चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) भी सूर्य ग्रहण की ही तरह घटने वाली एक अनोखी खगोलीय घटना है। वैज्ञानिक रूप से तो इसका महत्व होता ही है लेकिन पौराणिक रूप से इसके धार्मिक व ज्योतिषीय महत्व भी हैं। सामाजिक तौर पर भी ग्रहण शब्द नकारात्मक रूप में इस्तेमाल किया जाता है। लोक भाषा में ग्रहण लगने का अर्थ हानि होने से लिया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भी मान्यताएं हैं कि ग्रहण काल के जीव जगत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
विज्ञान मानता है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा पृथ्वी की ऐसे में एक बिंदू ऐसा भी आता है जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य तीनों एक सीध में होते हैं। जब चंद्रमा बीच में हो और वह सूर्य को ढ़क रहा हो तो सूर्य ग्रहण लगता है लेकिन जब पृथ्वी सूर्य व चंद्रमा के बीच हो तो वह चंद्रमा को ढ़क लेती है जिस कारण चंद्र ग्रहण लगता है। लेकिन पौराणिक ग्रंथों में सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगने की वजह राहू-केतु माने जाते हैं। माना जाता है राहू स्वरभानू नाम का एक दैत्य था। क्षीर सागर मंथन के पश्चात जब मोहिनी रूप में भगवान विष्णु देवताओं को अमृतपान करवा रहे थे तो स्वरभानू को यह संदेह हो गया कि भगवान विष्णु दैत्यों के साथ छल कर देवताओं को ही अमृतपान करवा रहे हैं। ऐसे में वह देव रूप धारण कर देवताओं की कतार में बैठ गया। लेकिन वह अमृत की बूंद अपने गले से नीचे उतार पाता उससे पहले ही सूर्य व चंद्रमा ने उसके रहस्य को उजागर कर भगवान विष्णु को सूचित कर दिया जिससे विष्णु जी ने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानू का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया लेकिन अमृत पान करने की वजह से उसके सिर व धड़ दोनों जीवित रहे। सिर को राहू कहा गया और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया है। यही कारण है कि आज भी राहू-केतु सूर्य व चंद्रमा के शत्रु हैं और इन पर ग्रहण का कारण बनते हैं।
सूर्य ग्रहण जहां बहुत कम समय के लिये आंशिक, वलयाकार व पूर्ण रूप में बहुत कम समय कुछ ही मिनट के लिये लगता है वहीं चंद्र ग्रहण की अवधि कुछ घंटों की होती है।
चंद्रमा(Moon) पर धरती की छाया पड़ने से चंद्र ग्रहण लगता है। पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान धरती की छाया भी कई प्रकार की पड़ती है। सबसे पहले चंद्रमा धरती की उपच्छाया के दायरे में प्रवेश करता है। इसका बहुत कम प्रभाव होता है और बहुत गंभीरता से देखने वाले ही इस दौरान चंद्रमा में आये बदलाव को देख सकते हैं। इसे पेनंब्रा भी कहते हैं। इसके पश्चात अगला चरण प्रतिछाया का होता है जिसे अंब्रा भी कहा जाता है। इसके पश्चात संपूर्णता यानि टोटेलिटी का चरण आरंभ होता है। बाहर आते समय यही क्रम उलटा हो जाता है यानि सबसे पहले वह टोटेलिटी से बाहर निकलता है फिर प्रतिछाया के दायरे को क्रॉस करता है उसके पश्चात उपच्छाया के दायरे जैसे ही बाहर होता है तो चंद्रग्रहण (Chandra Grahan) समाप्त हो जाता है। इस दौरान चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देता है जिस कारण इसे ब्लड मून (Blood Moon)भी कहा जाता है।
चंद्र ग्रहण (उपछाया) | 25 मार्च 2024 12:00 पूर्वाह्न |
चंद्र ग्रहण (आंशिक) | 18 सितम्बर 2024 12:00 पूर्वाह्न |
चंद्र ग्रहण (पूर्ण ) | 17 अक्तूबर 2024 12:00 पूर्वाह्न |