछ ऐसे ग्रहयोग हैं जो अचानक यात्रा में रुकावट डालते हैं—जैसे राहु-केतु की दशा, चंद्र की अशुभ स्थिति या आठवें भाव में ग्रहों की उपस्थिति—तो यह माना जा सकता है कि बाधा आपकी ग्रह दशा के कारण आई है, न कि आपकी श्रद्धा की कमी से।
इसलिए ऐसे मामलों में आत्मग्लानि या भय का कोई स्थान नहीं है।
यह भी पढ़ें: साल 2025 में मिथुन में गुरु का अस्त होना: क्या होगा आपकी राशि पर असर?
स्कंद पुराण और अन्य पुराणों में यह बताया गया है कि जो भक्त भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में भाग लेते हैं और गुंडिचा मंदिर तक भगवान के साथ जाते हैं, वे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।
लेकिन कहीं भी यह नहीं लिखा है कि जो व्यक्ति यात्रा अधूरी छोड़ दे, उसे कोई विशेष दंड या दोष लगेगा। यह पूरी तरह से व्यक्ति की नियत, परिस्थिति और भावनाओं पर आधारित है।
अगर किसी कारणवश आपको यात्रा छोड़नी पड़ गई है और आपके मन में किसी प्रकार की ग्लानि या चिंता है, तो आप कुछ सरल उपायों द्वारा संतुलन बना सकते हैं:
अपने मन से भगवान जगन्नाथ को अपनी परिस्थिति समझाएं। कहें कि आपने पूरी श्रद्धा से यात्रा शुरू की थी लेकिन मजबूरीवश पूरी नहीं कर पाए।
भगवान के नाम का स्मरण किसी भी दोष को दूर करता है। यह मंत्र विशेष रूप से प्रभावशाली और शुभफलदायी माना जाता है।
अपने मन में यह भाव रखें कि जब भी अगली बार अवसर मिले, आप पूरी यात्रा करने का प्रयास करेंगे।
गरीबों को भोजन कराना, रथ यात्रा से जुड़ी वस्तुओं का दान देना (जैसे चप्पल, जल, फल)—ये सभी कार्य अधूरी यात्रा के प्रभाव को संतुलित करते हैं।
हां, यदि अगली बार आपको फिर से अवसर मिले, तो यात्रा को फिर से पूरा कर सकते हैं। इससे मन को संतोष मिलेगा और आपकी श्रद्धा और दृढ़ होगी। साथ ही, पिछली अधूरी यात्रा का मानसिक असर भी कम होगा।
भले ही धार्मिक या ज्योतिषीय दृष्टिकोण से कोई बड़ा दोष न हो, लेकिन कई बार व्यक्ति को मानसिक बेचैनी महसूस होती है—"काश पूरी यात्रा कर पाता!" ऐसे में ऊपर बताए गए उपाय और मंत्र जाप करने से शांति मिलती है।
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के रथ को स्पर्श करना बहुत पुण्यदायी माना गया है। यह स्पर्श आत्मिक उन्नति का माध्यम बनता है। इसलिए यदि आपने यात्रा के दौरान रथ को छुआ है—even if for a moment—तो वह भी बहुत बड़ा पुण्य है।
यह भी पढ़ें: राम रक्षा स्तोत्र का पाठ क्यों करें? जानें राम रक्षा स्तोत्र के फायदे
जगन्नाथ जी की यात्रा पुरी से गुंडिचा मंदिर तक होती है। इस दौरान रथ यात्रा 9 दिन चलती है। भगवान 7 दिन तक गुंडिचा मंदिर में विश्राम करते हैं और फिर वापसी यात्रा (बहुड़ा यात्रा) के माध्यम से पुरी लौटते हैं। यदि आपने यात्रा का कोई भी भाग अनुभव किया है, तो वह आत्मिक रूप से लाभकारी है।
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा के जागरण और शुद्धि की प्रक्रिया है। यदि आपने किसी भी रूप में भगवान की इस लीला में भाग लिया है—तो वह आपके लिए कल्याणकारी है।
बीच में यात्रा छोड़नी पड़े तो ग्लानि न करें, बल्कि अपनी आस्था को बनाए रखें। ईश्वर भाव के भूखे होते हैं, क्रिया के नहीं।
अगर आप अपनी कुंडली के आधार पर किसी महत्वपूर्ण कार्य को करने के लिए शुभ समय जानना चाहते हैं तो आप एस्ट्रोयोगी के विशेषज्ञ ज्योतिषियों से संपर्क कर सकते हैं। आपके लिए पहली कॉल होगी बिलकुल फ्री।