हंस योग

हंस योग

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जातक कुंडली में पंच महापुरुष योग का बड़ा महत्व होता है। इस योग का निर्माण तब होता है जब कुंडली में बुध, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि ग्रह केंद्र भावों में अपनी-अपनी राशि में मजबूत स्थिति में बैठे हुए हों। इन पंच महापुरुष में आने वाले योग भद्र योग, हंस योग (Hansh Yoga in Astrology), माल्वय योग, रूचक योग और शश योग है। वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति से बनने वाला योग हंस योग कहलाता है। 

कुंडली में हंस योग का निर्माण

बृहस्पति को शिक्षा और ज्ञान का कारक माना जाता है। इसके अलावा ये संतान, धार्मिक कार्य, धन, दान और पुण्य आदि के भी कारक हैं। इसकी वजह से ज्योतिष में बृहस्पति को एक बहुत ही शुभ ग्रह माना जाता है, इसीलिए इसके कारण बनने वाले योग भी अत्यधिक शुभ होते हैं। यदि किसी कुंडली में बृहस्पति लग्न अथवा चन्द्रमा से पहले, चौथे, सातवें और दशवें भाव में कर्क, धनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो हंस योग बनता है। इस योग के प्रभाव से जातक को सुख, समृद्धि, संपत्ति  और आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान कर सकता है। यदि आप कुंडली मे योग के बारें मे व्यक्तिगत परामर्श के लिए, आप Astroyogi.com पर ज्योतिषियों से परामर्श कर सकते हैं। 

  • कुंडली के पहले घर में गुरु के द्वारा भद्र योग बनाने से जातक को व्यवसाय, धन, संपत्ति, प्रतिष्ठा आदि प्राप्त होती है। 

  • कुंडली के चौथे भाव में हंस योग निर्माण से जातक को धार्मिक या आध्यात्मिक संस्था में किसी प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व वाले पद की प्राप्ति हो सकती है।

  • कुंडली के सातवें भाव में हंस योग बनने से  जातक को वैवाहिक सुख, धार्मिक पत्नी और राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उच्च ख्याति प्राप्त हो सकती है।

  • कुंडली के दसवें भाव में हंस योग से जातक को व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे और नौकरीपेशा वालों को सरकारी अथवा निजी क्षेत्र में पदोन्नति, ग्रोथ और इंक्रीमेंट मिल सकता है

हंस योग में जन्मा जातक

  • हंस योग में जन्मा जातक हमेशा बड़ों का सम्मान करता है। इस योग के प्रभाव के कारण जातक अपनी शिक्षा के प्रति गंभीर रहता है और यथासंभव ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है। 

  • इसके अलावा इस योग में पैदा हुआ जातक सुंदर, आकर्षक और ज्ञानवान होता है। उनकी आंखें बहुत सुंदर हो सकती हैं और वाकपटु होते हैं। उन्हें अपने परिवार के सदस्यों से भी स्नेह प्राप्त होता है। 

  • ये जातक अपने पिता की प्रतिष्ठा को बढ़ाते हैं। वे अपने पारिवारिक उत्तरदायित्वों के लिए प्रतिबद्ध और जागरूक होते हैं। वे किसी संगठन में सलाहकार के रूप में भी काम कर सकते हैं या लोगों के लिए एक जीवन कोच बन सकते हैं। 

  • इस योग के प्रभाव के कारण, ये लोग विनोदी और मैत्रीपूर्ण स्वभाव के होते हैं।ये विनम्र होते हैं और किसी न किसी तरह से दूसरों की मदद करने की कोशिश करते हैं।

  • हंस योग की शुभता किसी न किसी तरह से जातक को धनवान बनाने में मदद करती है। जातक का झुकाव धर्म और अच्छे कामों की ओर भी होता है। 

  • इस योग में पैदा हुआ लोग खाने को शौकीन होते हैं और अपने मन का ही करते हैं। हालांकि ये जातक अहंकारी भी होते हैं और खुद को अधिक महत्व देते हैं। वे महत्वाकांक्षी होते हैं और सफलता का पीछा करते हैं।

हंस योग का प्रभाव

हंस योग समाज में यश प्राप्त करने में मदद करता है। ये जातक को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाता है। 

यह योग जातक को सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है। बृहस्पति मीन और धनु राशि का स्वामी है और कर्क राशि में उच्च है। इस राशि में मौजूद होने के कारण बृहस्पति का प्रभाव बढ़ जाता है। इस योग के शुभ प्रभाव के कारण जातक का ज्ञान स्तर बढ़ जाता है और आध्यात्मिक विकास भी होता है। 

बृहस्पति वैवाहिक जीवन, बच्चों और भाई-बहनों में भी खुशी का एक कारक है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थिति में बैठा हो, तो जातक के लिए नए रास्ते खुल जाते हैं और काम बिना किसी बाधा के हो जाता है। जातक में अच्छे गुणों की छाप होती है और वे गलत रास्ते से दूर रहते हैं।

हंस योग फलदायी नहीं होगा

  • किसी कुंडली में अशुभ गुरु के विभिन्न भावों और विभिन्न राशियों में स्थित होने से कुंडली में विभिन्न प्रकार के दोष बन सकते हैं। 

  • यदि किसी जातक की कुंडली में अशुभ गुरु के दशम भाव में कर्क, धनु या मीन राशि में स्थिति होने पर हंस योग शुभ फलदायी नहीं होता है। ऐसे में जातक धर्म के नाम पर ठगी करने लगता है और झूठा संत बनकर दिखावा करता है। 

  • इसके अलावा किसी कुंडली में शुभ गुरु पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर हंस योग शुभ फल प्रदान नहीं करता है। 

  • किसी कुंडली में दो या दो से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव शुभ गुरु पर पड़ने से बनने वाला हंस योग प्रभावहीन हो जाता है।


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