विजयदशमी या दशहरा भारत में हिंदु धर्म में आस्था रखने वालों के लिये खास पर्व है। श्राद्ध पक्ष के समाप्त होते ही नवरात्र शुरु हो जाते हैं, परंतु इस बार पुरूषोत्म मास आ जाने से यह आगे बढ़ गया।9 दिनों तक देवी की पूजा के बाद दसवें दिन मनाई जाती है विजयदशमी या कहें दसवें दिन दशहरा पर्व मनाया जाता है। मुख्यत: इस त्यौहार को रावण दहन से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि दशहरे के दिन ही भगवान श्री राम ने रावण का अंत कर उस पर विजय प्राप्त की थी इसी कारण इसे विजयदशमी कहा जाता है। विजयदशमी को शक्ति की आराधना का पर्व भी माना जाता है 9 दिनों तक शक्ति के अलग-अलग रुपों की पूजा करने के बाद दसवें दिन दूर्गा प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है। ऐसे में देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्यौहार पर धूम भी अलग तरह की मचती है।
भले ही हिमाचल प्रदेश के लोग दशहरे के पर्व को भगवान राम की रावण पर विजय के रुप में इस त्यौहार को न मनाते हों, भले ही उनके लिये यह अपने कुल देवता की आराधना का पर्व हो लेकिन हिमाचल के कुल्लू में मनाया जाने वाला दशहरा उत्सव काफी प्रसिद्ध है। दशहरे से कई दिन पहले ही इस उत्सव की तैयारियां शुरु हो जाती हैं। कुल देवता को पालकी में बैठाकर नगर यात्राएं निकाली जाती हैं। नृत्यों का आयोजन किया जाता है। दशहरे के दिन का नजारा और भी शानदार होता है।
मैसूर का दशहरा भी देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। विजयदशमी के दिन पूरे मैसूर शहर की रौनक देखने लायक होती है। लाखों बल्बों की रोशनी से राजमहल जगमगा उठता है, सजे-धजे हाथियों का भव्य जुलूस पूरे शहर में निकाला जाता है। मैसूर में दशहरा उत्सव की शुरुआत चामुंडी पहाड़ियों में विराजने वाली देवी चामुंडेश्वरी के मंदिर में दीप प्रज्जवलित कर की जाती है। मैसूर दशहरे के आकर्षण का मुख्य केंद्र विजयदशमी के दिन निकलने वाली जंबो सवारी होती है जिसमें माता चामुंडेश्वरी की सवारी निकाली जाती है।
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व उतर प्रदेश यानि लगभग पूरे उत्तरी भारत में दशहरे को भगवान राम की रावण पर जीत के जश्न के रुप में मनाया जाता है। इस अवसर पर लंकापति रावण के बड़े-बड़े पुतले बनाकार उनका दहन किया जाता है। अंबाला के बराड़ा में पिछले पांच साल से लगातार सबसे ऊंचा पुतला जलाया जाता है। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में इसे दर्ज किया गया है। उत्तर भारत के दशहरे में रामलीला भी खास आकर्षण का केंद्र होती हैं इसमें कुछ शहरों की रामलीला ने तो देश भर में काफी ख्याति तक अर्जित कर ली है। रामलीला का मंचन दशहरे से लगभग दस दिन पहले आरंभ हो जाता है और दशहरे के दिन रावण दहन के साथ इसका समापन होता है। उत्तर भारत में तो रामलीला मंचन के लिये विशेष रुप से मैदान भी तैयार किये जाते हैं। दिल्ली का रामलीला मैदान इसका एक उदाहरण है।
गुजरात व राजस्थान में नवरात्र के दिनों में डांडिया नृत्य किया जाता है, देवी के प्रतीक मिट्टी से सुशोभित रंगीन घड़े को लेकर नृत्य किया जाता है। इस घड़े को ही गरबा कहा जाता है जिस कारण इस नृत्य का नाम भी गरबा नृत्य पड़ा। नृत्य के माध्यम से ही नवरात्र के दिनों में देवी के अलग-अलग रूपों की उपासना व आराधना की जाती है। खास बात यह भी कि नौ दिन उपवास करने के बाद दशहरे के दिन उपवास को खोला जाता है।
बस्तर में दशहरे का उत्सव देशभर में सबसे ज्यादा दिनों तक चलता है। यहां दशहरा उत्सव की शुरुआत श्रावण मास की अमावस्या से हो जाती है और आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी को ओहाड़ी पर्व के साथ इस उत्सव का समापन होता है। पूरे 75 दिन तक चलने वाले इस उत्सव में मां दंतेश्वरी की आराधना की जाती है। दंतेश्वरी बस्तर के निवासियों की आराध्य देवी मानी जाती हैं और दूर्गा का ही एक रुप कही जाती हैं। इस दौरान भीतर रैनी (विजयदशमी), बाहर रैनी (रथ-यात्रा), मुरिया दरबार आदि उत्सव आकर्षण का केंद्र होते हैं।
पश्चिम बंगाल, आसाम, उड़िसा आदि राज्यों में दुर्गा पूजा का उत्सव दशहरे के रुप में मनाया जाता है। जिस प्रकार महाराष्ट्र में गणेशोत्सव को लेकर उत्साह होता है उसी प्रकार इन राज्यों में विशेषकर पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के लिये भव्य तरीके से तैयारियां की जाती हैं। यहां कई दिन पहले से दुर्गा प्रतिमा के पंडाल लगने शुरु हो जाते हैं। षष्ठी के दिन दुर्गा प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है इसके बाद नवमी तक विशेष रुप से लगातार पूजा के आयोजन किये जाते हैं तत्पश्चात दशमी के दिन विशाल जुलूसों के साथ प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।
कुल मिलाकर देश भर में अलग-अलग रुपों में दशहरे के पर्व को बुराई पर अच्छाई की विजय के रुप में मनाया जाता है। शक्ति के अलग-अलग रुपों की पूजा कर मंगल कामना की जाती है।
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