शनि का नाम सुनते ही काफी लोग भय के अंधेरे में समा जाते हैं। शनि (Saturn) को लोग परेशान करने वाला ग्रह मानते हैं। जिस जातक के ऊपर शनि की कूदृष्टि पड़ जाए उसका जीवन नरक बन जाता है, परंतु शनि को लेकर बनी हुई कई धारणाएं गलत हैं। वैदिक ज्योतिष में शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है। इसके साथ ही ये न्याय के देव भी कहे जाते हैं। यानी की ये अकारण किसी को भी परेशान नहीं करते हैं। जातक के कर्म ही उसके की दिशा को निर्धारित करता है। इस लेख में हम शनि ग्रह के बारे में जानेंगे। वैदिक ज्योतिष में शनि का क्या स्थान है?, शनि ग्रह का खोगोलीय महत्व क्या है? यंत्र, मंत्र, रत्न व मूल क्या है? इसके साथ ही मानव जीवन पर शनि का क्या प्रभाव है?
वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को कर्म का फल दाता कहा गया है। शनि ग्रह की गति अन्य ग्रहों की तुलना में सबसे धीमी है। जिसके कारण ये किसी एक राशि से निकलने में ढाई वर्ष लगा देते हैं। इसी समय को वैदिक ज्योतिष में ढय्या के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में इन्हें देवता माना जाता है। सौर मंडल का एक ग्रह शनि, शनि (Saturn) का वातावरण अन्य ग्रहों से अलग है। खगोल विज्ञान के अनुसार शनि एक ऐसा ग्रह है जिसके चारों ओर छल्लानुमा आकृति है। यह आकृति खलोलीय पिंड़ों द्वारा निर्मित है। गुरुत्वाकर्षण के कारण पिंड यही स्थिर है। शनि सूर्य से छठा तथा सौर मंडल में बृहस्पति के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रह माना जाता है।
वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बड़ा महत्व है। ज्योतिष में शनि ग्रह को आयु, दुख, तकनीकी का कारक माना जाता है। ये मकर और कुंभ राशि का स्वामी भी हैं। ज्योतिषियों की माने तो तुला राशि शनि की उच्च राशि है जबकि मेष इसकी नीच राशि मानी जाती है। शनि की दशा साढ़े सात वर्ष की होती है जिसे शनि की साढ़े साती कहा जाता है। ज्योतिषाचार्यों की माने तो जिस जातक की कुंडली में शनि उच्च हो तो वह रंक से राज बन जाता है। शनि (Saturn) को 27 नक्षत्रों में तीन नक्षत्र पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामीत्व प्राप्त है।
जिस जातक की कुंडली में शनि ग्रह लग्न भाव में विराजमान है तो यह ज्योतिषीय दृष्टि से ठीक नहीं माना जाता है। ज्योतिष के मुताबिक लग्न भाव में शनि के होने से जातक आलसी और हीन मानसिकता होता है। हालाँकि जातक गुणवान होता है, परंतु अपने गुणों का सही फायदा नहीं उठा पाता है। इसके साथ ही ऐसे जातक अकेला ही रहना पसंद करते हैं।
यदि जातक की कुंडली में शनि प्रभावी व शुभ ग्रहों के साथ होतो इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि तुला राशि में शनि उच्च के होते हैं। ऐसे में शनि प्रबल होगें। इसका सीधा लाभ जातक को होगा। शनि के प्रभाव के कारण जातक कर्मठ, कर्मशील और न्यायप्रिय बनाता है। शनि के कृपा से जातक अपने कार्यक्षेत्र में सफलता की प्राप्ति करता है। जातक धीर व गंभीर हो जाता है।
जिन जातकों की कुंडली में शनि (Saturn) पीड़ित व शुभ स्थान में न हो तो जातक को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार शनि मंगल ग्रह से पीड़ित हो तो यह जातकों के लिए दुर्घटना और न्यायिक परेशानियां पैदा करता है। जातक को जेल तक जाने की नौबत आ जाती है।
हिंदू मान्यता के मुताबिक शनि सूर्य व छाया के पुत्र हैं। इसलिए शनि को छाया पुत्र के नाम से भी संबोधित किया जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक शनि देव सूर्य के विरोधी है। जिसका असर मानव जीवन पर भी देखने को मिलता है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य व शनि की युति को शुभ नहीं माना जाता है। शनि न्याय के देव हैं। यह उपाधि स्वयं भगवान शिव ने शनि को दी है। शनि मानव के कर्म के अनुसार ही उसका फल प्रदान करते हैं। यानी की मानव को उसके कर्मों का ही फल मिलता है।
यंत्र – शनि यंत्र
मंत्र - ओम शं शनैश्चराय नमः
रत्न - नीलम
रंग - काला
उपाय – शनि (Saturn) के कुप्रभाव से बचने के लिए आपको शनि देव की उपासना करनी चाहिए। इसके साथ ही आपको सद कर्म करना चाहिए। तिल तथा उड़द की दाल का दान करना भी शनि के प्रकोप से बचने में आपकी सहायता कर सकता है।
दिनाँक | Thursday, 21 November 2024 |
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तिथि | कृष्ण सप्तमी |
वार | गुरुवार |
पक्ष | कृष्ण पक्ष |
सूर्योदय | 6:49:11 |
सूर्यास्त | 17:25:32 |
चन्द्रोदय | 22:44:5 |
नक्षत्र | अश्लेषा |
नक्षत्र समाप्ति समय | 41 : 11 : 27 |
योग | ब्रह्म |
योग समाप्ति समय | 35 : 33 : 31 |
करण I | विष्टि |
सूर्यराशि | वृश्चिक |
चन्द्रराशि | कर्क |
राहुकाल | 13:26:54 to 14:46:26 |