रामेश्वरम

रामेश्वरम

हिंदुओं की आस्था का केंद्र कहा जाने वाला रामेश्वरम (Rameswaram), पवित्र चार धामों में से एक है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य की दक्षिणी छोर पर स्थित रामेश्वरम मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां हर वर्ष देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। रामेश्वरम मंदिर में शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग स्थापित है जिसका संबंध रामायण काल से है। आगे रामेश्वरम धाम से जुड़ी पौराणिक मान्यता क्या हैं? रामेश्वरम में कौन-कौन से स्थान दर्शनीय हैं? इसकी जानकारी यहां दी जा रही है।

 

रामेश्वरम की पौराणिक मान्यता

रामेश्वरम की पौराणिक मान्यता की बात करें तो इस नगर का नाता रामायण काल से है, ऐसा माना जाता है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण महाकाव्य में रामेश्वरम (Rameswaram) का विस्तार से वर्णन है। रामायण के अनुसार राजा दशरथ द्वारा राम को 14 वर्षों का वनवास दिये जाने के बाद, श्री राम पिता के वचन को पूरा करने के लिए वन चले गए। वनवास के कुछ समय बीत जाने के बाद एक दिन रावण ने छल से मां सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें अपने साथ लंका लेकर चला गया। लंका जाते समय मार्ग में गिद्धराज जटायु से रावण का सामना हुआ, मां सीता को रावण से बचाने के लिए जटायु ने रावण को रोकने की कोशिश की तो लंकापति ने जटायु के पंख काट दिए। जटायु घायल अवस्था में भूमि पर जा गिरे। भगवान श्री राम सीता को वन में खोजते–खोजते गिद्धराज जटायु से मिले। जटायु ने माता सीता के हरण के संबंध में श्री राम को जानकारी दी कि मां सीता का अपहरण लंकापति रावण ने किया है और वो उन्हें दक्षिण दिशा की ओर ले गया है। जानकारी देते ही जटायु प्राण त्याग देते हैं। जटायु का अंतिम संस्कार कर श्री राम माता की तलाश करने दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हैं। आगे उनकी भेंट हनुमान से होती है। हनुमान श्री राम व लक्ष्मण को सुग्रीव से मिलवाने ऋष्यमुक पर्वत ले जाते हैं। जहां श्री राम व सुग्रीव की मैत्री होती है। मैत्री होने के बाद वानर सेना की कई टुकड़ियां मां सीता का पता लगाने के लिए चोरों दिशाओं में फैल जाती है। राजकुमार अंगद के नेतृत्व में हनुमान, नील और जामवंत समेत कुछ वानर दक्षिण भारत के समुद्र तट तक जा पहुंचे हैं। जहां उनकी भेंट जटायु के भाई संपाति से होती है। संपाति ने माता सीता के बारे में जानकारी देते कि माता लंका के एक वाटिका में हैं। लंका एक द्वीप था जो चारों ओर से समुद्र से घिरा था। तब जामवंत ने हनुमान को उनकी शक्तियों का स्मरण कराया और हनुमान माता सीता का पता लगाने लिए वायु मार्ग से लंका पहुंचे। लंका के हर भवन को तलाश ने के बाद भी हनुमान को मां सीता न मिलीं। जिससे वे थोड़ा निराश हो गए, लेकिन तभी उनकी भेट राम भक्त विभीषण से हुई। विभीषण ने माता सीता का पता बताया। जिसके बाद हनुमान अशोक वाटिका पहुंचे। अशोक वाटिका में एक वृक्ष के नीचे माता सीता बैठी हुई थीं। हनुमान ने भगवान श्री राम की मुद्रिका माता सीता को देकर प्रभु का संदेश दिया और लंका जलाकर वे वापस लौट आएं। हनुमान ने सारा प्रसंग प्रभु राम को सुनाया। जिसके बाद माता सीता को मुक्त कराने के लिए श्री राम वानर सेना के साथ भारत के दक्षिण में स्थित समुद्र तट पर पहुंचे। प्रभु राम को ज्ञात था, कि रावण को युद्ध में हराना आसान नहीं, रावण को तभी हराया जा सकता है जब भगवान शिव का आशीर्वाद साथ हो। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए श्री राम ने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण किया और उसकी विधिवत पूजा की। जिसके बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और श्री राम उनके कृपा के पात्र बनें। भगवान शिव ने इस शिवलिंग को बारह ज्योतिर्लिंगों एक होने का वरदान भी दिया। प्रभु राम ने रावण का वध किया और माता सीता को मुक्त कराकर अयोध्या लौट गए। मान्यता है कि रामेश्वरम मंदिर में स्थापित शिवलिंग वही शिवलिंग है। जिसे श्रीराम ने स्थापित किया था। तब से आज तक इस शिवलिंग को पूजा जा रहा है।

