ज्योतिष शास्त्र में चंद्र ग्रहण का विशेष महत्व है, साल 2022 में कब और किस समय लगने जा रहा है चंद्र ग्रहण? वर्ष 2022 में कुल कितने चंद्र ग्रहण पड़ेंगे, आइए जानते हैं चंद्र ग्रहण की तिथि, समय और स्थान के बारे में।
चंद्र ग्रहण को खगोलीय घटना माना जाता हैं जिसका धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्व है। चंद्र ग्रहण का ज्योतिष के साथ-साथ सभी राशियों पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। वर्ष 2022 में चंद्र ग्रहण किस तिथि पर पड़ेगा और किस समय से ग्रहण का होगा आरम्भ? चंद्र ग्रहण 2022 के माध्यम से नए साल में ग्रहण की तिथियां, साथ ही ग्रहण का समय, कहाँ दिखाई देगा ग्रहण और सूतक काल का महत्व एवं नियम के बारे में जानेंगे। नए साल में आने वाले चंद्र ग्रहण से संबंधित किसी भी जानकारी के लिए भारत के शीर्ष ज्योतिषियों से ऑनलाइन परामर्श करने के लिए यहां क्लिक करें!
ग्रहण को एक खगोलीय घटना माना जाता है। पुरातनकाल से ही ग्रहण को हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में अत्यधिक महत्व दिया गया है। मान्यता है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण के प्रभाव से प्रकृति में अनेक परिवर्तन देखने को मिलते हैं। अगर हम आधुनिक विज्ञान के बारे में बात करें तो ग्रहण को एक खगोलीय घटना कहा गया है। यह तब घटित होती है जब एक खगोलीय पिंड की छाया दूसरे खगोलीय पिंड पर पड़ती है, इसे ही ग्रहण कहते है। ग्रहण मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है: पहला सूर्य ग्रहण और दूसरा चंद्र ग्रहण।
ऐसा कहा जाता है कि चंद्र ग्रहण उस स्थिति में होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। इस घटना में सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है और इस कारण चंद्रमा की दृश्यता अत्यंत कम हो जाती है। इस बात का आपको ध्यान रखना चाहिए कि चंद्र ग्रहण सदैव पूर्णिमा की रात को लगता है। चंद्र ग्रहण का ज्योतिष में भी विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि चंद्र ग्रहण शुरु होने से पहले ही सूतक काल का आरम्भ हो जाता है और परिवेश में आसुरी शक्तियों के प्रभाव में बढ़ोतरी हो जाती है है। चंद्र ग्रहण से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं भी प्रचलित है।
ज्योतिष की दृष्टि से चंद्र ग्रहण को शुभ घटना नहीं माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब ग्रहण लगता है उस समय चंद्रमा पीड़ित हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब राहु और केतु चंद्रमा के साथ किसी राशि या घर में एक साथ आते हैं, तो उस स्थिति में चंद्र ग्रहण लगता है। चंद्र ग्रहण के आरंभ और समाप्ति के बाद कुछ कार्यों को करना अनिवार्य बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि जिस समय ग्रहण लगता है उस समय वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है, जिसके दुष्प्रभावों के कारण जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। किसी भी ग्रहण के दौरान पूजा और मांगलिक कार्यों का करना निषेध होता है।
ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और इन्ही नवग्रहों में सूर्य और चंद्रमा भी आते हैं। यही वजह है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण की महत्ता ओर भी बढ़ जाती है। ऐसा मान्यता है कि कोई भी ग्रहण घटित होने से पूर्व ही उसका प्रभाव दिखना शुरू हो जाता है और ग्रहण की समाप्ति के बाद भी इसका प्रभाव कई दिनों तक रहता है। ग्रहण सिर्फ मनुष्यों को ही नहीं अपितु जल, जीव और पर्यावरण के अन्य घटकों को भी प्रभावित करता है।
ज्योतिष में चंद्र ग्रह का अत्यधिक महत्व है जिसे नवग्रहों में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। चंद्र ग्रह कर्क राशि का स्वामी है और जन्म कुंडली में माता का कारक ग्रह माना गया है। कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होने पर पारिवारिक खुशहाली, तीव्र बुद्धि और अच्छे व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है। कुंडली में कमजोर चंद्रमा के कारण शारीरिक विकास में कमी आती है और ऐसे व्यक्ति का मन चंचल रहता है।
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अब हम जानेंगे कि चन्द्र ग्रहण कितने प्रकार के होते है और प्रत्येक ग्रहण किस स्थिति में लगता हैं:
