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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को “श्रावणी तीज” कहते हैं। परन्तु ज्यादातर लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं। यह त्यौहार मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियाँ माता पार्वती जी और भगवान शिव जी की पूजा करती हैं। इस दिन महिलायें निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत को करवा चौथ से भी कठिन व्रत बताया जाता है। इस दिन महिलायें पूरा दिन बिना भोजन-जल के दिन व्यतीत करती हैं तथा दूसरे दिन सुबह स्नान और पूजा के बाद व्रत पूरा करके भोजन ग्रहण करती हैं। इसी वजह से इस व्रत को “करवा चौथ” से भी कठिन माना जाता है।
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साल 2021 में हरियाली तीज 11 अगस्त दिन बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन जगह-जगह झूले पड़ते हैं। इस त्यौहार में स्त्रियाँ गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और नाचती हैं। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है।
इस व्रत के महत्त्व की कथा भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण करवाने के उद्देश्य से इस प्रकार से कही थी-
शिवजी कहते हैं: हे पार्वती। बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था।
इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे। ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे।
जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोले – ‘हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ।’ नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी। यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं।"
शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, "तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया। लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ। तुम मुझे यानि कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी। तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई। तुम्हारी सहेली से सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना। इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा। उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली।
तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी। भाद्रपद तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की। इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा कि ‘पिताजी, मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है। और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे।" पर्वत राज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गये। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि – विधान के साथ हमारा विवाह किया।”
भगवान् शिव ने इसके बाद बताया कि – “हे पार्वती! भाद्रपद शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्त्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूं। भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।
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