Chhath Puja Katha: छठ पूजा चार दिनों तक भगवान सूर्य और छठी मइया की उपासना करने का पर्व है। यह एक पवित्र और धार्मिक त्योहार है, जिसके साथ कई महत्वपूर्ण कथाएं मौजूद हैं। यह कथाएं आपको जीवन में इस व्रत का महत्व बताती हैं। इससे सीख लेकर सभी भक्त इस पर्व को पूरी श्रद्धा से मनाते हैं। साथ ही अपने बच्चों की सुरक्षा, संतान सुख और परिवार की समृद्धि की कामना करते हैं।
छठ पूजा पर्व धार्मिक महत्व तो रखता ही है, लेकिन यह आपको प्रकृति के प्रति आभार और संयम भी सिखाता है। वैसे तो इससे जुड़ी बहुत-सी पौराणिक कथाएं हैं लेकिन यहां हम आपको दो सबसे प्रचलित कथाओं के बारे में बताएंगे।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, कहा जाता है कि जब पांडवों ने पासे के खेल में अपना राज्य और सम्मान दोनों खो दिए, तो उनके जीवन में कठिन समय आ गया। वनवास के दौरान उन्हें कई प्रकार की परेशानियों और अभावों का सामना करना पड़ा। ऐसे कठिन दौर में द्रौपदी ने अपने परिवार के सुख और समृद्धि की कामना से भगवान की शरण ली। ऋषि धौम्य ने उन्हें बताया कि अगर वे सूर्य देव और छठी मईया की उपासना पूरी निष्ठा से करें, तो उनकी मनोकामनाएँ पूरी हो सकती हैं।
द्रौपदी ने ऋषि की बात मानकर छठ व्रत आरंभ किया। उन्होंने कठोर उपवास रखा, शरीर और मन दोनों की शुद्धता बनाए रखी और सूर्योदय व सूर्यास्त के समय पूरे श्रद्धा भाव से सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया। उनके हृदय में केवल एक ही इच्छा थी अपने परिवार की खोई हुई प्रतिष्ठा और राज्य की पुनः प्राप्ति, साथ ही अपने पतियों के लिए सुख, स्वास्थ्य और सफलता का आशीर्वाद।
उनकी सच्ची भक्ति और तप से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने द्रौपदी को आशीर्वाद दिया। कहा जाता है कि कुछ समय बाद किस्मत ने करवट ली और पांडवों को फिर से अपना राज्य और गौरव मिल गया।
महाभारत और लोककथाओं में बताया गया यह प्रसंग छठ पूजा को आशा, आस्था और संकल्प का प्रतीक बनाता है। यह व्रत केवल संतान या स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए ही नहीं, बल्कि कठिनाइयों से निकलकर जीवन में नई रोशनी लाने का प्रतीक है, जहाँ विश्वास और प्रार्थना ही सबसे बड़ा बल बन जाते हैं।
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छठ पूजा की व्रत कथा कई प्राचीन कहानियों से जुड़ी हुई है। इनमें से एक कहानी राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी की है। भले ही उनका जीवन ऐश-ओ-आराम में बीत रहा था, फिर भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला। महार्षि कश्यप की सलाह पर उन्होंने कठिन यज्ञ का आयोजन किया। उनके संतान का जन्म मृत अवस्था में हुआ, तब उन्होंने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ माता शश्ठी, जिन्हें छठी मईया के रूप में माना जाता है, की प्रार्थना की। माता ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनका पुत्र जीवित हो गया। यही कहानी इस पर्व की उत्पत्ति को संतान सुख, बच्चों की रक्षा और आशीर्वाद के उत्सव के रूप में दर्शाती है।
इसके अलावा, रामायण से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कथा है जिसमें माता सीता को छठ पूजा करते हुए दिखाया गया है। माना जाता है कि उन्होंने मुंगेर के किनारे गंगा नदी के पास छठ व्रत किया, और उन्हें पुत्र लव और कुश की प्राप्ति का आशीर्वाद मिला। यह ऐतिहासिक और धार्मिक जुड़ाव विशेष रूप से बिहार और झारखंड जैसे क्षेत्रों में छठ पूजा के महत्व को और गहरा बनाता है, जहां यह पर्व बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
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