पूर्णिमा हिंदू कैलेंडर अर्थात पंचांग की बहुत ही खास तिथि होती है। धार्मिक रूप से पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। दरअसल पंचांग में तिथियों का निर्धारण चंद्रमा की चढ़ती उतरती कलाओं के आधार पर किया गया है जिस तिथि को चंद्रमा अपने पूरे आकार में दिखाई देता है वह तिथि पूर्णिमा कहलाती है। जिस तिथि को चंद्रमा दिखाई ही नहीं देता वह तिथि अमावस्या कहलाती है। अमावस्या पश्चात पड़ने वाली तिथि को चंद्र दर्शन की तिथि माना जाता है चंद्र दर्शन से पूर्णिमा तक के पूरे पखवाड़े को शुक्ल पक्ष कहा जाता है। पूर्णिमा (Purnima) का एक महत्व यह भी है कि इस दिन पूर्णिमांत माह की समाप्ति भी होती है।
पूर्णिमा तिथि (purnima tithi) का नाम सौम्य और बलिष्ट भी है, क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा का बल अधिक होता है और उसमें आकर्षण की शक्ति बढ़ जाती है। इसे हिंदी में पौर्णमासी को 'महाचैत्री', 'महाकार्तिकी', 'महा पौषी कहा जाता है। पूर्णिमा तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 169 डिग्री से 180 डिग्री अंश तक होता है। पूर्णिमा तिथि के स्वामी चंद्रदेव को माना गया है। सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को भगवान विष्णु और चंद्रदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
पूर्णिमा तिथि में जन्मे जातक बुद्धिमान और संपत्तिवान होते हैं। इन लोगों का मनोबल बहुत अधिक होता है, इसलिए परेशानियों से हार नहीं मानती हैं। इन व्यक्तियों में कल्पनाशक्ति की अच्छी होती है और भीड़ में अपनी अलग पहचान बना ही लेते हैं। चंद्रमा की वजह से ये जातक भावनात्मक, कलात्मक, सौंदर्यबोध, रोमांस, आदर्शवाद जैसी बातों पर अमल करते हैं। इस तिथि में जन्मे लोग महत्वाकांक्षी भी होते हैं लेकिन जल्दबाजी में बहुत रहते हैं।
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पूर्णिमा तिथि हिंदू धर्म में बहुत मायने रखती है। बुध, कबीर, रैदास जैसी महान आत्माओं से लेकर रक्षाबंधन, होली जैसे त्यौहार भी पूर्णिमा तिथि पर ही मनाये जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी इस तिथि को महत्वपूर्ण माना जाता है। चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। इस दिन चूंकि चंद्रमा अपने पूरे आकार में होता है इसलिये जातकों के मन पर चंद्रमा का प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखें तो पूर्णिमा तिथि की अहमियत होती है। इस दिन समुद्रों में ज्वारभाटा आता है। चंद्रमा पानी को आकर्षित करता है। मनुष्य के शरीर में भी 70 फीसदी पानी होता है। इसलिये मनुष्य के स्वभाव में भी इस दिन परिवर्तन आता है।
सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति के लिए इस तिथि पर सत्यानारण का पाठ करवाना उत्तम रहता है। पूर्णिमा तिथि पर गृह निर्माण, नया वाहन, गहने या कपड़ों की खरीदारी, शिल्प, मांगलिक कार्य, उपनयन संस्कार, सत्यनारायण की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस तिथि पर यात्रा करना भी अच्छा होता है। वहीं दूसरी ओर ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा मन का कारक है। इस वजह से पूर्णिमा तिथि पर यह मन में काफी प्रभाव डालता है। यह मन को बैचन करता है और क्रोध, चिड़चिड़ाहट और नकारात्मकता भी ला सकता है। इसलिए बेहतर है कि आप किसी से बहस कतई ना करें।
हिंदू वर्ष कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक मास में एक पूर्णिमा तिथि होती है। इस प्रकार 12 महीनों में 12 तिथियां पूर्णिमा की होती हैं। वर्ष 2022 में पूर्णिमा (purnima 2022) की तिथियां इस प्रकार हैं-
पूर्णिमा 2022 |
दिनांक |
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जनवरी 17, 2022, सोमवार |
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फरवरी 16, 2022, बुधवार |
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मार्च 18, 2022, शुक्रवार |
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अप्रैल 16, 2022, शनिवार |
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वैशाख पूर्णिमा |
मई 16, 2022, सोमवार |
ज्येष्ठ पूर्णिमा |
जून 14, 2022, मंगलवार |
आषाढ़ पूर्णिमा |
जुलाई 13, 2022, बुधवार |
श्रावण पूर्णिमा |
अगस्त 12, 2022, शुक्रवार |
भाद्रपद पूर्णिमा |
सितम्बर 10, 2022, शनिवार |
आश्विन पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) |
अक्टूबर 9, 2022, रविवार |
कार्तिक पूर्णिमा |
नवम्बर 8, 2022, मंगलवार |
मार्गशीर्ष पूर्णिमा |
दिसम्बर 8, 2022, बृहस्पतिवार |
✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी