श्राद्ध पक्ष के दिन: पितरों का श्राद्ध करने का सबसे उपयुक्त दिन कब होता है?

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श्राद्ध पक्ष के दिन: पितरों का श्राद्ध करने का सबसे उपयुक्त दिन कब होता है?

श्राद्ध पक्ष के दिन: श्राद्ध पक्ष का समय हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद को पाने का एक सुनहरा अवसर माना जाता है। यह काल हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है। यह समय न केवल पूर्वजों को तर्पण और पिंडदान देने का है, बल्कि उन पितरों के लिए भी खास होता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है या जिनका विधिवत श्राद्ध नहीं किया गया है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि सोमवार, मंगलवार और बुधवार के दिन पितरों के लिए क्यों विशेष और फलदायी माने जाते हैं, और इन दिनों किन विशेष उपायों से पितृ तृप्त होते हैं।

श्राद्ध पक्ष में सोमवार का महत्व: अकाल मृत्यु से पीड़ित पितरों के लिए उत्तम दिन

श्राद्ध पक्ष के दौरान सोमवार का दिन उन पितरों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है, जिनकी मृत्यु किसी दुर्घटना, बीमारी या अकाल कारणों से हुई हो। अक्सर यह देखा गया है कि ऐसे पितरों की आत्माएं अधूरी इच्छाओं के कारण परेशान रहती हैं और वे शांति की तलाश में होती हैं।

यदि किसी व्यक्ति को यह ज्ञात नहीं है कि उसके पितरों का श्राद्ध किस तिथि को करना है, तो सोमवार के दिन तीर्थ स्थल पर जाकर पिंडदान, अन्नदान और शैय्यादान करना अत्यंत पुण्यदायी होता है। शैय्यादान में बिस्तर, दरी, रजाई, तकिया, कंबल और छतरी जैसे उपयोगी वस्तुएं दान की जाती हैं, जो मृतात्मा को संतोष प्रदान करती हैं। यह एक ऐसा दान है जो जीवन के अंतिम समय की असुविधाओं की पूर्ति का प्रतीक माना गया है।

सोमवार का दिन भगवान शिव को भी समर्पित होता है, जो कि प्रेत योनि में भटकती आत्माओं को मुक्ति प्रदान करने वाले देवता माने जाते हैं। अतः इस दिन किया गया श्राद्ध और तर्पण विशेष रूप से प्रभावकारी होता है।

मंगलवार का महत्व: भूले-बिसरे पितरों और देव पिंडदान के लिए श्रेष्ठ

मंगलवार का दिन उन लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है जो पितरों का श्राद्ध करना चाहते हैं लेकिन उन्हें सही तिथि ज्ञात नहीं है या वे अमावस्या के दिन 16 गो-ग्रास का नियम पालन करते हैं। इस दिन नारायण बलि क्रिया का विशेष महत्व बताया गया है।

नारायण बलि एक वैदिक विधि है जिसमें पितरों के साथ-साथ देवताओं के नाम पर भी पिंडदान किया जाता है। यह क्रिया विशेष रूप से उन आत्माओं के लिए की जाती है जो अनायास मृत्यु का शिकार हुई हों और जिन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई हो। इसमें माता और पिता दोनों पक्ष के पिंडदान करके फिर देवताओं के लिए तर्पण किया जाता है। यह प्रक्रिया पितृ दोष शांति और कुल की उन्नति के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।

मंगलवार को हनुमान जी का दिन भी माना जाता है और चूंकि हनुमान जी को काल और मृत्यु पर नियंत्रण प्राप्त है, अतः इस दिन का उपयोग प्रेत आत्माओं की शांति के लिए करना विशेष फलदायक होता है।

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बुधवार का विशेष महत्व: आश्विन अमावस्या और मां पक्ष के पितरों के लिए

बुधवार का दिन श्राद्ध पक्ष के अंतर्गत आने वाली आश्विन अमावस्या के कारण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह दिन पितरों की शांति और पूर्ण तृप्ति के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त माना जाता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति ने तीन वर्ष तक अपने पूर्वजों का श्राद्ध किया हो, तो उस आत्मा की गति पितृ योनि से प्रेत योनि की ओर हो सकती है। ऐसी स्थिति में तीर्थ स्थल पर जाकर सपिंड श्राद्ध करना अत्यंत आवश्यक होता है। इस दिन विशेष रूप से मां के पक्ष यानी नाना-नानी, मामा-मामी आदि का भी श्राद्ध किया जा सकता है, जिन्हें अक्सर परंपरागत श्राद्ध में नजरअंदाज कर दिया जाता है।

