कुंडली में सामान्यतः ज्यादातर राजयोगों की ही चर्चा होती है कई बार ज्योतिषी कुछ दुर्योगों को नजरअंदाज कर जाते हैं जिस कारण राजयोग फलित नहीं होते और जातक को ज्योतिष विद्या पर संशय होता है परन्तु कुछ ऐसे दुर्योग हैं जिनके प्रभाव से जातक कई राजयोगों से लाभांवित होने से चूक जाते हैं हम आपको कुछ ऐसे ही योगों से परिचित करायेंगे जिनके कुंडली में उपस्थित होने से राजयोग भंग हो जाता है।
तो आइये जानते हैं वह दुर्योग कौन से हैं और कुंडली में कैसे बनते हैं।
कुंडली में कहीं भी सूर्य अथवा चन्द्रमा की युति राहू या केतु से हो जाती है तो इस दोष का निर्माण होता है। यदि यह योग चन्द्रमा के साथ बना तो जातक हमेशा डर व घबराहट महसूस करता है और चिड़चिड़ापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है साथ ही माँ के सुख में कमी, किसी भी कार्य को शुरू करने के बाद उसे अधूरा छोड़ देना व नये काम के बारे में सोचना इस योग के लक्षण हैं।
किसी भी प्रकार के फोबिया अथवा किसी भी मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेशन, सिज्रेफेनिया आदि इसी योग के कारण माने गये हैं यदि चन्द्रमा अधिक दूषित हो जाता है या कहें अन्य पाप प्रभाव में भी हो जाता है तो मिर्गी, चक्कर व मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है।
सूर्य द्वारा बनने वाला ग्रहण योग पिता के सुख में कमी करता है जातक का शारारिक ढांचा कमजोर रह जाता है। आंखों व ह्रदय संबंधी रोगों का कारक बनता है सरकारी नौकरी या तो मिलती नहीं या उस में निर्वाह मुश्किल से होता है। डिपार्टमैंटल इंक्वाइरी, सजा, तरक्की में रूकावट आदि सब इसी योग का परिणाम हैं।
गुरू की किसी भाव में राहू से युति चंडाल योग बनाती है शरीर पर घाव का चिन्ह लिए ऐसा जातक भाग्यहीन होता है। आजीविका से जातक कभी संतुष्ट नहीं होता, बोलने में अपनी शक्ति व्यर्थ करता है व अपने सामने औरों को ज्ञान में कम आंकता है जिस कारण स्वयं धोखे में रहकर पिछड़ जाता है यह योग जिस भी भाव में बनता है उस भाव को साधारण कोटि का बना देता है।
मतांतर से कुछ विद्वान राहू की दृष्टि गुरू पर या गुरू की केतू से युति को भी इस योग का लक्षण मानते हैं।
लग्न या चन्द्रमा से चारों केन्द्र स्थान खाली हों या चारों केन्द्रों में पाप ग्रह हों तो दरिद्र योग बनता है ऐसा जातक अरबपति के घर में जन्म में भी ले ले तो भी उसे आजीविका के लिए भटकना पड़ता है व दरिद्र जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
चन्द्रमा से छठे या आठवें भाव में गुरू हो व ऐसा गुरू लग्न से केंद्र में न बैठा हो तो शकट योग का होना माना जाता है ऐसा जातक जीवन भर किसी न किसी कर्ज से दबा रहता है व सगे संबंधी उपेक्षा करते हैं और जातक अपने जीवन में अनगिनत उतार चढाव देखता है।
यदि चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ राहू से युक्त हो 12वें,5वें या 8वें भाव में हो तो कलह योग माना गया है ऐसा जातक जीवन भर किसी न किसी बात को लेकर कलह करता रहता है और अंत में इसी कलह के कारण तनाव में उसका जीवन तक नष्ट हो जाता है।
यद्दपि उपरोक्त दुर्योग किसी की कुंडली में राजयोग को भंग कर देते हैं किन्तु हमारे ज्योतिष शास्त्र में किसी दुर्योग को उपाय के माध्यम से कम किया जा सकता है।संबन्धित ग्रह की पूजा, दान, मंत्र जाप से इन योगों के दुष्प्रभावों को कम करके जीवन खुशहाल बनाया जा सकता है।
यह आलेख एस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्य पं. मनोज कुमार द्विवेदी द्वारा लिखा गया है। आपकी कुंडली में यह दुर्योग हैं या नहीं? और यदि हैं तो कैसे इनके प्रभाव से बचा जा सकता है? इस बारे में आप पंडित जी से ऑनलाइन परामर्श ले सकते हैं। बात करने के लिये क्लिक करें या फिर हमें 9999091091 पर कॉल करें।
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