पूर्ण चंद्र ग्रहण: चंद्र ग्रहण का पहला प्रकार होता है पूर्ण चंद्र ग्रहण। यह चंद्र ग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा और सूरज के बीच पृथ्वी आ जाती है,और पृथ्वी पूरी तरह से सूर्य को ढक लेती है। इस स्थिति में चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता है जिसे पूर्ण चंद्र ग्रहण कहते है।
आंशिक चंद्र ग्रहण: चंद्र ग्रहण का दूसरा प्रकार होता है आंशिक चंद्र ग्रहण। जब चंद्रमा और सूर्य के मध्य पृथ्वी आ जाती है और पृथ्वी आंशिक रुप से चंद्रमा को ढक लेती है तो इस स्थिति को आंशिक चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
उपच्छाया चंद्र ग्रहण: चंद्र ग्रहण का तीसरा प्रकार होता है उपच्छाया चंद्र ग्रहण। इस स्थिति में पृथ्वी की छाया वाले क्षेत्र में चंद्रमा आ जाता है और चंद्रमा पर पड़ने वाला सूर्य का प्रकाश कटा हुआ दिखाई देता है।
आने वाले नए साल में कुल 4 ग्रहण लगेंगे जिसमे 2 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण होंगे। इस साल में लगने वाले चंद्र ग्रहण की तिथियां, समय एवं दृश्यता आदि जानकारी नीचे दी गई है जो इस प्रकार है:
वर्ष 2022 में कुल दो चंद्र ग्रहण लगेंगे जिसमे पहला चंद्र ग्रहण 16 मई 2022 को सोमवार के दिन लगने जा रहा है। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा और इस ग्रहण का आरम्भ भारतीय समयानुसार सुबह 07:02 बजे होगा और दोपहर 12:20 बजे समाप्त होगा। साल के पहले चंद्र ग्रहण की दृश्यता दक्षिणी-पश्चिमी एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका के अधिकांश भाग, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, अटलांटिक और अंटार्कटिका में होगी। यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा और यहां सूतक काल के नियम मान्य नहीं होंगे।
वर्ष 2022 में साल का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण 8 नवंबर को मंगलवार के दिन पड़ेगा जिसका आरम्भ दोपहर 17:28 बजे होगा और अंत 19:26 बजे समाप्त होगा। यह चंद्र ग्रहण उत्तर-पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, अधिकांश दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक और अंटार्कटिका में दिखाई देगा। यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखेगा, इसलिए सूतक काल मान्य होगा।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, चंद्र ग्रहण के आरम्भ होने से पहले ही सूतक काल लग जाता है, इस समय को अशुभ माना जाता है। इस अवधि के दौरान किसी भी शुभ कार्य एवं मांगलिक कार्य को करना वर्जित होता है। सूर्य या चंद्र ग्रहण दोनों ही ग्रहणों में 12 घंटे पहले अर्थात 4 पहर पूर्व ही सूतककाल लग जाता है। प्रत्येक पहर की अवधि 3 पहर की होती है। इस समय कुछ विशेष सावधानियों को बरतना आवश्यक होता है। ऐसे में व्यक्ति को ग्रहण से पूर्व लगने वाले सूतक काल के समय की जानकारी होना अनिवार्य है जैसेकि ग्रहण का सूतक किस समय आरम्भ और समाप्त होगा। इस स्थिति में सूतक काल की गणना के लिए ग्रहण की तिथि एवं समय का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
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वैदिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले अमृत को जब मोहिनी रुप धारण करके भगवान विष्णु समस्त देवताओं को बांट रहे थे तो स्वरभानु नामक असुर देवता का रुप धारण कर देवताओं के बीच आ गया था। सूर्य और चंद्रमा ने स्वरभानु को पहचान लिया था और उन्होंने यह बात भगवान विष्णु को बता दी। इसके पश्चात भगवान विष्णु ने अपने चक्र से स्वरभानु के धड़ को सिर से अलग कर दिया। लेकिन स्वरभानु की मृत्यु नहीं हुई क्योंकि तब तक उसके गले में अमृत की कुछ बूंदें जा चुकी थीं। उसके बाद से स्वरभानु के सिर वाले भाग को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना गया। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य देव और चंद्र देव ने ही राहु-केतु अर्थात स्वरभानु का रहस्य भगवान विष्णु को बताया था इसलिए सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने के कारण राहु-केतु उन्हें ग्रहण लगाकर शापित करते हैं।
✍️ By- Team Astroyogi