भगवान भोलेनाथ की महिमा अपरम्पार है। सृष्टि के भक्षक भी वे हैं और रक्षक भी वही हैं। जब दुनिया का अंत होता है तो शिव के हाथों ही होता है। इसलिये उन्हें विध्वंसक के तौर पर भी जाना जाता है लेकिन यह विध्वंस ही नई सृजना का कारण भी बनता है। उनका नाम शिव भी इसीलिये है कि वे जो भी करते हैं वह कल्याण के लिये करते हैं। अलग-अलग समय में सृष्टि के कल्याण के लिये शिव ने 19 अवतार रूप धारण किये हैं। जिसमें उन्होंने दानवों का संहार किया। अपने एक अवतार में तो भगवान श्री हरि यानि की विष्णु के पुत्रों का संहार करने के लिये अवतरित हुए। अब उन्हें ऐसा क्यों करना पड़ा? या फिर भगवान विष्णु के ही ऐसे कैसे पुत्र पैदा हुए कि उनके संहार के लिये स्वयं शिव को अवतार रूप लेना पड़ा? आइये जानते हैं।
बात उस समय कि जब देवता व असुर समुद्रमंथन के दौरान निकले हुए अमृत को धारण करने के लिये आपस में लड़ पड़े। इस भीषण देवासुर संग्राम में असुर देवताओं पर भारी पड़ रहे थे ऐसे में श्री विष्णु ने चालाकी से काम लिया। उन्होंने कई अप्सराओं की सृजना की जिन्हें देखकर असुर उन पर मोहित हो गये व उन्हें पाताल लोक में बंदी बनाकर वापस युद्ध के लिये आ पंहुचे लेकिन जब तक वे वापस लौटे देवताओं का काम हो चुका था वे अमृत का पान कर अमरता पा चुके थे। अब असुर उनसे जीत नहीं सकते थे इसलिये उन्हें जान बचाने के लिये वहां से भागना पड़ा व सीधे पाताल लोक जा पंहुचे। उनके पिछे-पिछे विष्णु भी पंहुचे और सभी असुरों का विनाश कर दिया। असुरों का नाश होते ही अप्सराएं भी मुक्त हो गई। अप्सराएं विष्णु पर मोहित हो गईं व भगवान शिव से उन्हें वर रूप में पाने की इच्छा प्रकट की। भगवान शिव ने श्री हरि विष्णु को सब कुछ भूल कर पति रूप में उनके साथ रहने के लिये कहा।
इस तरह बहुत समय तक विष्णु पाताल लोक में अप्सराओं के साथ रहे जिनसे उनके कई पुत्र हुए। अब हुआ ये कि पाताल लोक में होने से सभी विष्णु पुत्र दानवी प्रवृति के थे। इन्होंने तीनों लोकों मे तबाही मचा दी। सृष्टि में फैले आतंक से ब्रह्मा जी आहत थे वे समस्त देवताओं, मुनियों को लेकर शिव के पास पंहुचे। अब भगवान शिव ने वृषभ अवतार धारण किया व विष्णु के सभी पुत्रों का संहार कर दिया।
जब भगवान विष्णु को पुत्रों के संहार की खबर मिली तो वे अत्यधिक क्रोधित हो गये और भगवान शिव के वृषभ अवतार से भीड़ गये। थे तो दोनों ही परमात्मा स्वरूप इसलिये लड़ाई का कोई अंत नहीं हुआ। इस अंत को न होता देख अप्सराओं ने विष्णु को पति रूप में पाने के लिये भगवान शिव के जिस वरदान में बांध रखा था उससे उन्हें मुक्त कर दिया। वास्तविक रूप में आने पर विष्णु को जब पूरे घटनाक्रम का बोध हुआ तो उन्होंने शिव की आराधना की फिर भगवान शिव ने उन्हें अपने लोक लौटने की आज्ञा दी। लेकिन इस बीच विष्णु अपना सुदर्शन चक्र पाताल लोक में ही भूल गये। भगवान शिव की माया से जैसे ही विष्णु विष्णुलोक पंहुचे उन्हें एक और सुदर्शन चक्र वहां प्राप्त हुआ।
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