हिंदू पंचाग की छठी तिथि षष्ठी (Shashthi) कहलाती है। इस तिथि का विशेष नाम कीर्ति है क्योंकि इस तिथि में किए गए कार्य सार्थकता को दर्शाते हैं। इसे हिंदी में षष्ठी, छठ, छठी भी कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की छठी कला है, इस कला में अमृत का पान इंद्र देव करते हैं। षष्ठी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 61 डिग्री से 72 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में षष्ठी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 241 से 252 डिग्री अंश तक होता है। षष्ठी तिथि(Shashthi tithi) के स्वामी स्कन्द यानि कार्तिकेय माने गए हैं, जो भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के ज्येष्ट पुत्र हैं। जीवन में संतान सुख और सौभाग्य के लिए इस तिथि में जन्मे लोगों को भगवान कार्तिकेय का पूजन अवश्य करना चाहिए।
यदि षष्ठी तिथि रविवार और मंगलवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा षष्ठी तिथि शुक्रवार को होती है तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि षष्ठी तिथि नंदा तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं शुक्ल पक्ष की षष्ठी में भगवान शिव का पूजन करना चाहिए लेकिन कृष्ण पक्ष की षष्ठी में शिव का पूजन करना वर्जित माना गया है।
षष्ठी तिथि (Shashthi tithi) में जन्मे जातक घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के होते हैं। उन्हें देश-विदेशों में घूमने का शौक होता है। ये लोग हमेशा संघर्ष करने की क्षमता रखते हैं, इनमें जोश और उत्साह हमेशा भरा रहता है। ये लोग आत्मनिर्भर होते हैं दूसरों पर निर्भर नहीं रहते हैं। इन लोगों में अपनी बात मनवाने का गुण पाया जाता है। षष्ठी तिथि में जन्मे लोग गुस्सैल होते हैं और इनमें मेलजोल की भावना कम होती है। यह अकेला रहना ज्यादा पसंद करते हैं। इनको जल्दी लोग पसंद नहीं आते हैं लेकिन जो भी पसंद आता है उसके साथ निष्ठाभाव भी रखते हैं। ये लोग अपनी असफलता से बहुत जल्दी निराश हो जाते हैं।
शुभ कार्य
षष्ठी तिथि में यात्रा, दन्त कर्म व लकड़ी खरीदने-बेचने का कार्य करना शुभ रहता है। मान्यता है कि इस तिथि को कठिन कार्य शुरू करने से सफलता जरूर मिलती है। इस तिथि में आप वास्तुकर्म, घर बनवाना, शस्त्र बनवाने जैसे कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की षष्ठी तिथि में तेल और दातून करने वर्जित होता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हल षष्ठी मनाई जाती है। इस तिथि पर भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। इस दिन हल की पूजा का विधान है। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने संतान की सुख-शांति की कामना करती हैं।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी मनाते हैं। इस दिन शिव जी के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ था। इस दिन कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
चंद्र षष्ठी आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस तिथि पर चंद्रदेव की पूजा की जाती है। इस दिन व्रतधारी रात्रि में चंद्र को अर्ध्य देकर व्रत पूरा करते हैं।
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को चंपा षष्ठी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस तिथि पर व्रत रखने से पापों से मुक्ति मिलती है।
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य षष्ठी मनाई जाती है। इस तिथि पर भगवान सूर्य की पूजा का विधान है। इस दिन सूर्य की अर्ध्य देकर गायत्री मंत्र का जाप करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत करने से सौभाग्य, आरोग्य और संतान की प्राप्ति होती है।
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