ज्योतिष के अनुसार कुंडली में ग्रहों की स्थिति और उनके तालमेल के अनुसार ही योग बनते हैं। कभी कभार कुछ योग अच्छे फल देते हैं तो कुछ योग बुरे फल भी देते हैं। कुंडली में इसी प्रकार का एक योग है काहल योग (Kahal Yoga in Astrology), जो जातक को शुभ और अशुभ दोनों फल प्रदान करता है। इस योग का प्रभाव ग्रहों की स्थितियों पर निर्भर करता है। तो चलिए जानते हैं यह योग कब बनता है कब शुभ फल प्रदान करता है और कब फलदायी नहीं होता है?
एस्ट्रोलॉजर की माने तो जब कुंडली में तीसरे घर का स्वामी और दशवें घर का स्वामी एक-दूसरे से पहले, चौथे, सातवें और दशवें भाव में स्थित हो तो कुंडली काहल योग बनता है। इस योग के बनने से जातक साहसी और पराक्रमी बन जाता है।
इसके अलावा पहले घर का स्वामी प्रबल हो तो भी काहल योग का निर्माण होता है। जिस जातक की कुंडली में यह योग बनता है वह पुलिस, सेना या सुरक्षा बल के क्षेत्र में ही सफलता प्राप्त करता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में तीसरे ग्रह का स्वामी बृहस्पति से केंद्र में स्थित हो तो, काहल योग का निर्माण होता है।
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कुंडली में स्थान परिवर्तन के कारण निर्मित एक और योग काहल योग है। यदि तृतीय भाव का स्वामी अपने स्थान से अष्टम, द्वितीय और चतुर्थ भाव में चला जाता है तो काहल योग बनता है। खल का अर्थ बुराई है। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है कि यह व्यक्ति को नैतिक से अनैतिक गतिविधियों में बदल देता है।
किसी जातक की कुंडली में यदि तीसरे घर का स्वामी और दशवें घर का स्वामी अशुभ होकर एक दूसरे से 1,4,7 और 10 घर में स्थित हो तो, यह योग प्रभावहीन हो जाता है। ऐसे में जातक अपराधी बन सकता है।
काल योग कभी-कभी व्यक्ति को महान बनाता है जबकि कभी-कभी, इस योग के कारण व्यक्ति को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में यह योग होता है वह अपने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव का सामना करता है। यह योग जन्म कुंडली के घरों के अनुसार अपना परिणाम देता है। काल योग के परिणाम भी घरों के स्वामी की स्थिति के परिवर्तन से प्रभावित होते हैं।