मथुरा

मथुरा

हिंदू धर्म में मथुरा (Mathura) को भागवान श्री कृष्ण की जन्म भूमि के तौर पर जाना जाता है। मथुरा की गलियों में ही भगवान श्री कृष्ण पले-बढ़े हैं। मथुरा के हर नुक्ड़ व चौराहे पर भक्तगणों को श्री कृष्ण के लीलाओं की एक नई कथा को सुनने और जानने का अवसर मिलता है। सप्त पुरियों में शामिल मथुरा की धार्मिक महत्व से हर कोई परिचित है। वर्तमान में मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विख्यात है। प्राचीन काल से ही मथुरा भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म, दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आगे हम जानेंगे कि मथुरा का पौराणिक महत्व क्या है? यहां के मुख्य दर्शनीय स्थान कौन से हैं?, आइए मथुरा के बारे में जानते हैं।

 

मथुरा का पौराणिक महत्व

इस शहर का पौराणिक रूप से कितना महत्व है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि मथुरा का जिक्र हिंदू धर्म के पौराणिक महाकाव्य रामायण में है। रामायण में मथुरा को मधुपुर तथा मधुदानव नामक नगर कहा गया है और नगर को लवणासुर की राजधानी बताया गया है। इस नगरी को पौराणिक कथाओं में मधुदैत्य द्वारा बसाया गया है, ऐसा बताया है। इससे मधुपुरी या मथुरा (Mathura) का रामायण काल में बसाया जाना सूचित होता है। रामायण में इस नगरी की समृद्धि के बारे में बताया गया है। प्राचीन काल से अब तक इस नगर का अस्तित्व बरकरार है।

 

पौराणिक साहित्य में मथुरा

पौराणिक साहित्य में मथुरा को शूरसेन देश की राजधानी कहा गया है। पौराणिक साहित्य में मथुरा को शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि अनेक नामों से संबोधित किया गया है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, कवि रसखान आदि महान आत्माओं का नाम इस नगरी से जुड़ा हुआ है।

 

सप्त पुरियों में मथुरा

भारतवर्ष के सांस्कृतिक और आधात्मिक गौरव की आधारशिलाएं इसकी सात पुरियों पर आधारित हैं। गरुड़ पुराण में इन सात पुरियों के नाम क्रमानुसार वर्णित हैं। गरूड़ पुराण में मथुरा का स्थान अयोध्या के बाद बताया गया है। बाकि के पुरियों का स्थान मथुरा के बाद रखा गया है। इसके अलावा पदम पुराण में मथुरा को सर्वोपरि कहा गया है। पुराण में काशी समेत अन्य सभी पुरियों को मोक्ष दायिनी तो मथुरापुरी को धन्य बताया गया है। पुराण के अनुसार मथुरापुरी देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।

 

मथुरा के दर्शनीय स्थान

मथुरा के प्रमुख दर्शनीय स्थानों में कृष्ण जन्म भूमि मंदिर, द्वारिकाधीश मंदिर, विश्राम घाट, केशवदेव मंदिर, निधिवन और बिड़ला मंदिर शामिल हैं। इसके अलावा श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े अन्य स्थानों में गोकुल, बरसाना और गोवर्धन हैं। गोकुल में श्री कृष्ण का पालन उनके मामा कंस की नजर से दूर चोरी-छिपे किया गया था। श्री कृष्ण की प्रिय राधा बरसाना में रहती थीं, जहां आज भी होली के अवसर पर लट्ठमार होली बड़े धूम-धाम से खेली जाती है।

 

कृष्ण जन्मभूमि मंदिर

कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा नगर के मध्य में स्थित है। इस स्थान को हिंदू धर्म के अनुयायी भगवान श्री कृष्ण का जन्म स्थान मानते हैं। इसी जगह के कारण मथुरा विश्व में प्रसिद्ध है। इस स्थान पर श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर बना हुआ जो जेल की कोठरी की तरह है। जिसमें श्री कृष्ण के अधर्मी मामा कंस द्वारा उनकी माता देवकी और पिता वासुदेव को कैद किया गया था। जिसके बाद भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। इस मंदिर में जाने के बाद शांति, स्थिरता और आध्यात्मिकता की प्रबल अनुभूति होती है।

 

द्वारिकाधीश मंदिर

कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बाद मथुरा में द्वारकाधीश मंदिर मुख्य दर्शनीय स्थान है। इस मंदिर का निर्माण ग्वालियर रियासत के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुलदास पारिख द्वारा 1815 में करवाया गया था। द्वारकाधीश मंदिर देश के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। यह मंदिर सुंदर रंगों से सजा है। यहां फूलों के डिजाइन वाले पीले स्तंभ हैं। मुख्य पवित्र स्थान, एक बड़े हॉल के साथ एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है।

 

विश्राम घाट

यमुना नदी के तट पर स्थित विश्राम घाट मथुरा का सबसे लोकप्रिय घाट है। जैसा कि नाम से प्रतित हो रहा है विश्राम। विश्राम का मतलब है आराम करना। इस स्थान को लेकर पौराणिक मान्यता है कि श्री कृष्ण अपने अधर्मी मामा कंस का वध करने के बाद दाऊ बलराम के साथ यहीं आराम किये थे। घाट पर दीपदान और मंत्र जाप के साथ शाम की यमुना आरती का आयोजन किया जाता है। इस घाट पर बना मुख्य मंदिर देवी यमुना को समर्पित है। इस घाट के अलावा यहां अन्य 25 दर्शनीय घाट हैं।

 

कोशवदेव मंदिर

कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के समीप स्थित प्राचीन केशवदेव मंदिर श्री कृष्ण को समर्पित है। बताया जाता है कि इस प्राचीन मंदिर पर औरंगजेब ने हमला किया था। इस हमले में मंदिर पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था। इसके बाद इस स्थान पर एक इबादतगाह बना दिया गया। मुगलकाल खत्म होने के बाद ब्रिटिश शासन में वाराणसी के राजा ने दोबारा इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।

 

मथुरा कैसे पहुंचे

भक्तगण मथुरा वायु, सड़क व रेल मार्ग से पहुंच सकते हैं।

 

वायु मार्ग

मथुरा से सबसे करीबी एयरपोर्ट आगरा का है। आगरा से मथुरा की दूरी 50 किमी है। इसके अतिरिक्त इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नई दिल्ली है। जहां से मथुरा जाने के लिए आसानी से साधन उपलब्ध है। यहां से मथुरा की दूरी 135 किलो मीटर है।

रेल मार्ग

मथुरा कैंट और मथुरा जंक्शन के लिए नियमित ट्रेनें चलती हैं। यह स्टेशन देश के कई मुख्य रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग

इस मार्ग के जरिए भी मथुरा देश के कई राज्यों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, आगरा, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता से आप आसानी से यहां आ पहुंच सकते हैं।

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