वर्तमान समय में जब सभी लोग अपने कर्म बंधन से जुड़े हुए कार्यों में व्यस्त रहते हैं। वे जाने या अनजाने में एक नहीं, अनेक ऐसे गलती कर देते हैं, जो उनकी आने वाली समस्याओं का कारण बन जाते हैं। इसी कारण शनिदेव अपनी दशा, महादशा और साढ़ेसाती के समय में उनका अवलोकन कर उन्हें उनके कर्मों का उचित फल देते हैं। इस वजह से वे भय से भरे रह सकते हैं और उन्हें लगता है कि यह सब शनिदेव की गलत दृष्टि का परिणाम है।
असल में देखा जाए तो शनिदेव ऐसा कुछ भी नहीं करते। वे तो एक निष्पक्ष न्यायाधीश हैं, जो आपके किये गये कर्मों के अनुसार आपको फल देते हैं। शनि देव को इसी लिए न्याय का देवता भी कहा जाता है। साथ ही वह इन संकेतों से सही कर्म करने शिक्षा देते हैं। शनिदेव एक ऐसे व्यवहारिक शिक्षक हैं, जो हमसे कठिन परीक्षा लेकर व्यक्ति को एक महान व्यक्तित्व बनाने के रास्ते प्रदान करते हैं। ये व्यक्ति को ऐसे निखारते हैं जैसे हीरे को निखार कर साफ किया गया हो और ये लोगों को जीवन के संघर्षों में डाल कर उनको कुंदन जैसा मजबूत बना देते हैं।
समाज में एक ऐसी धारणा स्थापित है कि शनि हमेशा ही दुष्प्रभाव दिखाते हैं। परन्तु यह धारणा लोगों द्वारा बनाई गई है। जिसका कारण हो सकता है सही जानकारी का अभाव। जैसे ही लोग शनि के बारें में सुनते हैं उनके मन में दुःख, कष्ट और भय का विचार आ जाता है। लोगों में मान्यता है, अगर शनि की छाया भी किसी पर पड़ जाए तो उसका कुछ नुकसान होने वाला है। कुछ ऐसी ही लोग अलग-अलग धारणा को एक दूसरे से व्यक्त करने लगते हैं। हालांकि ये उनके किये गए कर्मों का परिणाम हो सकता।
भगवान शनि, भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया के इकलौते पुत्र हैं। वह जब अपनी मां के गर्भ में थे, तब माता छाया ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। धधकते सूर्य के नीचे बैठकर की गई यह तपस्या काफी कठोर थी। देवताओं ने उनकी प्रार्थना सुन ली और उन्हें दिव्य आशीर्वाद दिया। जिससे उनके यहां एक पुत्र का जन्म हुआ।
छाया द्वारा की गई भगवान शिव की तपस्या और आराधना की वजह से, शनि भगवान शिव के भक्त बन गए और उनकी आराधना करने लगे। मान्यता है कि छाया काफी देर तक तपस्या के लिए लगातार सूर्य की धधकती तपन में एक योगनी की तरह बैठी रही, जिससे उनके गर्भ में पल रहा शिशु समय के साथ-साथ काला होता गया।
कहते हैं जब भगवान शनि का जन्म हुआ, तो भगवान सूर्य ने उनके रंग रूप के कारण उनका तिरस्कार कर दिया और उन्होंने शनि को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया। भगवान शनि को इस बात से बहुत नाराजगी हुई। पिता और पुत्र के बीच इसी कारण ने तनावपूर्ण संबंधों को जन्म दिया।
शास्त्रों के अनुसार, कहानी है कि भगवान शनि ने अपने पिता भगवान सूर्य से प्रार्थना की थी कि उन्हें एक ऐसा पद दे दिया जाए, जो अब तक किसी को नहीं दिया गया हो। वह भगवान सूर्य को यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि कोई अन्य देव या असुर उन्हें गति और भव्यता के मामले में चुनौती नहीं दे सकता है।
सूर्य देव शनि देव की बातों से प्रसन्न हुए और उन्होंने उनको आदेश दिया कि उन्हें अब काशी जाकर भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। अपने पिता सूर्य देव की इच्छा के बाद वह काशी चले गये। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की और अपनी तपस्या से उन्हें प्रसन्न किया। जिन्होंने शनि देव को नव ग्रह प्रणालियों में उचित स्थान प्रदान किया।
ज्योतिषशास्त्र में उल्लेखनीय है कि शनि ग्रह सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है, जिसे एक राशि से दूसरी राशि में जाने में 2.5 वर्ष का समय लगता है। कहते हैं जब शनि ने अपने जन्म के बाद पहली बार अपनी आंखें खोलकर देखा तो तब तक सूर्य ग्रहण लग गया था। यह ज्योतिषीय चार्ट पर शनि के प्रभाव का स्पष्ट संकेत दिखाता है।
सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य बात यह है कि शनि ग्रह एक बहुत शक्तिशाली ग्रह माने जाते हैं और सम्पूर्ण मानव जीवन पर इसका प्रभाव कभी न कभी देखा गया है क्योंकि यह एक धीमा ग्रह है इसलिए पूरे राशि चक्र का सिर्फ एक मात्र चक्कर पूरा करने में इन्हें तीस वर्ष का समय लग जाता है।
जीवन में, शनि हमें हमारे कर्मों के आधार पर परखते हैं। हमारे कार्यों के लिए पुरस्कृत और दंडित भी करते हैं। शनि को अक्सर कर्म ग्रह के रूप में भी जाना जाता है साथ ही इस ग्रह को ठंडे ग्रह के रूप में भी जाना जाता है और इन्हें एक कठिन और महत्वपूर्ण कार्यपालक भी माना जाता है। यह एक ऐसा ग्रह है, जो जीवन के अलग-अलग दौर में आपको विभिन्न सबक सिखाता है।
जीवन में जब भी शनि महादशा का प्रभाव आपके जीवन में आये तो उनसे बचने के लिए ये पांच महत्पूर्ण उपाय करें।
शनि ग्रह से शांति के लिए पूजा ही शनि संबंधी समस्याओं को दूर करने का एकमात्र उचित उपाय है। शनि पूजा को शनि शांति पूजा के रूप में भी जाना जाता है, शनि को खुश करने के लिए और अपने पिछले कर्म संबंधी समस्याओं के परिणामस्वरूप शनि द्वारा आपको दिए गए दंड को कम करने के लिए की जाती है।
इस पूजा को करने से भगवान शनि ख़ुश होते हैं और हमारे भूतकाल में किये गए के गलत कर्मों के लिए वह हमें जो दंड देते हैं और उसकी मात्रा को कम कर देते हैं। शनि पूजा के बाद आपके स्वास्थ्य, वित्त, रिश्ते, करियर और कई अन्य चीजों में सुधार हो सकता है।
शनि शांति पूजा व्यक्ति को शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त करने और अपने जीवन में परिवर्तन का अनुभव करने में सक्षम बनाती है। शनि की धीमी चाल होने के कारण ही किसी भी व्यक्ति पर इसका नकारात्मक प्रभाव काफी लंबे समय तक दिखने लग सकता है इसलिए हमें अपने जीवन में आने वाले शनि के नकारात्मक प्रभावों को शांत करने के लिए सही समय पर और प्रभावी ढंग से कार्य करने की आवश्यकता होती है।
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