Ganga Saptami 2022: गंगा मात्र एक नदी नहीं है बल्कि आस्था की देवी हैं किसानों के लिये प्राण दायिनी हैं। यह सवाल तो आज भी रहस्य है कि उद्योग कारखानों की रसायनों और गंदगी को अपने में समा लेने के बाद भी इसकी पवित्रता बरकरार कैसे हैं? जब किसी रहस्य का पता न चले तो उसे चमत्कार कहा जा सकता है। गंगा का यही रहस्य इस नदी को देवी गंगा बनाता है। इसी की बदौलत लोगों की इसमें गहरी आस्था भी है।
लेकिन क्या आप जानते हैं गंगा जी को एक बार एक ऋषि ने पूरा का पूरा गटक लिया था, फिर देवताओं के अनुरोध और भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर उन्होंने गंगा मैया को मुक्त किया ताकि वह भागीरथ के पूर्वजों को मुक्ति प्रदान कर सके। जिस दिन गंगा मैया को ऋषि ने मुक्त किया वह दिन था वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी का। इसलिये इस दिन को गंगा सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। आइये जानते हैं वैशाख शुक्ल सप्तमी को घटे इस पूरे घटनाक्रम के बारे में जिसकी गवाही पुराण देते हैं।
अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए भगीरथ ने कड़ा तप कर गंगा मैया को पृथ्वी पर लाने में कामयाबी मिल गई थी। भगवान शिव ने अपनी जटा में लपेट कर गंगा के अनियंत्रित प्रवाह को नियंत्रित तो कर लिया लेकिन बावजूद उसके भी गंगा मैया के रास्ते में आने वाले बहुत से वन, आश्रम नष्ट हो रहे थे। चलते-चलते वह जहानु ऋषि के आश्रम में पहुंच गई जब जहानु ऋषि ने गंगा द्वारा मचाई तबाही को देखा तो वे बहुत क्रोधित हुए और गंगा के सारे पानी को पी गये। भगीरथ को अपना प्रयास विफल दिखाई देने लगा। वह जहानु ऋषि को प्रसन्न करने के लिये तप पर बैठ गये। देवताओं ने भी महर्षि से अनुरोध कर गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के महत्व के बारे में बताया। अब जहानु ऋषि का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने अपने कान से गंगा मुक्त कर दिया। मान्यता है कि इसी कारण गंगा को जाह्नवी भी कहा जाता है। जिस दिन उन्होंने गंगा को अपने कान से मुक्त किया वह दिन था वैशाख मास की शुक्ल सप्तमी का। इसलिये इसे गंगा सप्तमी और जहानु सप्तमी भी कहा जाता है।