हिंदू मान्यता के अनुसार, प्रत्येक वर्ष में दो बार नवरात्र आती है। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरु होकर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तक चलने वाले नवरात्र चैत्र नवरात्र व वासंती नवरात्र कहे जाते हैं। यह वर्ष के पहले नवरात्रे भी होते हैं। इसके पश्चात शरद ऋतु के आरंभ में आश्विन माह में आने वाले नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाते हैं। यह नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरु होकर नवमी तिथि तक रहती है। दोनों ही नवरात्रों में देवी के नौ रूपों का पूजन किया जाता है। मां दुर्गा की पूजा करने की विधि दोनों नवरात्रों में लगभग एक समान रहती है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को रामनवमी पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2021 में चैत्र (वसंती) नवरात्रि व्रत 13 अप्रैल से शुरु होंगे व 21 अप्रैल को रामनवमी तक रहेंगें। साथ ही नवरात्रि व्रत का पारण 22 अप्रैल यानि दशमी तिथि को होगा।
हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिनकी दशमी तिथि पर कटाई की जाती है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।
व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है। इसी वेदी पर घट यानि कलश को स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है। इस दिन "दुर्गा सप्तशती" का पाठ किया जाता है। पाठ पूजन के समय अखंड दीप जलाया जाता है जो कि व्रत के पारण तक जलता रहना चाहिये।
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कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।
कलश स्थापना के दिन ही नवरात्रि की पहली देवी, माँ दुर्गा के शैलपुत्री रूप की आराधना की जाती है| इस दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं और सायंकाल में दुर्गा माँ का पाठ और विधिपूर्वक पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं|
नवरात्री की पहली तिथि पर सभी भक्त अपने घर के मंदिर में कलश स्थापना करते हैं। इस कलश स्थापना की भी अपनी एक पूजा विधि, एक मुहूर्त होता है। कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है। घट स्थापना का मुहूर्त इस प्रकार है:-
घट स्थापना तिथि व मुहूर्त - 13 अप्रैल 2021, मंगलवार,
मुहूर्त - सुबह 05 बजकर 28 मिनट से सुबह 10 बजकर 14 मिनट से
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 12 अप्रैल 2021, सुबह 08 बजे से
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 13 अप्रैल 2021, सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक
माता के नौ रुप -
माँ शैलपुत्री - नवरात्रि के पहले दिन की पूजा विधि | माँ ब्रह्मचारिणी- नवरात्रे के दूसरे दिन की पूजा विधि | माता चंद्रघंटा - तृतीय माता की पूजन विधि
कूष्माण्डा माता- नवरात्रे के चौथे दिन करनी होती है इनकी पूजा | स्कंदमाता- नवरात्रि में पांचवें दिन होती है इनकी पूजा
माता कात्यायनी- नवरात्रि के छठे दिन की पूजा | माता कालरात्रि - नवरात्रे के सातवें दिन होती है इनकी पूजा | माता महागौरी - अष्टमी नवरात्रे की पूजा विधि
माता सिद्धिदात्री - नवरात्रे के अंतिम दिन की पूजा