ज्योतिष के अनुसार, बुधवार को पितरों का स्मरण करना और विशेष रूप से उनके लिए तर्पण, अन्नदान एवं धार्मिक अनुष्ठान करना अत्यंत शुभफलदायी सिद्ध होता है।

पितृ दोष और रोजाना सेवा से मिलने वाले लाभ

कई बार व्यक्ति की जन्मकुंडली में पितृ दोष पाया जाता है, जो कि पूर्वजों की अतृप्त आत्माओं या किसी अन्य अधूरी धार्मिक प्रक्रिया के कारण उत्पन्न होता है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति प्रतिदिन कुछ विशेष नियमों का पालन करे तो पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है।

इन नियमों में शामिल हैं:

  • गाय को हरा चारा देना

  • कौए को रोटी खिलाना (कौआ पितरों का प्रतीक माना जाता है)

  • कुत्ते को दूध देना

  • अग्नि में मीठा अर्पण करना

  • पीपल वृक्ष पर कच्चा दूध और तिल चढ़ाना

ये सभी उपाय मन, वचन और कर्म से किए जाएं तो श्राद्ध की प्रक्रिया अत्यधिक सफल होती है। इससे पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।

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तर्पण और पिंडदान करते समय रखें इन बातों का विशेष ध्यान

श्राद्ध के दौरान सही विधि-विधान और नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। विशेषकर सोमवार, मंगलवार और बुधवार को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  1. दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण और पिंडदान करें, क्योंकि यह दिशा पितरों की मानी जाती है।

  2. भोजन पूरी तरह शुद्ध और शाकाहारी होना चाहिए।

  3. भोजन में निम्न वस्तुएं अवश्य शामिल करें:

    • गंगा जल

    • तिल

    • शहद

    • देसी घी

  4. कुछ विशेष खाद्य सामग्री का उपयोग फलदायी माना गया है, जैसे:

    • उड़द, मसूर, अरहर दाल

    • लौकी, बैंगन, शलगम जैसी सब्जियाँ

    • लाल या बैंगनी रंग के फूल

    • बेलपत्र और केवड़ा

इन सभी पदार्थों का उपयोग करने से तर्पण और श्राद्ध की प्रक्रिया संपूर्ण और प्रभावकारी मानी जाती है।

श्राद्ध का सही दिन और सही विधि से मिलेगी पितरों की कृपा

श्राद्ध पक्ष का समय पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद को पाने का विशेष अवसर होता है। यदि आप किसी कारणवश अपने पितरों की मृत्यु तिथि नहीं जानते या उन्हें विधिवत श्रद्धांजलि नहीं दे सके हैं, तो सोमवार, मंगलवार और बुधवार जैसे विशेष दिन आपके लिए सुनहरा मौका हो सकते हैं।

इन दिनों पिंडदान, अन्नदान, शैय्यादान और नारायण बलि जैसी वैदिक क्रियाएं करने से न केवल पितरों की आत्मा तृप्त होती है, बल्कि आपको और आपके परिवार को भी उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही यदि कुंडली में पितृ दोष हो तो उचित सेवा और धार्मिक नियमों का पालन करके उसे भी शांति दी जा सकती है।

श्राद्ध एक कर्तव्य है, न कि कोई बोझ। यह वह पुल है जो वर्तमान और अतीत को जोड़ता है और हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है। इसलिए इस पवित्र काल में पूर्ण श्रद्धा और विधि से पितरों की सेवा अवश्य करें।

अगर आप अपनी कुंडली के आधार पर किसी महत्वपूर्ण कार्य को करने के लिए शुभ समय जानना चाहते हैं तो आप एस्ट्रोयोगी के विशेषज्ञ ज्योतिषियों से संपर्क कर सकते हैं। आपके लिए पहली कॉल होगी बिलकुल फ्री।

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