नैनीताल

नैनीताल

देव भूमि उत्तराखंड की पावन भूमि पर बसा नैनीताल (Nainital) शहर की प्राकृतिक सौंदर्य को देखते ही बनता है। यहां स्थित नैनादेवी शक्तिपीठ से शहर के सौंदर्य में और चार चांद लग जाता है। नैनीताल को तालों में नैनीताल ताल बाकी सब तलैयिया ऐसे ही नहीं कहा जाता है। तालों का शहर कहा जाने वाला नैनीताल शहर का मौसम अपने आप में मनमौजी है। कभी धूप तो कभी छाव और देखते ही देखते बारिश भी हो जाती है। यहां का मौसम सदैव शीतल रहता है। इसी के कारण यह शहर ब्रिटिश शासन में ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करता था। आगे हम नैना देवी मंदिर के पौराणिक महत्व के साथ यहां के दर्शनीय स्थानों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। आइए चलते हैं नैनीलात के सैर पर....

 

नैनादेवी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष की पुत्री सती का विवाह शिव से उनके इच्छा के विरूद्ध हुआ था। प्रजापति दक्ष शिव को पसंद नहीं करते थे, लेकिन देवताओं के आग्रह को वे टाल न सके, जिसके कारण उन्होंने अपनी पुत्री और शिव के विवाह को मानना पड़ा। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन करवाया, जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को बुलाया, परंतु अपने दामाद भगवान शिव और बेटी सती को निमंत्रण नहीं दिया। जिसके बाद सती शिव से हठ कर इस यज्ञ में पहुंची। जब वे अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपना और अपने पति का निरादर होते हुए देखीं तो वह अत्यन्त दु:खी हुईं। जिसके बाद सती ने अपने पिता दक्ष से कहा कि जिस शिव को देवताओं द्वारा पूजा जाता है जो देवो के देव हैं आपने उनका अनादर किया है। इस तिरस्कार का कारण मैं हूं। शिव का अनादर करने के प्रतिफल में मैं यज्ञकुंड में स्यवं को जलाकर आपके यज्ञ को असफल बनाती हूं। यह कहते ही देवी सती यज्ञकुंड में कूद पड़ती हैं। जब महादेव को इस घटना के बारे में पता चला तो वे क्रोध से भर गए। उन्होंने अपने गणों को प्रजापति दक्ष के यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट करने का आदेश दिया। सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि कहीं प्रलय न आ जाए। इसलिए सभी देवी-देवताओं ने महादेव से प्रार्थना की और उनके क्रोध को शांत करने का प्रयास किया। प्रजापति दक्ष ने भी अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। महादेव ने उनको क्षमादान दिया। लेकिन सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य जाग गया। शिव सती के जले हुए शरीर को उठाकर आकाश में भ्रमण करने लगेंं। शिव को वैराग्य से बाहर लाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन से सती के शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया और जहां-जहां पर साती के शरीर के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हुएं। आज का नैनीताल (Nainital) वही स्थान है, जहां पर देवी सती के नैन गिरे थे।

 

नैनीताल के दर्शनीय स्थल

नैनीताल में कई स्थान हैं जो दर्शनीय हैं जिनमें नैना देवी मंदिर, नैनी झील और मल्ली व तल्ली ताल विशेष हैं। इसके अलावा नैनीताल जू है जो पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करता है।

 

नैना देवी मंदिर

नैनी झील के उत्‍तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। बताया जाता है कि 1880 में हुए भूस्‍खलन में यह मंदिर नष्‍ट हो गया था। बाद में इसे दोबारा बनाया गया। यहां देवी सती की शक्ति रूप में पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। पौराणिक कथाओं की माने तो जब शिव सती की मृत देह को लेकर आकाश में भ्रमण कर रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। माना जाता है कि नैनीताल (Nainital) के इसी स्‍थान पर देवी सती की आंखें गिरी थीं। इसी के चलते इस मंदिर की स्‍थापना की गई।

 

नैनी झील

नैनीताल का मुख्‍य आकर्षण यहां की झील है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती के नयनों की अश्रुधार ने यहां पर इस ताल का रूप ले लिया। तब से यहां पर शिवपत्नी नन्दा की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। इसके अतिरिक्त एक और प्रचलित कथा है। कहा जाता है कि जब ऋषि अत्री, ऋषि पुलस्‍त्‍य और ऋषि पुलह को नैनीताल में कहीं पानी न मिला तो उन्‍होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर इसे भरा।

तल्ली एवं मल्ली ताल

नैनीताल के झील के दोनों ओर सड़कें हैं। झील के ऊंचे भाग को मल्लीताल और नीचले भाग को तल्लीताल कहा जाता है। मल्लीताल में खुला मैदान है। जहां शाम होते ही मैदानी क्षेत्रों से आए हुए सैलानी एकत्र हो जाते हैं। यहां से नैनीताल को देखने का अनुभव एक दम अलग होता है। यहां रोजाना नए-नए खेल तमाशों का आयोजन होता रहता है।

 

नैनीताल जू

नैनीताल जू को देश का सबसे ऊंचे स्थान पर बना चिड़िया घर माना जाता है। इस जू का आधिकारी नाम भारतरत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के नाम पर रखा गया है। इस चिड़ियाघर में हिमालयन काला भालू, पांडा, तेंदुआ, बाघ, हिरण समेत कई दुर्लभ प्रजाती के पक्षी व जानवर हैं। यह जू सोमवार और सभी राष्ट्रीय अवकाशों पर बंद रहता है।

 

कैसे पहुंचे नैनीताल

नैनीताल वायु, रेल व सड़क मार्गों से पहुंचा जा सकता है।

 

वायु मार्ग

नैनीताल से सबसे करीबी एयरपोर्ट दिल्ली का है। जो देश के सभी एयरपोर्टों से जुड़ा है। यहां उतर कर आप रेल व सड़क मार्ग से नैनीताल जा सकते हैं।

रेल मार्ग

यहां का नजदीकी रेल स्टेशन काठगोदाम है। जो देश के मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों से जुड़ा है।

 

सड़क मार्ग

नैनीताल जाने के लिए सबसे उपयुक्त और एक मात्र जरिया यही है। क्योंकि काठगोदाम व दिल्ली एयरपोर्ट से आपको आगे का सफर रोड से तय करना पड़ता है। काठगोदाम या हल्दवानी उतर कर आप राज्य परिवहन की बस व निजी वाहन से नैनीताल आराम से पहुंच सकते हैं।

Talk to astrologer
Talk to astrologer
एस्ट्रो लेख
Ganesh Ji Sund Disha: गणेश जी की सूंड किस तरफ होनी चाहिए, दाईं या बाईं ? इनमें से कौन सी दिशा अधिक शुभ?

Ganesh Ji Sund Disha: गणेश जी की सूंड किस दिशा में होनी चाहिए? जानिए शुभ-अशुभ संकेत

Varshik Rashifal 2026: जानिए सभी 12 राशियों का वार्षिक भविष्यफल

Varshik Rashifal 2026: नए साल की नई शुरुआत के साथ जानिए आपकी राशि का हाल, वार्षिक राशिफल 2026 से।

वास्तु में ईशान कोण का महत्व: इस दिशा में क्या करें, क्या नहीं करें

वास्तु में ईशान कोण का महत्व

Shiv Chalisa Ka Path: महादेव को प्रसन्न करने का सरल उपाय

Shiv Chalisa Ka Path: महादेव को प्रसन्न करने का सरल उपाय