 

रामेश्वरम के दर्शनीय स्थल

रामेश्वरम में सबसे महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थान रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर है। इसके अलावा बाईस कुंड और विल्लूरणि तीर्थ का स्थान आता है। परंतु इनके अतिरिक्त और भी स्थान हैं जो धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।

 

रामेश्वरम मंदिर

रामेश्वरम धाम तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यहां विद्धामान शिवलिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बताया जाता है। इसी बात से साबित हो जाता है कि रामेश्वरम (Rameswaram) धाम की महिमा कितनी महान है। मंदिर में दो शिवलिंग स्थापित हैं। ये दोनों शिवलिंग मुख्य मंदिर में आज भी पूजी जाती हैं।

 

बाईस कुण्ड

जैसा कि नाम से प्रतीत हो रहा है कि यहां हम कुंडों की बात कर रहे हैं। रामनाथ मंदिर के परिसर में अनेक पवित्र तीर्थ कुंड हैं। इनमें प्रधान तीर्थ कुंडों की संख्या चौबीस थे, लेकिन दो कुंड सूख गए हैं और अब इसकी संख्या बाईस हो गई है। ये मीठे जल के अलग-अलग कुंए हैं। कोटी तीर्थ जैसे एक दो तालाब भी हैं। इन तीर्थ कुंडों में स्नान करना बड़ा फलदायक और पाप नाशक माना जाता है।

 

विल्लीरणि तीर्थ

यहां से करीब तीन मील पूर्व में एक गांव है, जिसका नाम तंगचिमडम है। समुद्र में एक तीर्थकुंड है, जो विल्लूरणि तीर्थ कहलाता है। समुद्र के खारे पानी के बीच में से मीठा जल निकलता है। इस कुंड को लेकर मान्यता है कि एक बार सीताजी को बड़ी प्यास लगी। पास में समुद्र को छोड़कर और कहीं पानी नहीं था, इसलिए प्रभु राम ने अपने बाण की नोक से यह कुंड खोदा था।

 

कैसे पहुंचे रामेश्वरम

भक्तगण रामेश्वरम वायु, रेल व सड़क मार्ग के जरिए पहुंच सकते हैं।

वायु मार्ग

रामेश्‍वरम का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट मदुरई में स्थित है। मदुरई एयरपोर्ट, चेन्‍नई एयरपोर्ट से अच्‍छी तरह से जुड़ा हुआ है और हर दिन, चेन्‍नई और मदुरई के बीच नियमित रूप से काफी उड़ाने भरी जाती हैं।

रेल मार्ग

रामेश्‍वरम में रेलवे स्‍टेशन है और अन्‍य नजदीकी रेलवे स्‍टेशन चेन्‍नई में स्थित है जिसका दक्षिण रेलवे में अच्‍छा और मजबूत नेटवर्क है। जो देश के बड़े नगरों से जुड़ा हुआ है।  

सड़क मार्ग

रामेश्‍वरम, चेन्‍नई से सड़क मार्ग द्वारा अच्‍छी तरह से जुड़ा हुआ है। चेन्‍नई से रामेश्‍वरम तक के लिए नियमित रूप से बसें चलती है। इसके अलावा यहां देश के अन्य राज्यों से सड़क मार्ग के जरिए पहुंचा जा सकता है।

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