नगुला चविथी व्रत कथा

नगुला चविथी व्रत कथा

हिंदू धर्म में सर्पों का अपना ही एक अलग महत्व है इसलिए सर्प समुदाय के प्रति कतृज्ञता व्यक्त करने के लिए नगुला चविथी(nagula chavithi) का पर्व मनाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए सांप अनेक रूप में सहायक सिद्ध होते हैं। सर्दी के सीजन में सांप अपने बिल से बाहर निकलते हैं और चूहों को खा जाते हैं और ताजे पानी में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म जीवों को भी मार देते हैं। वहीं ज्योतिष में भी सर्पों को एक उच्च स्थान प्राप्त है। मान्यता है कि सर्प देवताओं की पूजा करने से राहु ग्रह के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। 

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत खोज के लिए समुद्र मंथन किया तो सर्प को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस मंथन में हलाहल विष भी निकला समस्त संसार की भलाई के लिए भगवान शिव ने विष पान किया। जिसके बाद उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। कहा जाता है कि इस विष की एक बूंद धरती पर गिर गई और मानव जाति ने इस विष को बुरे प्रभाव को कम करने के लिए धरती पर सर्पों की पूजा शुरू कर दी। तब से धरती पर नगुल चविथी पर्व को मनाया जाने लगा। 

 

दूसरी पौराणिक कथा

नगुला चविथी से संबंधित किवदंतियां हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथानुसार, एक बार राज जन्मेजय ने समस्त नाग जाति के विनाश हेतु सर्पमेध यज्ञ का आयोजन करवाया, जिसकी वजह से संसार के सभी सर्प और नाग यज्ञवेदी में गिरने लगे। तब नागराज तक्षक ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए देवताओं से मदद मांगी, लेकिन प्रतापी मेंत्रों की वजह से तक्षक के साथ-साथ इंद्र और अन्य देवतागण भी वेदी की तरफ खिंचने लगे। तब देवता और सर्प ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे और उन्होंने मदद की गुहार लगाई। चतुरानन ने उनसे मनसा देवी के पुत्र अस्तिका की सहायता लेने को कहा। ब्रह्मा जी के कहेनुसार देवता और सर्पगण मनसा देवी के पास पहुंचे और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। तब माती ने अपने पुत्र अस्तिका को आज्ञा दी कि वह सर्पमेध यज्ञ को रुकवाए। माता की आज्ञा का पालन करते हुए अस्तिका ने यज्ञ को रोक दिया और सभी नागजाति और देवताओं की रक्षा की। यह कार्य नाग चतुर्थी के दिन ही किया गया, जिस वजह से माता मनसा ने देवताओं और मानव जाति को यह आशीर्वाद दिया कि जो भी इस दिन नागों की पूजा करेगा और इस कथा का श्रवण करेगा उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। तब से इस दिन नगुला चविथी उत्सव मनाया जाता है। 


नगुला चविथी का व्रत नवविवाहित महिलाएं संतानप्राप्ति के लिए करती हैं। वे घर, मंदिरों, बांबियों में जाकर नाग देवताओं की पूजा करती हैं और उन्हें दूध पिलाती हैं।



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