दशहरा शब्द जहन में आते ही हमारे सामने रावण के बड़े-बड़े पुतले धूं-धूं कर जलने लगते हैं। लंबी हंसी के साथ रामलीला के मंचन के दौरान रावण द्वारा बोला ये संवाद ‘मैं लंकापति रावण हूं’ कानों में गूंजने लगता है। वैसे तो रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है, उसके दस सिर दस बुराईयों दस अवगुणों के सूचक हैं। लेकिन रामायण का अध्ययन यदि गहराई से किया जाये हो सकता है हम रावण को नायक भले न मानें लेकिन बतौर खलनायक उससे हमें सहानुभूति अवश्य हो सकती है। तो आईये जानते हैं कि रावण असल में नायक हैं या खलनायक।
पंडितजी का कहना है कि अभी तक हम रावण के जिस रूप से परिचित हैं उसके अनुसार रावण बहुत ही अहंकारी प्रवृति का घंमडी, पापी और क्रूर शासक है। साथ ही वह पराई स्त्रियों के प्रति भी बुरी नजर रखता है, यही कारण है कि वह शूर्पण खां के साथ घटी घटना का सहारा लेकर छलपूर्वक सीता का हरण कर उसे अपनी रानी बनाने का प्रयास करता है। उसके इसी कृत्य से समस्त लंका तहस-नहस हो जाती है और असुर कुल का विनाश हो जाता है।
दस सिर – दस बुराई या दस अच्छाई
दस सिर होने के कारण रावण को दशानन कहा जाता है, इन दस सिरों को एक ओर जहां दस बुराइयों का प्रतीक माना जाता है वहीं यह भी मान्यता है कि 6 शास्त्र और 4 वेदों का ज्ञाता होने के कारण रावण को दसकंठी कहा जाता था कालांतर में उसके इसी नाम के कारण रावण को दस सिर वाला मान लिया गया। वेद शास्त्रों का ज्ञाता होने के साथ-साथ रावण एक कला प्रेमी भी था इसलिये उसके संग्रह में एक से बढ़कर एक अनोखी चीज मिलती है। लंका को भी स्थापत्य कला के लिहाज से अद्भुत नगरी माना जाता है।
श्री राम भी कायल थे रावण की विद्वता के
रावण एक बहुत ही विद्वान ब्राह्मण था। उसे समस्त वेद, शास्त्रों का ज्ञाता माना जाता है। स्वयं प्रभु श्री राम कई बार रावण की विद्वता के कायल होते हैं अंतिम समय में भी जब रावण मरणासन्न होते हैं तो श्री राम लक्ष्मण को रावण के पास कुछ ज्ञान प्राप्त करने के लिये भेजते हैं।
रावण महान ग्रंथों के रचयिता और शिवभक्त
रावण एक महान लेखक भी थे, उनकी शिवभक्त से सभी परिचित हैं। भगवान शिव की स्तुति में रावण ने शिव तांडव स्त्रोत की रचना की। मान्यता है कि एक बार रावण पुष्पक विमान से कैलाश पर्वत से गुजर रहे थे तो भगवान शिव के वाहन नंदी ने उनका रास्ता रोक लिया और कैलाश क्षेत्र को वर्जित बताकर वहां से चले जाने को कहा। इस पर रावण ने कैलाश पर्वत को उठाना चाहा कि भगवान शिव ने अपने अंगूठे से जरा सा दबाव डाला तो रावण के हाथ दब गये जिसके बाद उसने भगवान शिव की स्तुति कर क्षमा याचना की। उनकी इस स्तुति से भगवान शिव प्रसन्न हुए और रावण को नवीन शस्त्र भी वरदान में दिये। यह स्तुति ही शिवतांडव स्त्रोत के रुप में जानी जाती है। इसके अलावा ज्योतिषशास्त्र में भी रावण के योगदान को उल्लेखनीय माना जाता है। अरुण संहिता और रावण संहिता ज्योतिषशास्त्र के महत्वपूर्ण ग्रंथ माने जाते हैं जिनका रचयिता रावण को माना जाता है।
रावण की विनम्रता भी अनुकरणीय
वेद शास्त्रों का ज्ञाता, महान लेखक व कलाप्रेमी होने के साथ-साथ रावण की विनम्रता भी कुछ अवसरों पर अनुकरणीय मानी जा सकती है। उदाहरण के तौर पर जब भगवान राम को शिवलिंग की स्थापना के लिये विद्वान ब्राह्मण की आवश्यकता थी तो स्वयं रावण वहां बतौर ब्राह्मण उपस्थित हुए। साथ ही जब लक्ष्मण मूर्छित थे तो अपने वैद्य को भी उन्होंनें लक्ष्मण का इलाज करने की अनुमति दी।
पूरी लंका के मुक्तिदाता बने रावण
रावण और कुंभकरण के बारे में यह भी माना जाता है कि वह भगवान विष्णु के द्वारपाल जय-विजय थे जिन्हें श्रापित होकर असुर के रुप में जन्म लेना पड़ा। श्राप से मुक्ति दिलाने के लिये ही लगातार तीन जन्म में भगवान विष्णु को भी उनका वध करने के लिये अवतरित होना पड़ा। रावण एक विद्वान ब्राह्मण था उसे संसार की नश्वरता व ईश्वर की अमरता का भान था। वह जानता था कि भगवान विष्णु के हाथों मृत्यु को पाकर ही मोक्ष मिल सकता है इसलिये उसने स्वयं के साथ-साथ पूरी लंका को यह मुक्ति दिलाई।
कुल मिलाकर बहुत सी ऐसी बाते हैं जिनके अनुसार रावण के जीवन से भी हम बहुत कुछ सीख ले सकते हैं। भले ही रावण में बुराइयां भी रही हों लेकिन उसकी अच्छाइयों को भी हम नजरंदाज नहीं कर सकते। रावण के तप, उसके ज्ञान को झुठला नहीं सकते।
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