हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष रूप से महत्व होता है। इस दिन धार्मिक तीर्थस्थल पर पवित्र नदी के जल में स्नान करना और दान-पुण्य आदि कार्य करना शुभ होता हैं। वर्ष 2025 में कब है मार्गशीर्ष पूर्णिमा? पूजा एवं महत्व आदि। पढ़ें। प्रत्येक महीने में आने वाली पूर्णिमा का अपना विशेष धार्मिक महत्व होता है, इन्ही पूर्णिमाओं में से एक है मार्गशीर्ष पूर्णिमा। पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहा जाता है। यह पूर्णिमा बत्तीसी पूर्णिमा या कोरला पूर्णिमा नाम से भी जनि जाती है, लेकिन मुख्यतः यह मार्गशीर्ष पूर्णिमा के नाम से ही प्रसिद्ध है। भारत के शीर्ष ज्योतिषियों से ऑनलाइन परामर्श करने के लिए यहां क्लिक करें!
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - 04 दिसम्बर, सुबह 08:37 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त - 05 दिसम्बर, सुबह 04:43 बजे तक
मार्गशीर्ष माह का महत्व
मार्गशीर्ष का महीना मुख्यतः दान-पुण्य, धर्म एवं कर्म का महीना माना गया है। श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने साक्षात कहा है, महीनों में मैं मार्गशीर्ष का पवित्र महीना हूं। ऐसा माना जाता है कि मार्गशीर्ष के महीने से ही सतयुग का आरंभ हुआ था। इस माह में आने वाली पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहा जाता हैं और इस दिन स्नान, दान एवं तप करना अत्यंत फलदायी सिद्ध होता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के अवसर पर हरिद्वार, बनारस, मथुरा और प्रयागराज आदि धार्मिक स्थानों पर पवित्र नदियों में स्नानादि करने की परंपरा हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि
ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा के दिन उपवास करने तथा समस्त देवी-देवताओं का पूजन करने से सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत करते समय धार्मिक अनुष्ठानों को इस प्रकार करें:
इस पूर्णिमा के दिन भगवान नारायण की पूजा करने का विधान है। प्रातःकाल उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें या नहाने के पानी में पवित्र नदी का जल मिलाकर स्नान करें।
स्नान करने के पश्चात भगवान का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए
इस दिन सफेद वस्त्र धारण करें, साथ ही पूजा आरंभ करने से पूर्व आचमन करना चाहिए।
इसके उपरांत ‘ऊँ नमोः नारायण’' मंत्र का जप करते हुए भगवान का ध्यान करें।
भगवान का आह्वान करते हुए उन्हें पुष्प, आसन एवं इत्र अर्पित करें।
पूजास्थल पर हवन के लिए एक वेदी का निर्माण करें। यज्ञ की पवित्र अग्नि में तेल, घी, शक्कर आदि की आहुति देकर हवन संपन्न करें।
हवन संपन्न होने के बाद ईश्वर का ध्यान करते हुए उन्हें भक्तिभाव से व्रत का अर्पण करें।
जातक को रात को भगवान नारायण की मूर्ति के पास ही शयन करना चाहिए।
पूर्णिमा व्रत के अगले दिन ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं और क्षमता अनुसार दान-दक्षिणा दें।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन दक्षिण भारत में भगवान दत्तात्रेय के मंदिरों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को ‘दत्तात्रेय जयंती’ के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान दत्तात्रेय को त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना गया है। अन्य मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में भगवान दत्तात्रेय पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। उसी समय से ही इस पूर्णिमा को विश्व स्मरणोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार, मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर पवित्र यमुना नदी में स्नान करने वाली युवा कन्याओं एवं महिलाओं को मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति का आर्शीवाद मिलता है।
हिंदू विचारधारा में मार्गशीर्ष माह को अत्यंत मंगलदायी एवं शुभ समय के रूप से देखा जाता है। धर्म शास्त्रों में, इस महीने का ‘मगसर’, अगहन या ‘अग्रहयान’ आदि नामों से वर्णित किया गया है।
इस पूर्णिमा की पवित्र धाराऐं वैशाख, कार्तिका एवं माघ के चंद्र माह के समान ही आवश्यक है। इसी प्रकार मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि पर व्रत करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। बुद्धिजीवियों एवं शोधकर्ताओं के मतानुसार, मार्गशीर्ष पूर्णिमा के शुभ अवसर पर उदारवादी कार्य करके, प्रत्येक व्यक्ति अपने बुरे कार्यों एवं पापों से मुक्ति पा सकता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर श्रीहरि विष्णु के‘नारायण रूप की पूजा का विधान है। पुराणों में, इस महीने को ‘मासोनम मार्गशीर्षोहम’ कहा गया है, जिसके अनुसार, मार्गशीर्ष की तुलना में अधिक आशावादी वाला कोई अन्य महीना नहीं है।
हिंदू रीति-रिवाज़ों के मुताबिक,मार्गशीर्ष के महीने में आने वाली पूर्णिमा को ‘मार्गशीर्ष पूर्णिमा’ के रूप में मनाते है और इस दिन भक्त पवित्र नदियों में आस्था के साथ डुबकी लगाते हैं और भगवान विष्णु के प्रति अपने समर्पण को प्रकट करते हैं।
इस दिन चंद्र देव की आराधना करने का भी विधान हैं, इससे जुड़ीं मान्यता है कि मार्गशीष पूर्णिमा पर चंद्रमा को ‘अमृत’ पेश किया गया था। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मार्गशीर्ष महीना नौवां महीना है जिसे प्रतिबद्धता या वचनबद्धता का समय माना जाता है।