शिव सत्य है और शिव ही परम ब्रह्म है। शिव भगवान अजन्मी हैं, हिन्दू शास्त्रों में शिव को स्वंमभू बताया गया है। भगवान शिव के ना माता-पिता है और ना ही इनका बचपन है, भगवान शिव ने खुद को स्वयं से प्रकट किया है।
कलयुग में इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति भगवान शिव की आराधना से हो सकती हैं। चाहे बात करें धन या व्यवसाय की, या सुख समृद्धि की, सभी प्रकार की पीड़ा से लाभ प्राप्त करने के लिए देवों के देव महादेव की पूजा उपयुक्त होती है। लेकिन अब बात आती है कि भगवान शिव की पूजा किस तरह से की जाए?
तो यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि सतयुग में तो मूर्ति पूजा से ही लाभ प्राप्त हो जाता था किन्तु कलयुग में मात्र मूर्ति पूजा से सुख नहीं पाया जा सकता है। भविष्य पुराण में भी इस बात का जिक्र आता है कि कलयुग में बिना मंत्र ध्यान और जप से इंसान सुख प्राप्त नहीं कर सकता है। तो यदि हम भगवान शिव की अपार कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो महामृत्युंजय मंत्र का नित्य रोज जप बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।
आइये जानते हैं महामृत्युंजय मंत्र के महत्व के बारे में -
यदि व्यक्ति की कुंडली में मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में किसी भी प्रकार की कोई पीड़ा है तो यह दोष महामृत्युंजय मंत्र से दूर किये जा सकते हैं।
यदि कोई मनुष्य किसी महारोग से कोई पीड़ित है तो भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यहाँ तक की यह मन्त्र म्रत्यु को भी टाल देता है।
जमीन-जायदाद के बँटवारे की संभावना हो या किसी महामारी से लोग मर रहे हों। ऐसे समय में महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग ब्रह्मास्त्र का कार्य करता है।
घर में कलेश रहता हो, पारिवारिक दुःख चल रहा हो या घर में अकाल म्रत्यु हो रही हो तब ऐसे में नित्य रोज सुबह-शाम महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाये, तो पीड़ा जड़ से खत्म हो जाती है।
यदि आपके जीवन में किसी भी कारण से धन की हानि हो रही है या आपका व्यवसाय नहीं चल पा रहा है तो महामृत्युंजय मंत्र से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
बार-बार हमारी आत्मा जन्म लेकर, दुःख भोगती है। यदि हम महामृत्युंजय मंत्र का जाप निरंतर करते रहते हैं तो आत्मा इस आवागमन के दुःख से छूटते हुए, ब्रह्म शक्ति में लीन हो जाती है।
शास्त्रों में वैसे जप का सबसे उपयुक्त समय तो ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 2 से 4) ही बताया गया है, किन्तु यदि इस समय जप नहीं हो पाता है तो प्रातःकाल और सायंकाल में स्नान और सभी जरूरी कार्यों से निवृत्त होकर, कम से कम 5 बार महामृत्युंजय मंत्र, माला का जाप करना चाहिए।
जाप के समय रुद्राक्ष की माला का ही प्रयोग करना, अच्छा माना जाता है।
ध्यान दें कि पूर्व दिन में जपी गयी माला से कम जाप अगले दिन नहीं करना होता है। बेशक जप संख्या ज्यादा हो सकती है किन्तु यह कम न हों।
ध्यान के समय, मन किसी भी अन्य कार्य में नहीं होना चाहिए।
जप काल में शिवजी की प्रतिमा, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र का पास में रखना काफी अच्छा समझा जाता है। तथा मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए।
इंसान यदि मासाहार छोड़कर महामृत्युंजय मंत्र का जप करता है तो इससे शीघ्र ही लाभ प्राप्त होता है।
साथ ही साथ एकमुखी रुद्राक्ष महामृत्युंजय पेंडेंट की मदद से भी बहुत लाभ प्राप्त होता है।