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उत्तराखंड को ऐसे ही देव भूमि नहीं कहा जाता, हिमालय की गोद में स्थित यह राज्य प्राकृतिक छटाओं से हरा-भरा है। यहां हिंदूओं के कई तीर्थ व धार्मिक स्थान मौजूद हैं। भगवान शिव के केदारनाथ मंदिर और अनेक पवित्र मंदिरों के कारण उत्तराखंड हिंदुओं के महत्वपूर्ण धार्मिक क्षेत्रों में गिना जाता है। इसी कारण उत्तराखंड राज्य को देव भूमि कहा जाता है। केदारनाथ भी बद्रीनाथ जितना ही पवित्र और दर्शनीय स्थल है। यहीं पर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक शिवलिंग भी विराजमान है। इस शिवलिंग की आकृति अन्य शिवलिंगों से एक दम भिन्न है। आगे हम केदारनाथ के पौराणिक महत्व तथा यहां के मुख्य दर्शनीय स्थान कौन- कौन से इस बारे में जानेंगे।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा शिव पुराण में वर्णित है। इस कथा के अनुसार नर और नारायण नाम के दो भाई थे जो कि भगवान शिव की पार्थिव मूर्ति बनाकर उनकी पूजा एवं ध्यान में लगे रहते थे। इन दोनों भाईयों की तपस्या से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शिव इनके सामने प्रकट हुए। भगवान शिव ने इनसे वरदान मांगने के लिए कहा तो, दोनों भाईयों ने जन कल्याण कि भावना से महादेव से वरदान मांगा कि वह इस क्षेत्र में जनकल्याण हेतु सदा निवास करें। उनकी प्रार्थना को स्वीकार्य करते हुए भगवान शंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में इस क्षेत्र में स्थापित हो गए। कहा जाता है कि उस समय इस क्षेत्र पर राजा केदार का राज था और वे भी भोलेनाथ के परंम भक्त थे। राजा के विनती करने पर भगवान शिव ने केदारखंड का रक्षक बनना स्वीकार किया और उसके बाद से भगवान शिव केदारनाथ कहलाने लगे।
एक कथा महाभारत काल की प्रचलित है जो पांडवों से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव भ्रातृहत्या के दोष से मुक्ति पाना चाहते थे। इस दोष से पूरे संसार में उन्हें सिर्फ भगवान शिव ही मुक्ति दिला सकते थे, लेकिन शिव इनसे रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन हेतु पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। पांडव उन्हें खोजते हुए हिमालय जा पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडवों ने भी शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने का संकल्प ले लिया था, वे उनका पीछा करते-करते केदारखंड पहुंच गए। कहा जाता है कि भोलेनाथ ने तब एक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया। महाबली भीम ने विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपना पैर फैला दिया। सभी गाय-बैल नीचे से निकल गए, लेकिन बैल रूपी शिव पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। फिर भीम बैल रूपी शिव पर झपट पड़े, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ का त्रिकोणात्मक भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति व संकल्प को देख कर प्रसन्न हुए और उन्होंने पांडवों को दर्शन देकर दोष मुक्त कर दिया। तब से भगवान शिव को श्री केदारनाथ में पूजा जाता है।
वैसे तो केदार घाटी अपने अलौकिक प्राकृतिक दृश्यों के लिए दर्शनीय हैं। परंतु श्रीकेदारनाथ की बात ही कुछ और है। केदार घाटी में पहुंचते ही अनुभव होता है की मानो प्रकृति खुद केदारनाथ के दर्शनार्थ लालायित है। केदारनाथ धाम में कई दर्शनीय स्थल जो धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आइए जानते हैं उन स्थानों के बारे में.....
केदारनाथ मंदिर
विश्व विख्यात केदारनाथ मंदिर के कारण ही इस क्षेत्र को प्रसिद्धि प्राप्त है। इस मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। मंदिर में भगवान शिव की त्रिकोणात्मक आकृति का एक शिवलिंग है। जिसकी गणना शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में की जाती है। भगवान शिव का यह मंदिर कत्यूरी शैली में बनाया गया है। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 1000 वर्षों से भी पुराना है।
शंकराचार्य समाधि
कहा जाता है कि 32 वर्ष की आयु में आदि शंकराचार्य ने यहां समाधि ली थी। माना जाता है कि आठवीं शताब्दी में गुरु जी शंकराचार्य केदारनाथ मंदिर आये थे। इस मंदिर के दर्शन के बाद उन्होंने यहीं समाधि ले ली थी। यह समाधि दर्शनीय है।
वासुकी ताल
केदारनाथ से 8 किमी की दूरी पर स्थित यह ताल लोकप्रिय धार्मिक स्थान है। यह झील हिमालय की पहाड़ियों से घिरी है जो इसकी सुंदरता में चार चांद लगाती हैं। वासुकी ताल तक पहुंचने के लिए चतुरंगी और वासुकी हिमनदियों को पार करना पड़ता है जिनके रास्ते कठिन हैं लेकिन श्रद्धालु यहां पर पंहुचने के लिये इन कठिन रास्तों को भी पार कर लेते हैं।
गुप्तकाशी
केदारनाथ आने वाले यात्रियों के लिये गुप्तकाशी भी एक दर्शनीय स्थल है। यहां 3 मंदिर विद्यमान हैं जिनमें प्राचीन विश्वनाथ मंदिर, मणिकर्णिका कुंड और अर्द्धनारीश्वर मंदिर शामिल हैं। भगवान शिव को समर्पित अर्द्धनारीश्वर मन्दिर में श्रृद्धालु को भगवान शिव का दर्शन आधे पुरूष और आधे स्त्री के रूप में मिलता है। विश्वनाथ मन्दिर में भी भगवान शिव के कई अवतारों की मूर्तियां हैं।
गौरीकुंड
केदारनाथ का एक प्रमुख आकर्षण गौरीकुंड है। यहां पर एक प्राचीन मंदिर है जो देवी पार्वती को समर्पित है। लोक कथाओं के अनुसार यहीं पर देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या की थी। गौरीकुंड में एक गर्म पानी का सोता है जिसके पानी में न सिर्फ औषधीय गुण हैं बल्कि इससे लोगों को अपने पापों से भी मुक्ति मिलती है।
कैसे पहुंचे केदारनाथ धाम
वायु मार्ग
देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। केदारनाथ से जॉली ग्रांट की दूरी 225 किलोमीटर है। यहां से गोविंदघाट तक टैक्सी या बस के जरिए पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग
केदारनाथ का नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो गोविंदघाट से 210 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश से टैक्सी या बस के जरिए श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, चमोली और जोशीमठ होते हुए गोविंदघाट पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग
ऋषिकेश से गौरीकुंड की दूरी 212 किलोमीटर है। गौरीकुंड से 13 किलोमीटर की दूरी तय करके श्रद्धालु केदारनाथ पहुंच सकते हैं।