भाद्रपद यानि भादों मास की शुक्ल तृतीया तिथि को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है। हरतालिका तीज और हरियाली तीज में अंतर है इन्हें समान न समझें क्योंकि हरियाली तीज सावन माह में मनाई जाती है जबकि हरतालिका तीज भादों में जिसका अपना विशेष महत्व होता है। दरअसल मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती की आराधना करने, व्रत रखने से सुहागिन स्त्रियों को अपने सुहाग की लंबी आयु एवं अविवाहित कन्याओं को मनोवांछित वर प्राप्त होने का वरदान मिलता है।
जैसा कि लेख में ऊपर जिक्र किया गया है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यह तिथि 09 सितंबर को है।
हरतालिका व्रत तिथि – बृहस्पतिवार, 09 सितंबर 2021
प्रात:काल हरतालिका पूजा समय – सुबह 06 बजकर 03 मिनट से सुबह 08 बजकर 33 मिनट तक
प्रदोष हरतालिका पूजा समय - शाम 06 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक
तृतीया तिथि आरंभ – रात 02 बजतक 33 मिनट (09 सितंबर 2021) से
तृतीया तिथि समाप्त – रात 12 बजकर 18 मिनट (10 सितंबर 2021) तक
यह दो शब्दों के मेल से बना माना जाता है हरत एवं आलिका। हरत का तात्पर्य हरण से लिया जाता है और आलिका सखियों को संबोंधित करता है। मान्यता है कि इस दिन सखियां माता पार्वती की सहेलियां उनका हरण कर उन्हें जंगल में ले गई थीं। जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिये कठोर तप किया था। तृतीया तिथि को तीज भी कहा जाता है। हरतालिका तीज के पिछे एक मान्यता यह भी है कि जंगल में स्थित गुफा में जब माता भगवान शिव की कठोर आराधना कर रही थी तो उन्होंने रेत के शिवलिंग को स्थापित किया था। मान्यता है कि यह शिवलिंग माता पार्वती द्वारा हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि को स्थापित किया था इसी कारण इस दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।
दरअसल माता पार्वती के कठोर तप से उनकी दशा बहुत खराब रहने लगी थी उनके पिता उनकी इस दशा से काफी परेशान थे। एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। नारद मुनि की बात सुनकर गिरीराज बहुत प्रसन्न हुए। उधर भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि गिरीराज पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी। फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है। यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुई उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा। माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता गिरीराज की नज़रों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आयीं।
यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिये कठोर तप शुरु किया जिसके लिये उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की। संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की। इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया। उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वति को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उधर माता पार्वती के पिता अपनी भगवान विष्णु से पार्वती के विवाह का वचन दिये जाने के पश्चात पुत्री के अक्समात घर छोड़ देने से व्याकुल थे। पार्वती को तलाशते तलाशते वे उस स्थान तक आ पंहुचे इसके पश्चात माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया। तब पिता गिरीराज भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए।
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