बद्रीनाथ

बद्रीनाथ

देव भूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित यह देव स्थान हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है। यह मंदिर भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है। मंदिर में स्थापित मूर्ति की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। इस मंदिर का निर्माण 7वीं से 9वीं सदी के बीच हुआ। यह भव्य मंदिर अलकनंदा के तट पर स्थित है। मंदिर के नाम पर ही इसके आस-पास बसे नगर को बद्रीनाथ (Badrinath) कहा जाता है। आगे हम इस धाम का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा, बद्रीनाथ की पौराणिक कथा क्या है? और यहां के दर्शनीय स्थान कौन-कौन से हैं, इसके बारे जानेंगे।

 

धाम का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा?

बद्रीनाथ (Badrinath) नाम की उत्पत्ति पर एक कथा बहुत प्रचलित है, जो इस प्रकार है। एक बार मुनि नारद भगवान श्रीहरि विष्णु के दर्शन हेतु क्षीरसागर पहुंचे, जहां नारद ने माता लक्ष्मी को श्रीपरि का पैर दबाते हुए देखा। नारद यह देखकर चकित हो गए। जब नारद ने भगवान विष्णु से इसके बारे में पूछा, तो ग्लानी व अपराध बोध से पीड़ित होकर भगवन विष्णु तपस्या करने के लिए हिमालय चले गए। भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे, तभी अचानक बहुत अधिक हिमपात होने लगा। जिससे भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह ढ़क गए। उनकी यह दशा देख कर माता लक्ष्मी को दुख हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु के समीप खड़ी होकर एक बद्री वृक्ष का रूप धारण कर लिया। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या करने लगीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो उन्होंने देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तब भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि "हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है, आज से इस धाम में मेरे साथ आपको भी पूजा जायेगा और चूंकि आपने मेरी रक्षा एक बद्री वृक्ष के रूप में की हैं, इसलिए आज से मुझे बद्री के नाथ यानि कि बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा।

 

बद्रीनाथ की पौराणिक कथा

कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है, जिसके अनुसार धर्म के दो पुत्र हुए, नर और नारायण। जिन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई वर्षों तक इसी स्थान पर तपस्या की। दोनों ने अपना आश्रम बनाने के लिए एक आदर्श स्थान की तलाश में वृद्ध बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री और भविष्य बद्री नामक चार स्थानों का भ्रमण किया। लेकिन मन मुताबिक स्थान न मिला। आखिरकार उन्हें अलकनंदा नदी के पीछे एक गर्म और एक ठंडे पानी का कुंड मिला,  उसके आस-पास के क्षेत्र को उन्होंने बद्री विशाल नाम दिया। माना जाता है कि व्यास जी ने महाभारत की रचना इसी जगह पर की थी। महाभारत काल से जुड़ी एक और मान्यता है कि इसी स्थान पर पांडवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसी के चलते बद्रीनाथ (Badrinath) के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों की मुक्ति के लिए पिंडदान करते हैं।

 

बद्रीनाथ के दर्शनीय स्थान

बद्रीनाथ में कई दर्शनीय स्थान हैं। जिनमें बद्रीनाथ मंदिर, सतोपंत झील और भीम पुल मुख्य हैं। इसके अलावा यहां पर्वों का आयोजन होता है।

 

बद्रीनाथ मंदिर

मंदिर के गर्भगृह में भगवान बद्रीनारायण की 1 मीटर लंबी शालीग्राम से निर्मित प्रतिमा स्थापित है। जिसे बद्री वृक्ष के नीचे सोने की चंदवा में रखा गया है। बद्रीनारायण की इस मूर्ति को कई हिंदुओं द्वारा विष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों में से एक माना जाता है। मूर्ति में भगवान के चार हाथ हैं, दो हाथ ऊपर उठे हुए हैं, एक में शंख, और दूसरे में चक्र है, जबकि अन्य दो हाथ योगमुद्रा में भगवान की गोद में स्थित हैं। मूर्ति के ललाट पर हीरा जड़ा हुआ है। गर्भगृह में धन के देवता कुबेर, देवर्षि नारद, उद्धव, नर और नारायण की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर के चारों ओर उपस्थित पंद्रह अन्य प्रतिमाओं की भी पूजा की जाती हैं। इनमें लक्ष्मी, गरुड़ और नवदुर्गा की प्रतिमाएं शामिल हैं।

 

सतोपंत झील

सतोपंत झील लगभग एक किलोमीटर के दायरे में फैली हुई। जो बेहद लुभावनी है। हालांकि यहां तक पहुंचने के लिए दर्शनार्थियों को पैदल यात्रा करनी पड़ती है, क्योंकि यहां तक आने के लिए गाड़ी घोड़ों की व्यवस्था नहीं है।

 

भीम पुल

यह विशाल चट्टान द्वारा प्राकृतिक रूप से बना हुआ पुल है, जिसे भीम पुल कहा जाता है। यह पुल सरस्वती नदी के ऊपर स्थित है। यहां गणेश गुफा, व्यास गुफा आदि भी दर्शनीय स्थान हैं। पर्यटक यहां इस पुल के साथ-साथ इन गुफाओं के भी दर्शन करने आते हैं।

 

माता मूर्ति का मेला

माता मूर्ति का मेला, बद्रीनाथ धाम में आयोजित होने वाला सबसे प्रमुख पर्व है, जो मां पृथ्वी पर गंगा नदी के आगमन की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस त्यौहार के दौरान बद्रीनाथ की माता मूर्ति की पूजा की जाती है।  माना जाता है कि, गांगा ने स्यंम को पृथ्वी के प्राणियों के कल्याण हेतु बारह धाराओं में विभाजित कर दिया था। जिस स्थान पर यह नदी तब बही थी, वही आज बद्रीनाथ की पवित्र भूमि बन गई है।


बद्री केदार

यहां का एक अन्य प्रसिद्ध त्यौहार है, जो जून के महीने में बद्रीनाथ और केदारनाथ, दोनों मंदिरों में मनाया जाता है। यह त्यौहार आठ दिनों तक चलता है, और इसमें आयोजित समारोहों में देश-भर से आये कलाकार प्रदर्शन करते हैं।

 

कैसे जाएं बद्रीनाथ

यहां पहुंचने का मुख्य मार्ग सड़क है। परंतु यहां से सबसे करीबी नगर ऋषिकेश है। जहां तीनों मार्गों के जरिए पहुंचा जा सकता है।

वायु मार्ग

बद्रीनाथ से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून शहर के निकट स्थित जॉली ग्रान्ट एयरपोर्ट है। ऋषिकेश से इस एयरपोर्ट की दूरी 21 किलोमीटर है। यहां के लिए एयर इंडिया, जेट एवं स्पाइसजेट की फ्लाइटें दिल्ली एयरपोर्ट से उड़ान भरती हैं।

रेल मार्ग

बद्रीनाथ का नजदीकी रलवे स्टेशन ऋषिकेश है ऋषिकेश देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग

सड़क मार्ग द्वारा समीपवर्ती प्रदेशों से ऋषिकेश के लिए सीधी बस सेवायें उपलब्ध हैं। ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक पहाड़ी रास्ता है। ऋषिकेश से बस या अपने वाहन द्वारा सुबह चलकर आप शाम तक यहां पहुंच सकते हैं।

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