हिन्दू धर्म के लोगों के जीवन में पूर्णिमा को विशेष स्थान प्राप्त है और हर वर्ष के 12 महीनों में 12 पूर्णिमा आती है। आने वाले नए साल में पूर्णिमा की तिथि एवं समय को जानने के लिए पढ़ें।
पूर्णिमा के दिन को हिन्दू धर्म में अत्यधिक शुभ माना जाता है जो प्रत्येक माह आती है। हर महीने आने वाली पूर्णिमा तिथि का अपना अलग महत्व होता है। हिन्दू समुदाय के लोगों के जीवन में पूर्णिमा को विशेष स्थान प्राप्त है। वर्ष के 12 महीनों में 12 पूर्णिमा आती है और हर पूर्णिमा पर कोई न कोई त्यौहार एवं व्रत अवश्य मनाया जाता है। पूर्णिमा 2022 के माध्यम से आने वाली पूर्णिमा की तिथि, दिन एवं समय के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे।
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हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर माह में कुल 30 तिथियां होती है और इन्ही 30 तिथियों को चन्द्रमा की कला के आधार पर 15-15 दिन के दो पक्षों अर्थात भागो में बांटा गया है जो इस प्रकार है:“शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। प्रत्येक पक्ष में 14 तिथियां और एक विशेष तिथि पूर्णिमा या अमावस्या होती है।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, महीने के प्रथम भाग को शुक्ल पक्ष कहते है और शुक्ल पक्ष की पहली तिथि को प्रतिपदा या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा भी कहा जाता है। यह पक्ष प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया से लेकर चतुर्दशी (चौदस) तक निरंतर चलता है और इसकी अगली तिथि अर्थात शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा, पूरनमासी या शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कहते है। इस दिन चन्द्रमा अपने पूर्ण आकार में दिखाई देता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर माह के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा कहा जाता हैं। इस तिथि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपने पूरे आकार में दर्शन देता है। पूर्णिमा को देश में अलग-अलग स्थानों पर अनेक नामों से जाना जाता है जैसे किसी जगह पर पौर्णिमी, तो कहीं पूर्णमासी कहा जाता है।
सनातन धर्म में पूर्णिमा के दिन दान, धर्म के साथ-साथ व्रत करने की भी मान्यता है। कार्तिक वैशाख और माघ महीने की पूर्णिमा के अवसर पर धार्मिक स्थानों पर स्नान, दर्शन एवं दान-धर्म करना अत्यंत शुभ माना जाता है। पूर्णिमा के दिन चंद्र देव की पूजा का विधान है। पूर्णिमा का अत्यंत महत्व होने के कारण पूर्णिमा तिथि पर भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा आदि धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किये जाते हैं। इसके पीछे पौराणिक मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य को हर तरह की सुख,शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा के दिन पूर्वजों का स्मरण करने की भी परंपरा है।
पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में एक पूर्णिमा अवश्य आती है, इस प्रकार से वर्ष के 12 महीने में कुल 12 पूर्णिमा आती हैं। वैदिक मान्यताओं के अनुसार, मानव जीवन के लिए पूर्णिमा को अतिफलदायी माना गया है। हिन्दू कैलेंडर में पूर्णिमा तिथि का निर्धारण चंद्रमा की गति के आधार पर किया जाता है, जिस दिन चन्द्रमा अपने पूरे आकार में निकलता है उस तिथि को पूर्णिमा कहते है, इसके विपरीत जब चन्द्रमा नहीं निकलता है, उस तिथि को अमावस्या कहते हैं।
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ज्योतिष शास्त्र में भी पूर्णिमा तिथि को महत्वपूर्ण माना गया है। इसके अतिरिक्त पूर्णिमा के अवसर पर ही महान आत्माओं के जन्म उत्सव से लेकर बड़े-बड़े त्योहारों को धूमधाम से मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म के लोगों के लिए पूर्णिमा तिथि विशेष रूप से मायने रखती है। वैदिक ज्योतिष में चन्द्रमा को मन का कारक माना गया है। यही कारण है कि चन्द्रमा के अपने पूर्ण आकार में होने से उसका प्रभाव जातक के मन पर सीधा पड़ता है।
अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पूर्णिमा के बारे में बात करें तो चन्द्रमा पानी को अपनी तरफ आकर्षित करता है, और मानव शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता है जिसके कारण पूर्णिमा के दिन मनुष्य के स्वभाव में कुछ न कुछ परिवर्तन जरूर होता है। हिन्दू पंचांग में प्रत्येक पूर्णिमा का अपना विशिष्ट महत्व होता है इसलिए सालभर आने वाली 12 पूर्णिमा पर कोई खास त्यौहार या व्रत मनाया जाता हैं।
पूर्णिमा तिथि पर घरों में भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा करने की परंपरा हैं। पुराणों के अनुसार, पूर्णिमा के दिन अनेक देवी-देवता मानव रूप में परिवर्तित हो गए थे। पूर्णिमा की रात को आसमान में पूरा चाँद दिखाई देता हैं जो रात के अंधकार को अपने प्रकाश से दूर करता है। भविष्य पुराण में पूर्णिमा के विषय में वर्णित है कि पूर्णिमा के दिन किसी धार्मिक स्थल के पवित्र कुंड में स्नानादि करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। अगर तीर्थस्थल पर जाना संभव नहीं है तो आप घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलकर स्नान कर सकते है। पूर्णिमा के दिन पितरों का तर्पण करना भी शुभ माना गया है।
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✍️ By- Team Astroyogi