कांचीपुरम

कांचीपुरम

कांचीपुरम (Kanchipuram) सप्त पुरियों में से एक पुरी है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित इस धार्मिक नगरी को दक्षिण की काशी भी कहा जाता है। अपने 1000 मंदिरों के लिये चर्चित कांचीपुरम और इसके आस-पास 126 बड़े व भव्य मंदिर तो आज भी मौजूद हैं। प्रत्येक मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का तो केंद्र है ही साथ ही स्थाप्त्य कला के लिये भी प्रसिद्ध है। एक अलग तरह की कारीगरी इन मंदिरों में देखने को मिलती है। कांचीपुरम मंदिरों के अलावा साड़ियों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां की रेशमी कांजीवरम साड़ियां विश्व विख्यात हैं। आगे हम कांचीपुरम के पौराणिक महत्व और यहां के दर्शनीय स्थलों के बारे में जानेंगे।

 

कांचीपुरम का पौराणिक महत्व 

पौराणिक मान्यता है कि इस क्षेत्र में ब्रह्माजी ने देवी शक्ति के दर्शनार्थ हेतु तप किया था। ऐसा माना जाता है कि जो भी यहां आता है, उसे आंतरिक खुशी के साथ-साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। क्योंकि कांचीपुरम (Kanchipuram) मोक्षदायिनी सप्त पुरियों में गिना जाता है। बाकी अन्य छः पुरियों में अयोध्या, मथुरा, द्वारका, हरिद्वार, काशी और उज्जैन शामिल हैं। कांची हरिहरात्मक पुरी है। इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं। कामाक्षी अम्मान मंदिर को यहां की शक्तिपीठ माना जाता है। दक्षिण के पंच तत्वलिंगो में से भूतत्वलिंग के संबंध में कुछ मतभेद है। जिसके कारण कुछ लोग कांची के एकामेश्वर लिंग को भूतत्वलिंग मानते हैं, और कुछ लोग तिरुवारूर की त्यागराजलिंग को भूतत्वलिंग मानते हैं।

 

कांचीपुरम का इतिहास 

साक्ष्यों के मुताबिक कांचीपुरम ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में महत्वपूर्ण नगर था। यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा केन्द्र था। बुद्धघोष के समकालीन प्रसिद्ध भाष्यकार धर्मपाल का जन्म स्थान यहीं है, इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि एक समय में यह बौद्ध धर्मीय जीवन का केन्द्र था। यहां के सुंदरतम मंदिरों की श्रृंखला इस बात को प्रमाणित करती हैं कि यह स्थान दक्षिण भारत के धार्मिक क्रियाकलापो का कई शताब्दियों तक केन्द्र रहा है। कांचीपुरम सातवीं शताब्दी से लेकर नौवीं शताब्दी तक पल्लव साम्राज्य का ऐतिहासिक शहर व राजधानी हुआ करता था। छठी शताब्दी में पल्लवों के संरक्षण से प्रारम्भ, पन्द्रहवीं व सोलहवीं शताब्दी तक विजयनगर के राजाओं के संरक्षण काल में 1000 वर्ष की द्रविड़ मंदिर शिल्पकला में हुए अभूतपूर्व विकास को यहां देखा जा सकता है। कैलाशनाथ मंदिर इस कला का श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है। सातवीं शताब्दी में बना बैकुंठ पेरुमल मंदिर इस कला की सुंदरता का सूचक है। ये दोनों ही मंदिर पल्लव राजाओं के शिल्पकला के प्रति प्रेम के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

 

कांचीपुरम में दर्शनीय स्थान

कांचीपुरम का कैलाशनाथ मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। इस मंदिर का यहां के दर्शनीय स्थलों में प्रथम स्थान है। इसके अलावा बैकुंठ पेरूमल मंदिर, कामाक्षी अमां मंदिर, वरदराज मंदिर और एकम्बारानाथर मंदिर शामिल हैं। जो दर्शनीय हैं।

 

कैलाशनाथ मंदिर

यह मंदिर कांचीपुरम का सबसे प्राचीन और दक्षिण भारत के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है। मंदिर में देवी पार्वती और भगवान शिव की नृत्य प्रतियोगिता को दर्शाया गया है। उपलब्ध तथ्यों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजा राजसिम्हा ने अपनी पत्नी की इच्छा पर करवाया था। मंदिर के अग्रभाग का निर्माण राजा के पुत्र महेन्द्र वर्मन तृतीय ने करवाया था।

