भारत के मंदिर स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने व लोगों की गहरी आस्था के अद्भुत केंद्र है। साथ ही आस-पास का प्राकृतिक सौंदर्य हमें ईश्वर के और भी नजदीक ले जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के गंगोलीहाट कस्बे में स्थित प्राचीन गुफा मंदिर पाताल भुवनेश्वर के दर्शन भी कुछ ऐसे ही हैं।
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यहां पर आप चारों युग, तमाम देवी-देवता और पूरे ब्रह्मांड का विहंगम दृश्य देख सकते हैं। स्कंद पुराण के 103वें अध्याय में भी पाताल भुवनेश्वर का वर्णन किया गया है और इसे भूतल का सबसे पावन क्षेत्र बताया गया है। इसी अध्याय में कहा गया है कि पाताल भुवनेश्वर में पूजन करने से अश्वमेध से हजार गुणा फल प्राप्त होता है। भारत के अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के बारे में यहां क्लिक कर जानें
गुफा में कई प्राचीन आकृतियां हैं जिन्हें श्रद्धालु पौराणिक घटनाओं के साथ जोड़ते हैं। कहा जाता है कि यहां पर पांडवों ने तपस्या की थी। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान भोलेनाथ यहां निवास करते हैं व देवी-देवता उनके दर्शन-पूजन के लिए यहीं पर आते हैं। गुफा में चित्रित हंस को ब्रह्मा जी के हंस से जोड़ा जाता है। जनमेजय के नागयज्ञ के हवन कुंड को भी यहीं बताया जाता है। कहा जाता है अपने पिता परीक्षित को श्रापमुक्त करने के लिए जनमेजय ने सारे नाग मार डाले लेकिन तक्षक नामक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतारा। नागयज्ञ के कुंड के ऊपर इसी नाग का चित्र है।
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यह भी कहा जाता है कि इस गुफा में दुनिया की प्रलय का राज छिपा है। दरअसल यहां चार प्रस्तर खंड हैं जो चार युगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें तीन एक समान हैं जबकि अंतिम बड़ा है जिसे कलयुग का प्रतीक माना जाता है। इसी के ऊपर एक पिंड लटक रहा है। कहा जाता है कि हर 7 करोड़ वर्ष में इस पिंड के आकार में एक इंच की वृद्धि होती है जिस दिन यह पिंड इस प्रस्तर को छू लेगा उसी दिन प्रलय आ जाएगी।
इस गुफा मंदिर की खोज के बारे में कहा जाता है कि युग रुपांतर के बाद काफी समय तो इस गुफा के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी आदि शंकराचार्य ने इस गुफा की खोज की थी। गुफा मंदिर होने के कारण ही इस क्षेत्र को गुफाओं का देव कहा गया है।
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