हिंदू पंचाग की ग्यारहवीं तिथि एकादशी (Ekadashi) कहलाती है। इस तिथि का नाम ग्यारस या ग्यास भी है। यह तिथि चंद्रमा की ग्यारहवीं कला है, इस कला में अमृत का पान उमादेवी करती हैं। एकादशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 121 डिग्री से 132 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 301 से 312 डिग्री अंश तक होता है। एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा को माना गया है। संतान, धन-धान्य और घर की प्राप्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को विश्वेदेवा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
यदि एकादशी तिथि (Ekadashi tithi) रविवार और मंगलवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा एकादशी तिथि शुक्रवार को होती है तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। यदि किसी भी पक्ष में एकादशी सोमवार के दिन पड़ती है तो क्रकच योग बनाती है, जो अशुभ होता है, जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। बता दें कि एकादशी तिथि नंदा तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं किसी भी पक्ष की एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करना शुभ माना जाता है।
एकादशी तिथि में जन्मे जातक उदार और दूसरों के प्रति प्रेमभावना रखने वाले होते हैं। लेकिन इनमें चालाकी बहुत होती है। ये धनवान होते हैं और धार्मिक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ये लोग अपने से बड़ों और गुरुओं का आदर सत्कार बहुत करते हैं। ये कला के क्षेत्र में रुचि रखते हैं। इन जातकों को संतान सुख प्राप्त होता है और न्याया के मार्ग पर चलते हैं। कूटनीति की कला में माहिर होते हैं।
शुभ कार्य
एकादशी तिथि (ekadashi tithi) के दिन व्रत उपवास, अनेक धर्मकृत्य, देवोत्सव, उद्यापन व धार्मिक कथा आदि कर्म करना उत्तम रहता है। इस दिन यात्रा भी करना शुभ होता है। आप एकदशी के दिन गृहप्रवेश कर सकेत हैं। इसके अलावा इस तिथि पर चावल या अन्न खाना वर्जित हैं। साथ ही गोभी, बैंगन, लहसुन व प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
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