वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में ग्रह, नक्षत्रों और भावों की स्थिति के अनुरूप ही योग और दोष बनते हैं। यदि किसी जातक की कुंडली में ग्रह और नक्षत्रों की चाल अच्छी नहीं है तो उसके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उसे जीवनभर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और मनचाहा परिणाम के लिए इंतजार भी करना पड़ता है। ऐसा ही एक योग है ग्रहण योग(Grahan yog in Astrology), जिसे ज्योतिष में अशुभ योग कहते हैं। इस योग के निर्माण से जातक को जीवन में असफलता मिलती है और आर्थिक तंगी बनी रहती है। यदि किसी योग्य ज्योतिषाचार्य से सलाह लेकर इसके निवारण को जान लिया जाए तो आपकी परेशानियां कम हो सकती हैं।
ग्रहण शब्द संस्कृत से लिया गया है। वैदिक ज्योतिष में राहु और केतु को सूर्य या चंद्रमा पर ग्रहण लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सूर्य को इच्छा शक्ति का कारक और चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। जब किसी कुंडली के 12 भावों में किसी भी भाव में सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु या केतु में से कोई भी विराजमान हो तो ग्रहण योग बनता है। खास बात यह है कि जिस भाव में यह योग बनता है उस भाव से संबंधित परिणामों में अशुभ प्रभाव डालता है। यदि आप कुंडली मे योग के बारें मे व्यक्तिगत परामर्श के लिए, आप Astroyogi.com पर ज्योतिषियों से परामर्श कर सकते हैं।
जिस तरह सूर्य ग्रहण लगने पर अँधकार छा जाता है और चंद्र ग्रहण लगने पर चांदनी खो जाती है। उसी तरह जीवन में ग्रहण योग बनने पर जातक को सभी कार्य रुक जाते हैं और कई बार कार्य पूरा होते होते अचानक से बीच में रुक जाता है। ऐसी स्थिति में ग्रहण योग बनता है।
कुंडली में ग्रहण योग निर्माण से गर्भधारण करने में समस्याएं आती हैं और इस योग में पैदा हुआ जातक हमेशा बीमार ही रहता है।
इस योग की वजह से आपके घर या व्यापार में अचानक से कोई बाधा पैदा हो सकती है, जिसकी वजह से आपको मानसिक तनाव पैदा हो सकता है।
आपके घर और व्यावसायिक परिसर में शांति और सद्भाव की कमी बनी रहती है और जब भी हम प्रवेश करते हैं तो हम नकारात्मक वाइब्स महसूस करते हैं।
कुंडली में इस योग की वजह से आपके द्वारा किया गया परिश्रम भी आपकी मनचाहा परिणाम दिलाने में असमर्थ होता है।
ग्रहण योग के कारण व्यक्ति को सही करियर चुनने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है, कार्यक्षेत्र में ग्रोथ और इंक्रीमेंट प्राप्त करने में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
पुरानी बीमारियाँ व्यक्ति को घेर लेती हैं, निराशा और अवसाद व्यक्ति के जीवन को बर्बाद कर देते हैं।
यदि ग्रहण योग सातवें घर में बनता है तो यह जीवनसाथी के साथ मतभेद की स्थिति पैदा करता है।
कुंडली में ग्रहण योग से जातक को समाज में अपयश और बेइज्जती का सामना करना पड़ सकता है।
कुंडली में इस योग के निर्माण से संतान की शिक्षा पर भी गहरा असर पड़ता है।
एस्ट्रोयोगी एस्ट्रोलॉजर की माने तो कभी कभार किसी जातक की कुंडली में शुभ केतु और शुभ सूर्य की युति होने से जातक को शुभ फल भी प्राप्त हो जाता है। जातक को कार्यक्षेत्र में ग्रोथ, इंक्रीमेंट और प्रमोशन मिल सकता है एवं जातक को पुत्ररत्न की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार कुंडली में शुभ राहु के साथ चंद्रमा की युति शक्ति योग बना देता है। इस योग से जातक को ऐश्वर्य, सुख सुविधा, करियर में उन्नति, व्यापार में विस्तार तथा प्रभुत्व वाला कोई पद आदि की प्राप्ति हो सकती है।
सप्ताह के प्रत्येक दिन सूर्य को जल अर्पित करें।
अविवाहित कन्या को लाल कपड़ा भेंट करें।
रविवार को नमक का सेवन न करें।
आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप करें।
महा मृत्युंजय मंत्र का 1,25,000 बार जप करें।
यदि आपके पास एक गुरु है, तो आपको अपने गुरु का सम्मान करना चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए।
राहु और केतु के नकारात्मक प्रभाव को शांत करने के लिए भगवान शिव और हनुमान की पूजा करें।
5 रविवार, और अमावस्या के दिन, आप प्रातः 10 बजे से पहले एक पैकेट गेहूं के दाने और नारियल को बहते जल में अर्पित कर सकते हैं।
अविवाहित लड़की को सफेद कपड़ा दान करें।
कन्याओं को खीर अर्पित करें।
गायत्री मंत्र का जाप करें।
महा मृत्युंजय मंत्र का 1,25,000 बार जप करें।
आप पूर्णिमा के दिन उपवास कर सकते हैं और चंद्रमा को जल चढ़ा सकते हैं।
सोमवार को शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
सोमवार के दिन सफेद खाद्य पदार्थों का दान करें।
आप अपने घर में पूजा स्थल पर सिद्धि यंत्र रख सकते हैं। आप घर पर महा मृत्युंजय यंत्र, हनुमान यंत्र, या राहु / केतु यंत्र भी रख सकते हैं। ये उपाय पूरी तरह से इन दोषों की नकारात्मकता को दूर नहीं कर सकते हैं, लेकिन इसके प्रभावों की डिग्री को कम करने में निश्चित रूप से आपकी मदद करते हैं। इसके अलावा यदि कोई जातक ग्रहण योग से परेशान है तो उसे किसी अनुभवी ज्योतिषाचार्य से सलाह लेनी चाहिए, जो कुंडली विश्लेषण करके उचित सलाह दे सके।