 

बैकुंठ पेरूमल मंदिर

यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में पल्लव राजा नंदीवर्मन पल्लवमल्ला ने करवाया था। मंदिर में भगवान विष्णु को बैठे, खड़े और आराम करती मुद्रा में देखा जा सकता है। मंदिर की दीवारों पर पल्लव और चालुक्यों के मध्य हुए युद्धों के दृश्य को प्रदर्शित किया गया है। मंदिर में 1000 खंबों वाला एक विशाल सभागृह भी बना हुआ है जो यात्रियों को बहुत ही आकर्षित करता है। प्रत्येक स्तम्भ में नक्काशी से तस्वीर उकेरी गई है, जो उत्तम कारीगरी का नमूना है।

 

कामाक्षी अम्मा मंदिर

यह मंदिर देवी शक्ति को समर्पित है। मंदिर देवी के तीन सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। मदुरै और वाराणसी देवी के अन्य दो पवित्र स्थल हैं। 1.6 एकड़ में फैला यह मंदिर नगर के केंद्र में स्थित है। मंदिर को पल्लवों ने बनवाया था। बाद में मंदिर का पुनरोद्धार 14वीं और 17वीं शताब्दी में करवाया गया।

 

वरदराज मंदिर

यह मंदिर भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है। मंदिर में इन्हें देवराजस्वामी के रूप में पूजा जाता है। मंदिर में 100 स्तम्भों वाला एक हाल है जिसे विजयनगर के राजाओं ने बनवाया था। यह मंदिर उस काल के कारीगरों की कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

 

एकम्बारानाथर मंदिर

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर को पल्लवों ने बनवाया था। बाद में इसका पुनर्निर्माण चोल और विजयनगर के राजाओं ने करवाया। 11 खंड़ों का यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे ऊंचे मंदिरों में एक है। मंदिर में कई आकर्षक मूर्तियां हैं। साथ ही यहां का 1000 पिलर का मंडपम भी खासा लोकप्रिय है।

 

कैसे जाएं कांचीपुरम

कोई भी भक्त यहां तीनों मार्गों से पहुंच सकता है।

वायु मार्ग

कांचीपुरम का निकटतम एयरपोर्ट चेन्नई है जो लगभग 75 किलोमीटर दूर है। चेन्नई से कांचीपुरम लगभग 2 घंटे में पहुंचा जा सकता है। यहां के लिए देश के सभी मुख्य एयरपोर्टों से फ्लाइट्स उपलब्ध हैं।

 

रेल मार्ग

कांचीपुरम का रेलवे स्टेशन चेन्नई, चेन्गलपट्टू, तिरूपति और बैंगलोर से जुड़ा हुआ है। जो इसे देश के कई राज्यों से जोड़ता है। यहां श्रद्धालु रेल मार्ग बड़ी ही सरलता से पहुंच सकते हैं।

 

सड़क मार्ग

कांचीपुरम तमिलनाडु के लगभग सभी शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। विभिन्न शहरों से कांचीपुरम (Kanchipuram) के लिए नियमित अंतराल पर बसें चलती हैं। इसके अलावा यह कई राजमार्ग से जुड़ा हुआ है।

Talk to astrologer
Talk to astrologer
एस्ट्रो लेख
Love Marriage Indication by Mole: जानें शरीर पर तिल से लव मैरिज या अरेंज मैरिज का संकेत

Love Marriage Indication by Mole: जानें शरीर पर तिल से लव मैरिज या अरेंज मैरिज का संकेत

Devshayani Ashadhi Ekadashi 2025: कब है और क्यों विशेष है देवशयनी एकादशी?

Devshayani Ashadhi Ekadashi 2025: कब है और क्यों विशेष है देवशयनी एकादशी?

Shubh Muhurat 2025 : जुलाई 2025 की शुभ तिथियों से बदल सकता है आपका भविष्य! जानें इन मुहूर्तों के बारे में

Shubh Muhurat 2025: जानें जुलाई महीने में शुभ कार्यों के लिए सबसे उत्तम तिथि और समय।

Sawan Somwar 2025: सावन सोमवार पूजा सामग्री, सोमवार मंत्र, आरती और भजन

Sawan Somwar 2025: सावन सोमवार पूजा सामग्री, मंत्र, आरती और भजन