Kalashtami Vrat 2023: हिंदू धर्म में हर माह आने वाली कालाष्टमी का विशेष महत्व होता है जो भगवान भैरव को समर्पित होती हैं। साल 2023 में कब-कब कालाष्टमी? कैसे करें कालाष्टमी का पूजन? जानने के लिए पढ़ें।
हिंदू धर्म में हर महीने आने वाली मासिक कालाष्टमी का अत्यधिक महत्व होता है। यह तिथि हिंदुओं के लिए अत्यंत विशेष होती है जो मुख्य रूप से भगवान शिव के रौद्र रूप भगवान भैरवनाथ को समर्पित होता हैं। कालाष्टमी दिन भगवान भैरव की पूजा-अर्चना की जाती है। कालाष्टमी तिथि का व्रत और भगवान भैरव की पूजा-अर्चना करने से सभी प्रकार के दोषों एवं कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस दिन भक्त बेहद श्रद्धाभाव एवं आस्था से भगवान भैरव की पूजा करते हैं।
कब-कब मासिक कालाष्टमी व्रत?
हिंदू पंचांग में प्रति माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक कालाष्टमी का पावन पर्व मनाया जाता है। कालाष्टमी पर्व के हर महीने में आने के कारण, यह पर्व एक साल में कुल 12 बार तथा अधिक मास में 13 बार मनाया जाता है। इस दिन काल भैरव की पूजा संपन्न होने के कारण इस अष्टमी को काल भैरव अष्टमी या भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली महीने में पड़ने वाली कालाष्टमी सबसे अधिक प्रसिद्ध है जिसे काल भैरव जयंती के नाम से जाना जाता है। कालाष्टमी रविवार या मंगलवार के दिन पड़ने पर इसका महत्व में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि सप्ताह के ये दिन भी भगवान भैरव को समर्पित माने जाते हैं।
क्या हैं कालाष्टमी का महत्व?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी तिथि पर भगवान शिव रौद्र रूप भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। कालाष्टमी पर भगवान भैरव का व्रत एवं पूजन करने से सभी तरह के भय से मुक्ति की प्राप्ति होती है, साथ ही जातक को विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
भगवान भैरव अपने जातक की हर संकट से रक्षा करते हैं और इनके पूजन से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियां का अंत हो जाता हैं। कालाष्टमी के व्रत की पूजा रात्रि के समय में की जाती है इसलिए जिस रात्रि में अष्टमी तिथि प्रबल हो उसी दिन व्रत करना चाहिए।
कैसे करें कालाष्टमी की पूजा-विधि?
मासिक कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की भक्ति भाव से पूजा करनी चाहिए। कालाष्टमी तिथि इस प्रकार करें भैरों जी का पूजन:
कालाष्टमी तिथि पर सुबह-सवेरे जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।
स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
इसके पश्चात, घर के पूजा स्थल या किसी धार्मिक स्थान पर काल भैरव का चित्र या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए।
इसके चारों तरफ गंगाजल का छिड़काव करके भगवान को फूल अर्पित करें।
इसके पश्चात नारियल, गेरुआ, पान आदि चीजें अर्पित करनी चाहिए।
कालभैरव के सामने चौमुखी दीपक प्रज्वलित और धूप-दीप दिखाएं।
इसके उपरांत भैरव चालीसा का पाठ और भैरव मंत्रों का 108 बार जाप करें।
भगवान भैरव की पूजा की मान्यता रात्रि के समय भी अधिक है इसलिए रात्रिकाल में पुनः भैरव भगवान की पूजा करनी चाहिए।
क्या हैं कालाष्टमी की पौराणिक मान्यता?
धर्मग्रंथों से जुड़ीं पौराणिक कथा है कि कालाष्टमी तिथि पर भगवान शिव ने दुष्ट एवं पापियों का संहार करने के लिए अपना रौद्र रूप धारण किया था। भगवान शिव के दो रूप हैं एक है बटुक भैरव और काल भैरव। एक तरफ जहां बटुक भैरव सौम्य हैं, वहीं कालभैरव रौद्र रूप में हैं। मासिक कालाष्टमी के दिन रात्रि के समय में पूजा की जाती है। इस दिन काल भैरव की आराधना करने से भक्तों की सभी इच्छाएं एवं मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। रात के समय चंद्रमा को जल अर्पित करने के बाद ही यह व्रत पूरा माना जाता है।
कौन से लाभ होते है काल भैरव की उपासना से?
भगवान कालभैरव का व्रत करने से जातक की सांसारिक एवं भौतिक कामनाओं की पूर्ति होती हैं।
भैरव जी की साधना एवं पूजन करने से जातक को सभी दुखों से छुटकारा की प्राप्ति होती है।
सर्वसाधारण के लिए कालाष्टमी व्रत को बहुत ही फलदायी माना गया है।
कालाष्टमी तिथि का व्रत करने से पूरी विधि-विधान से काल भैरव का पूजन करने से व्यक्ति के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
जातक का काल नुकसान पहुंचाने में सक्षम नहीं होता है, जो सच्चे हृदय से भैरव जी की पूजन करता है।
कालाष्टमी व्रत करने वाले मनुष्य को समूचे दिन नीचे दिए गए मंत्र का जाप करना चाहिए। "ॐ कालभैरवाय नम:"
साल 2023 में कब-कब कालाष्टमी तिथियां?
माघ कृष्ण अष्टमी: 25 जनवरी को प्रातः 07 बजकर 48 मिनट से 26 जनवरी प्रातः 06 बजकर 25 मिनट तक,
फाल्गुन कृष्ण अष्टमी: 23 फरवरी को शाम 04 बजकर 56 मिनट से 24 फरवरी को दोपहर 03 बजकर 03 मिनट तक,
चैत्र कृष्ण अष्टमी: 25 मार्च को रात्रि 12 बजकर 09 मिनट से 25 मार्च रात्रि 10 बजकर 04 बजे मिनट तक,
वैशाख कृष्ण अष्टमी: 23 अप्रैल को प्रातः 06 बजकर 27 मिनट से 24 अप्रैल प्रातः 04 बजकर 29 मिनट तक
ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी: 22 मई को दोपहर 12 बजकर 59 मिनट से 23 मई प्रातः 11 बजकर 34 मिनट तक,
आषाढ़ कृष्ण अष्टमी: 20 जून को रात 09 बजकर 01 मिनट से 21 जून रात्रि 08 बजकर 30 मिनट तक,
श्रवण कृष्ण अष्टमी: 20 जुलाई को सुबह 07 बजकर 35 मिनट से 21 जुलाई, सुबह 08 बजकर 11 मिनट तक,
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी: 18 अगस्त को रात 0 बजकर 20 मिनट से 19 अगस्त रात्रि 10 बजकर 59 मिनट तक,
आश्विन कृष्ण अष्टमी:17 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 14 मिनट से 18 सितंबर शाम 04 बजकर 32 मिनट तक,
कार्तिक कृष्ण अष्टमी:, 17 अक्टूबर को प्रातः 09 बजकर 29 मिनट से 18 अक्टूबर,प्रातः 11 मिनट 57 मिनट तक
मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी या कालभैरव जयंती: 16 नवंबर को प्रातः 05 बजकर 49 मिनट से 17 नवंबर प्रातः 07 57 मिनट तक
पौष कृष्ण अष्टमी: 16 दिसंबर को प्रातः 01 बजकर 39 मिनट से 17 दिसंबर को प्रातः 03 बजकर 02 मिनट तक