हिंदू पंचांग की चौदवीं तिथि चतुर्दशी (Chaturdashi) कहलाती है। इस तिथि का नाम करा भी है, क्योंकि इस तिथि पर शुभ कार्यों की शुरुआत करना वर्जित है। इसे हिंदी में चौदस भी कहा जाता है। यह तिथि चंद्रमा की चौदवीं कला है, इस कला में अमृत का पान भगवान शिव करते हैं। चतुर्दशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 157 डिग्री से 168 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी तिथि (Chaturdashi tithi) का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 337 से 348 डिग्री अंश तक होता है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शिव को माना गया है। जीवन में सर्व कल्याण और सभी पापों से मुक्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को भगवान भोलेनाथ की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
किसी भी पक्ष की चतुर्दशी में शुभ कार्य करना वर्जित हैं क्योंकि इसे क्रूरा कहा जाता है। इसके अलावा चतुर्दशी तिथि रिक्ता तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं दोनों पक्षों की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस तिथि पर रात्रि में शिव मंत्र या जागरण करना उत्तम रहता है।
चतुर्दशी तिथि (Chaturdashi tithi) में जन्मे जातक मन से कोमल और बाहर से कठोर दिखाई देते हैं। इन लोगों को क्रोध बहुत आता है। ये जातक साहसी और कठोर कार्य करने में प्रवीण होते हैं। इन लोगों को जीवन में संघर्ष करना पड़ता है तब कहीं सफलता हाथ लगती है। ये लोग अपने ही बनाए गए नियमों पर चलना पसंद करते हैं। इस तिथि में जन्मा जातक साधु-संतों का आदर करता है और धार्मिक कार्यों में विश्वास रखता है। ये लोग अपना काम निकलवाने में माहिर होते हैं और अपनी काबिलियत के दम पर काम निकलवा भी लेते हैं।
शुभ कार्य
चतुर्दशी तिथि में विद्युत कर्म, बन्धन, शस्त्र विषय, अग्नि आदि से सम्बन्धित कार्य करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की चतुर्दशी तिथि में बाल काटना या शेविंग करना वर्जित है। इस तिथि पर किसी कठोर कार्य को शुरू करना उचित रहता है जैसे हथियारों का निर्माण या उनका परीक्षण करना।
हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शिव जी और माता पर्वती का विवाह हुआ था। इसके अलावा हिंदू पंचांग के मुताबिक हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इस तिथि पर भोलेनाथ के लिए व्रत रखना उत्तम फलदायक होता है।
यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान श्री हरि यानि भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन कलाई पर रेशम का धागा बांधा जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और घर धन-धान्य से संपन्न रहता है।
दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाने वाला पर्व नरक चतुर्दशी है। यह त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस तिथि पर मृत्यु के देवता यम की पूजा का विधान है। साथ ही शाम को दीपक जलाने का प्रावधान है।
बैकुंठ चौदस कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को ही मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान शिव और श्रीहरि की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
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