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पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना में स्थित यह स्थान हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यह स्थान एक द्वीप पर स्थित है। जिसे चारों ओर से समुद्र घेरे हुए है। कहते हैं सारे तीरथ बार-बार, गंगासागर (Gangasagar) एक बार। कितनों को तो गंगासागर जाने का जीवन में एक बार भी मौका नहीं मिल पाता है। ऐसे में इस स्थान की महत्ता और बढ़ जाती है। इसे गंगासागर इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहीं गंगा सागर में आकर मिलती हैं। साथ ही यहां कपिल मुनी का आश्रम भी है जो दर्शनीय है। तो आइए जानते हैं गंगासागर की पौराणिक मान्यता क्या है? और क्यों यहां हर वर्ष मकर संक्रांति पर लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु धरती पर कपिल मुनि के रूप में अवतरित हुए थे। उन्होंने वर्तमान में जहां गंगासागर (Gangasagar) है, वहीं पर अपना आश्रम बनाया और तपस्या में लीन हो गए। इसी दौरान मृत्युलोक पर राजा सागर अपने कर्मों की वजह से सर्वाधिक पुण्य अर्जित कर रहे थे। जिसके कारण देवताओं के राजा इंद्र को स्वर्ग की गद्दी उनसे छीन जाएगी ऐसा भय हुआ। इस खतरे को टालने के लिए इंद्र ने एक योजना बनायी और योजना के तहत इंद्र ने राजा सागर के बलि में चढ़ाए जाने वाला अश्व चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम के पास छोड़ दिया। इसके बाद राजा सागर ने अपने 60000 पुत्रों को उस अश्व को ढूंढकर वापस लाने का आदेश दिया। जब राजा सागर के पुत्रों को यज्ञ का अश्व कपिल मुनि के आश्रम के पास मिला, तो उन्होंने अश्व को चोरी करने का आरोप कपिल मुनि पर लगाया। इंद्र की धूर्त योजना से अनजान कपिल मुनि इस झूठे आरोप से क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा सागर के सभी पुत्रों को अपने क्रोध की अग्नी से भस्म कर दिया। जब कपिल मुनि को असल बात पता चली तो वे अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकते थे, इसलिए उन्होंने राजा सागर को उनके पुत्रों को मोक्ष दिलाने का उपाय बतलाया। कपिल मुनि ने कहां कि यदि माता गंगा धरती पर जल के रूप में उतर कर आपके पुत्रों की अस्थियों को स्पर्श करती हैं तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने के लिए राजा सागर के वंशज राजा भगीरथ ने घोर तपस्या की ताकि मां गंगा धरती पर आएं। भागीरथ के तप से अंततः देवी गंगा धरती पर उतरीं और उनके स्पर्श से राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। गंगा के धरती पर आने की तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार उत्तरायण अथवा मकर संक्रांति की है। इसीलिए लाखों लोग इस दिन गंगासागर में स्नान करते हैं ताकि वे स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर सकें।
प्रतिवर्ष दो से तीन लाख श्रद्धातु इस मेले में शामिल होते हैं। इस स्थान को हिंदुओं के एक विशेष स्थल के रूप में जाना जाता है। यह हिन्दू धर्म को मानने वालों के लिए आस्था की स्थली है। ऐसा विश्वास है कि, गंगासागर की पवित्र तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थयात्राओं के समान है। जिसके संबंध में एक बात प्रचलित है जो है अन्य तीर्थ बार–बार, गंगासागर एक बार। सुंदरवन पास होने के कारण मेले को कई विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। तूफ़ान व ऊंची लहरें हर वर्ष मेले में बाधा डालती हैं, परंतु परंपरा और श्रद्धा के सामने हर बाधा दूर हो जाती है। माना जाता है कि कुम्भ मेले के बाद गंगासागर (Gangasagar) सबसे बड़ा मेला है जहां लोखों लोग पवित्र स्नान के लिए पहुंचते हैं।
गंगासागर मेला
गंगासागर मेला पश्चिम बंगाल में आयोजित होने वाले सबसे बड़े मेलों में से एक है। इस मेले का आयोजन हुगली नदी के तट पर ठीक उस जगह पर किया जाता है, जहां पर गंगा बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं। इसलिए इस मेले का नाम गंगासागर मेला है।
गंगासागर में पिण्डदान
गंगा व सागर के संगम स्थल पर श्रद्धालु समुद्र देव को नारियल और यज्ञोपवीत (जनेऊ) अर्पित करते हैं। पूजन एवं पिण्डदान के लिए बहुत से पंडागण गाय–बछियों के साथ खड़े रहते हैं, जो गौ दान करवाकर पूजा कर देते हैं। समुद्र में पितरों को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। गंगासागर में स्नान व दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है।
कपिल मुनि मंदिर
स्थानीय मान्यतानुसार जो कन्या यहां पर स्नान करती है, उसे अपनी इच्छानुसार वर तथा युवक को स्वेच्छित वधु की प्राप्ति होती है। पूजन के बाद सभी लोग कपिल मुनि के आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं तथा श्रद्धा से उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मंदिर में देवी गंगा, कपिल मुनि तथा भागीरथ की मूर्तियां स्थापित हैं।
गंगासागर कैसे जाएं
गंगासागर के लिए श्रद्धालुओं को जल मार्ग का उपयोग अंतः करना ही है। परंतु यहां से निकटतम महालगर कोलकाता पहुंचने के लिए भक्त वायु, रेल और सड़क मार्ग का उपयोग कर सकते हैं।
वायु मार्ग
कोलकाता का सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा गंगासागर से निकटतम एयरपोर्ट है। जो देश के कई एयरपोर्टों से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग
गंगासागर से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन सियालदाह है। जो 140 किमी दूर है, यह देश के प्रमुख स्टेशनों से रेल मार्ग के जरिए जुड़ा है।
सड़क मार्ग
देश के राज्यमार्गों से कोलकाता जुड़ा हुआ है। कोलकाता से काकद्वीप जाने के लिए बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं। काकद्वीप पहुंच कर यात्री आगे की यात्रा के लिए फेरी लेते हैं। यहां से गंगासागर (Gangasagar) के लिए आसानी से फेरी मिलती हैं।