देवों के देव महादेव भगवान शिव-शंभू, भोलेनाथ शंकर की आराधना, उपासना का त्यौहार है महाशिवरात्रि। वैसे तो पूरे साल शिवरात्रि का त्यौहार दो बार आता है लेकिन फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी अर्थात अमावस्या से एक दिन पहले वाली रात को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार महाशिवरात्रि का यह त्यौहार इस बार 1 मार्च 2022 को मनाया जायेगा।
भगवान शिव की आराधना ज्योतिषीय उपायों के लिये भी की जाती है, इस बारे में जानकारी के लिये आप एस्ट्रोयोगी पर इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से गाइडेंस ले सकते हैं। अभी बात करने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें और 91-9999091091 पर कॉल करें।
माना जाता है कि जब कुछ नहीं था अर्थात सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान ब्रह्मा के शरीर भगवान शंकर रुद्र रुप में प्रकट हुए थे। कई स्थानों पर यह भी माना जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी इसी दिन हुआ था। इसलिये महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों एवं भगवान शिव के उपासकों का एक मुख्य त्यौहार है। ऐसा भी माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने, व्रत रखने और रात्रि जागरण करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं एवं उपासक के हृद्य को पवित्र करते हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान शिव की सेवा में दान-पुण्य करने व शिव उपासना से उपासक को मोक्ष मिलता है।
महाशिवरात्रि से जुड़ी हुई कई पौराणिक कथाएं भी काफी प्रचलित हैं। एक ऐसी ही प्रेरणादायक कथा है चित्रभानु की। चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। वह जंगल के जानवरों का शिकार कर अपना भरण-पोषण करता था। उसने एक सेठ से कर्ज ले रखा था लेकिन चुका नहीं पा रहा था एक दिन सेठ ने उसे शिव मठ में बंदी बना लिया संयोगवश उस दिन महाशिवरात्रि थी लेकिन इसका चित्रभानु को जरा भी भान न था। वह तल्लीनता से शिवकथा, भजन सुनता रहा। उसके बाद सेठ ने मोहलत देकर उसे छोड़ दिया। उसके बाद वह शिकार की खोज में जंगल में निकल पड़ा। उसने एक तालाब के किनारे बिल्व वृक्ष पर अपना पड़ाव डाल दिया। उसी वृक्ष के नीचे बिल्व पत्रों से ढका हुआ एक शिवलिंग भी था। शिकार के इंतजार में वह बिल्व पत्रों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा जो शिवलिंग पर गिरते। कुछ शिवकथा का असर कुछ अंजाने में महाशिवरात्रि के दिन वह भूखा प्यासा रहा तो उसका उपवास भी हो गया, बिल्व पत्रों के अर्पण से अंजानें में ही उससे भगवान शिव की पूजा भी हो गई इस सबसे उसका हृद्य परिवर्तन हो गया व एक के बाद एक अलग-अलग कारणों से मृगों पर उसने दया दिखलाई। इसके बाद वह शिकारी जीवन भी छोड़ देता है और अंत समय उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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कहानी का निष्कर्ष है कि भगवान शिव शंकर इतने दयालु हैं कि उनकी दया से एक हिंसक शिकारी भी हिंसा का त्याग कर करुणा की साक्षात मूर्ति हो जाता है। कहानी का एक अन्य सार यह भी है कि नीति-नियम से चाहे न हो लेकिन सच्चे मन से साधारण तरीके से भी यदि भगावन शिव का स्मरण किया जाये, शिवकथा सुनी जाये तो भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उपासक के सभी सांसारिक मनोरथ पूर्ण करते हुए उसे मोक्ष प्रदान करते हैं।
वैसे तो किसी भी शिव मंदिर में भगवान शिव की आराधना की जा सकती है। लेकिन किसी निर्जन स्थान पर बने शिव मंदिर की साफ-सफाई कर भगवान शिव की पूजा की जाये तो भगवान शिव शीघ्र मनोकामना पूरी करते हैं।
नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर पर महाशिवरात्रि के दिन भक्तों का भारी जमावड़ा होता है।
इसके अलावा भारत भर में बारह स्थानों पर 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं
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