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वैदिक ज्योतिष में केतु को एक छाया ग्रह माना जाता है। ज्योतिष की माने तो केतु ग्रह हमेशा वक्री अवस्था में ही रहता है। ऐसे में यह जातक के ऊपर गहरा प्रभाव डालता है। ज्योतिष में केतु को क्रूर ग्रह माना जाता है। यह जातक को ग्रह के संगति व स्थिति के अनुसार परिणाम देता है। वक्री अवस्था में केतु उल्टे ही परिणाम अधिकतर देता है ऐसा मानना है ज्योतिषियों का परंतु कुछ ज्योतिष इसे अच्छा भी मानते हैं। तो आइये जानते हैं केतु का वक्र (Ketu Retrograde 2024) होना हमारे लिए कैसा परिणाम देगा।
वैदिक ज्योतिष में केतु का प्रभावी होना उसके स्थान व ग्रह के युति पर निर्भर करता है। वैसे केतु का प्रभावी होना भी एक तरह से महत्व व आवश्यक माना जाता है। ज्योतिषाचार्य कुंडली का आकलन करते समय केतु की भी स्थिति पर ध्यान देते हैं इसके बाद ही जातक के भविष्य फल के बारे में विचार व गणना किया जाता है। इसके बिना गणना सही नहीं माना जाता है। क्योंकि वैदिक ज्योतिष में राहु - केतु को छाया ग्रह माना जाता है। जिसका काफी प्रभाव कुंडली पर पड़ता है। प्रभावी होने पर जातक धर्म व आध्यात्म में रूचि लेता है। आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होता है।
वैदिक ज्योतिष में केतु को आध्यात्म का कारक माना जाता है। ज्योतिष की माने तो केतु का कुंडली में प्रभावी होना जातक के लिए आध्यात्म का मार्ग खोलता है। यदि कुंडली में केतु अधिक प्रभावी हो तो जातक आध्यात्म की ओर अग्रसर होता है। यहां तक की वह सांसारिक मोह-माया को त्याग देता है। उसे प्रेम परिवार से कोई लेना देना नहीं होता है। वैसे हम आपको बता दें कि कुंडली में गुरू का प्रभावी होना भी जातक को आध्यात्म की ओर ले जाता है। लेकिन ऐसे में जातक संसार से मुंह नहीं मोड़ता है। वह अन्य सांसारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करता है।
कुंडली में केतु का कमजोर होना जातक को क्रूर बनाता है। जातक धर्म के मार्ग से भटक जाता है। इसके साथ ही वह लोगों का सम्मान नहीं करता है। वैदिक ज्योतिष में केतु किस भाव व किस ग्रह के साथ बैठा है इस पर भी ध्यान दिया जाता है। क्योंकि केतु छाया ग्रह है और यह साथी के अनुसार ही परिणाम देता है। शुभ के साथ शुभ व अशुभ के साथ विपरीत परिणाम जातक को मिलता है। पारिवारिक जीवन में भी समस्याएं खड़ी करता है। इसके साथ ही जातक करियर में आगे नहीं बढ़ पाता है। किसी न किसी तरह की रूकावटें आती रहती हैं।
ज्योतिष में उल्लेखित 12 भाव के मुताबिक देखा जाए तो वक्री केतु का प्रभाव अलग –अलग होता है।
पहले भाव में केतु का वक्री होकर विराजना जातक के लिए स्वास्थ्य व परिवार के लिए ठीक नहीं माना जाता है। ऐसे में जातक को सेहत व पारिवारिक मामलों में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
दूसरे भाव में वक्री केतु का बैठना जातक के धन पक्ष के लिए शुभ नहीं होता है। जातक की वाणी कोठोर हो जाती है। ऐसे जातक धन संचय करने में असफल होते हैं। चोट लगने व दुर्घनाएं होने की संभावना बनी रहती है।
तीसरे भाव में केतु यदि वक्री अवस्था में है तो यह जातक के पराक्रम में कमी लाता है। जातक का भाग्य भी उसका साथ नहीं देता है। यानी कि जातक को किसी भी कार्य को सफलता पूर्वक करने में परेशानियां आती हैं।
चौथे भाव का वक्री केतु जातक के सुख को कम करने कार्य करता है। जातक के कार्यक्षेत्र में उतार-चढ़ाव व परिवर्तन होता रहता है। जिसके चलते जातक को स्थिरता नहीं मिलती है। स्थिरता न मिलने से जातक तनाव में आ जाता है।
पंचम भाव में वक्र केतुु (Ketu Retrograde) का होना जातक के परिवार व प्रेम तथा सामाजिक जीवन में परेशानियां लेकर आता है। संतान सुख से भी विमुख हो सकता है। धन के मामले में भी वक्र केतु समस्याएं ले आता है।
छठे भाव में वक्र केतु का होना जातक के लिए रोग व मूत्र संबंधी विकार देने वाला बन जाता है। जातक सेहत बिगड़ता रहता है। इसके साथ ही जातक में आत्मबल व ऊर्जा की कमी रहती है।
सातवें भाव में वक्री केतु का प्रभाव जातक के विवाह में देरी का भी कारण बन सकता है। साथी के अन-बन होने के पीछे भी केतु हो सकता है। साथी के सेहत पर भी यह दुष्प्रभाव डालता है।
पत्रिका के आठवें भाव में वक्री केतु का होना जातक के लिए ठीक नहीं माना जाता है। ऐसे में जातक आकस्मिक दुर्घटना का शिकार हो सकता है। जातक अक्सर कमज़ोरी भी महसूस कर सकता है।
नौंवें भाव में वक्री केतु का प्रभाव जातक के भाग्य पर पड़ता है। जातक को उसके भाग्य का साथ नहीं मिलता है। परिश्रम करने के बाद भी जातक मन मुताबिक परिणाम नहीं पाता है।
दशम भाव में केतु का वक्री होकर बैठना जातक के कार्यक्षेत्र के लिए अशुभ संकेत माना जाता है। ऐसी स्थिति में जातक के कार्य में रुकावटे आती रहती हैं जिसके चलते जातक अपेक्षा से कम तरक्की कर पाता है।
ग्यारहवें भाव का वक्री केतु जातक के धन में कमी, बनते कामों में रुकावटें, प्रेम संबंधों में भी रुकावटें पैदा करने वाला होता है। जातक धन और प्रेम में निर्बल बना रहता है।
बारहवें भाव में वक्री केतु (Ketu Retrograde) जातक के रुके हुए धन को निकालने वाला, फ़िजूल खर्ची करने वाला बनाता है। धन को रहकर भी उसको स्थिर करने वाला नहीं होता है, रोग संबंधी विकार भी बनाता है।