भगवान भोलेनाथ की पूजा में राख का इस्तेमाल होते तो आपने देखा ही होगा, हो सकता है आप राख का तिलक भी लगाते हों। बहुत सारे शिव उपासक राख का तिलक अपने मस्तक पर लगाते हैं। भगवान भोलेनाथ के बारे में आपने सुना होगा कि वे अपने तन पर भस्म लगाये रहते हैं। आखिर क्या हो सकता है अपने तन पर भस्म रमाने का रहस्य? तो आइये जानने की कोशिश करते हैं।
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दरअसल भगवान शिव शंकर को भोलेनाथ कहा जाता है। नाथ साधु सन्यासियों का एक संप्रदाय भी है जो मच्छन्द्र नाथ व गोरख से होते हुए नवनाथ के रूप में प्रचलित भी हुआ। 84 सिद्ध भी हुए हैं इन्हीं में सबसे पहले यानि आदि नाथ भगवान शिव को माना जाता है। इस संप्रदाय के लोग भी अक्सर भस्म रमाये मिलते होंगे। साधु सन्यासी तो अपने तन से लेकर जटाओं तक में धूणी यानि की धूणे की भस्म लगाये मिल जाते हैं। लेकिन भगवान शिव ने अपने तन पर जो भस्म रमाई है वह किसी धूणे की नहीं बल्कि उनकी पहली पत्नी सती की चिता की भस्म थी जो कि अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान से आहत हो वहां हो रहे यज्ञ के हवनकुंड में कूद गई थी। मान्यता है कि भगवान शिव को जब इसका पता चला तो वे बहुत बेचैन हो गये। जलते कुंड से सती के शरीर को निकालकर प्रलाप करते हुए ब्रह्माण्ड में घूमते रहे। उनके क्रोध व बेचैनी से सृष्टि खतरे में पड़ गई। कहते हैं तब श्री हरि ने सती के शरीर को भस्म में परिवर्तित कर दिया कोई चारा न देख शिव ने भस्म को ही उनकी अंतिम निशानी के तौर पर अपने तन पर मल लिया।
पौराणिक कथाओं में ही यह वर्णन भी मिलता है कि भगवान श्री हरि ने देवी सती के शरीर को भस्म ने नहीं बदला अपितु उसे छिन्न भिन्न कर दिया था जिसके बाद जहां जहां उनके अंग गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई। भगवान शिव के तन पर भस्म रमाने का एक रहस्य यह भी बताया जाता है कि राख विरक्ति का प्रतीक है। भगवान शिव चूंकि बहुत ही लौकिक देव लगते हैं। कथाओं के माध्यम से उनका रहन-सहन एक आम सन्यासी सा लगता है। एक ऐसे ऋषि सा जो गृहस्थी का पालन करते हुए मोह माया से विरक्त रहते हैं और संदेश देते हैं कि अंत काल सब कुछ राख हो जाना है। इसलिये इस भस्म को रमा लो। ताकि किसी भी प्रकार के लोभ-लालच, मोह-माया में न पड़कर अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए प्रभु को समर्पित रहें।
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एक रहस्य यह भी हो सकता है चूंकि भगवान शिव को विनाशक भी माना जाता है। ब्रह्मा जहां सृष्टि की निर्माण करते हैं तो विष्णु पालन-पोषण लेकिन जब सृष्टि में नकारात्मकता बढ़ जाती है तो फिर भगवान शिव विध्वंस कर डालते हैं। विध्वंस यानि की समाप्ति और भस्म इसी अंत इसी विध्वंस की प्रतीक भी है। शिव हमेशा याद दिलाते रहते हैं कि पाप के रास्ते पर चलना छोड़ दें अन्यथा अंत में सब राख ही होगा।
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