भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है और कहा भी क्यों न जाये आखिर कबीर, रैदास, सूर, तुलसी इसी युग की तो देन हैं जिन्होंने भगवान के सगुण और निर्गुण रूप को हर व्यक्ति तक पंहुचाया। यही वो दौर था जब इन संत कवियों ने मानवीय मूल्यों की पक्षधरता की और जन जन में भक्ति का संचार किया। इन्हीं में से एक थे संत रविदास। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं।
वैसे तो संत रविदास के जन्म की प्रामाणिक तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं लेकिन अधिकतर विद्वान सन् 1398 में माघ शुक्ल पूर्णिमा को उनकी जन्म तिथि मानते हैं। कुछ विद्वान इस तिथि को सन् 1388 की तिथि बताते हैं। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि हर साल माघ पूर्णिमा को संत रविदास की जयंती मनाई जाती है। कहते हैं माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। रविदास चर्मकार कुल में पैदा हुए थे इस कारण आजीविका के लिये भी इन्होंने अपने पैतृक कार्य में ही मन लगाया। ये जूते इतनी लगन और मेहनत से बनाते मानों स्वयं ईश्वर के लिये बना रहे हों। उस दौर के संतों की खास बात यही थी कि वे घर बार और सामाजिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़े बिना ही सहज भक्ति की और अग्रसर हुए और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए ही भक्ति का मार्ग अपनाया।
संत रविदास की अपने काम के प्रति प्रतिबद्धता इस उदाहरण से समझी जा सकती है एक बार की बात है कि रविदास अपने काम में लीन थे कि उनसे किसी ने गंगा स्नान के लिये साथ चलने का आग्रह किया। संत जी ने कहा कि मुझे किसी को जूते बनाकर देने हैं यदि आपके साथ चला तो समय पर काम पूरा नहीं होगा और मेरा वचन झूठा पड़ जायेगा। और फिर मन सच्चा हो तो कठौति में भी गंगा होती है आप ही जायें मुझे फुर्सत नहीं। मान्यता है कि यहीं से यह कहावत जन्मी कि मन चंगा तो कठौति में गंगा।
संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जागरूकता लाने का प्रयास भी किया। सही मायनों में देखा जाये तो मानवतावादी मूल्यों की नींव संत रविदास ने रखी। वे समाज में फैली जातिगत ऊंच-नीच के धुर विरोधी थे और कहते थे कि सभी एक ईश्वर की संतान हैं जन्म से कोई भी जात लेकर पैदा नहीं होता। इतना ही नहीं वे एक ऐसे समाज की कल्पना भी करते हैं जहां किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता, भेदभाव नहीं हो। वे इसे बेगमपुरा कहते हैं।
यह भी पढ़ें : पूर्णिमा 2024 तिथि कब है
संत रविदास का जीवन हालांकि बहुत ही सरल सीधा रहा है लेकिन उनके जीवन से जुड़े कई प्रसंग ऐसे भी बताये जाते हैं जो किसी न किसी चमत्कार से जुड़े हों। कुछ चमत्कार इस प्रकार हैं-
उनके द्वारा पत्थर की मूर्ति को गंगा में छोड़ने पर उस मूर्ति का गंगा में तैरना
एक साधु द्वारा पारस पत्थर दिये जाने पर उसे इस्तेमाल न करना
अपनी कठौति से गंगा जल की धारा प्रवाहित होना
कठौति के जल से कुष्ठ रोग दूर होना
रविदास जी द्वारा एक मित्र सेठ को दी गंगा जी को दान देने के लिये दी गई राशि स्वयं गंगा मैया द्वारा स्वीकार करना
गंगा मैया द्वारा दूसरा कंगन लेना
उनके तन से जनेऊ निकलना
ये चमत्कार तो हो सकता है चमत्कार ही हों और रविदास जी के जीवन से इनका कोई संबंध न भी हो लेकिन उनकी भक्ति साधना और ईश्वर के प्रति आसक्ति को कोई नहीं नकार सकता बल्कि उन्हें तो स्वयं संत कबीरदास ने संतन में रविदास कहकर उच्च दर्जा दिया है। संत रविदास जी का यह पद तो आपने जरूर सुना होगा।
प्रभुजी तुम चंदन हम पानी।
जाकी अंग अंग वास समानी।।
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा।
ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
ऐसे बहुत सारे पद गुरु ग्रंथ साहब में शामिल हैं। आज भी अपने पदों से संत रविदास हमें राह दिखाते हैं।
माघ शुक्ल पूर्णिमा की तिथि अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार गुरु रविदास की 647वाँ जन्म वर्षगाँठ 24 फरवरी 2024 को है इसलिये इसी दिन गुरु रविदास जी का 647वाँ जन्म वर्षगाँठ मनाया जाएगा। इस दिन संत रविदास जी की पूजा अर्चना की जाती है, शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं, रथ यात्राएं निकाली जाती हैं और भजन कीर्तन कर संत रविदास को याद किया जाता है। आप सभी पाठकों को भी संत रविदास जी की जंयती की हार्दिक शुभकामनाएं।