हिंदू धर्म के 16 संस्कारों पर आधारित लेखों की श्रृंखला में अब तक हम चार संस्कारों के बारे में अपने पाठकों को बता चुके हैं। इनमें गर्भाधारण, पुंसवन, सीमंतोन्नयन एवं जातकर्म संस्कार आते हैं। प्रथम तीन संस्कार गर्भधारण से लेकर गर्भावस्था के दौरान किये जाते हैं तो चौथा संस्कार जातकर्म जातक के जन्म पर किया जाता है। अपने इस लेख में हम हिंदू धर्म के पांचवे संस्कार की बात करेंगें। पंचम संस्कार नामकरण संस्कार है। तो आइये जानते हैं नामकरण संस्कार का महत्व व विधि के बारे में।
वैसे तो दुनिया के मशहूर नाटककार शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है लेकिन वे इस बात से अनभिज्ञ हो सकते हैं कि नाम ही है जिससे आपकी पहचान होती है। भारतीय समाज में हिंदू धर्म के अनुयायियों की काफी संख्या है। हिंदू धर्म में हर जातक के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार किये जाते हैं इन्हीं में से एक नामकरण भी है। चूंकि नाम से ही पहचान जुड़ी होती है, नाम ही है जिसे कमाया जाता है यानि प्रसिद्धि पाई जाती है नाम ही है जो बदनाम होता है। कर्म तो सभी करते हैं अपने-अपने हिस्से के कर्म करते हैं। लेकिन नाम के अनुसार ही कर्मों की पहचान होती है जिनके प्रताप से जातक अच्छे व बुरे रूप में नाम कमाता है। जो कुछ खास नहीं करता वह गुमनाम भी होता है। इसलिये नाम सोच समझकर रखा जाना जरुरी होता है। हिंदूओं में इसे पूरे धार्मिक प्रक्रिया के तहत विधि विधान से रखा जाता है। नाम रखने की इस प्रक्रिया को ही नामकरण संस्कार कहा जाता है। नामकरण संस्कार के महत्व को स्मृति संग्रह में लिखे इस श्लोक से समझा जा सकता है –
आयुर्वेदभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहतेस्तथा।
नामकर्मफलं त्वेतत् समुदृष्टं मनीषिभि:।।
इसका अर्थ है कि नामकरण से जातक की आयु तथा जातक के तेज में वृद्धि होती है साथ ही अपने नाम, अपने आचरण, अपने कर्म से जातक ख्याति प्राप्त कर अपनी एक अलग पहचान कायम करता है।
नामकरण संस्कार आम तौर पर जन्म के दस दिन बाद किया जाता है। दरअसल जातक के जन्म से सूतक प्रारंभ माना जाता है जिसकी अवधि वर्ण व्यवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है। पाराशर स्मृति के अनुसार ब्राह्मण वर्ण में सूतक दस दिन, क्षत्रियों में 12 दिन, वैश्य में 15 दिन तो शूद्र के लिये एक मास का माना गया है। वर्तमान में वर्ण व्यवस्था के अप्रासंगिक होने के कारण इसे सामान्यत: ग्यारहवें दिन किया जाता है। पारस्कर गृहयसूत्र कहता है – “दशम्यामुत्थाप्य पिता नाम करोति”। यानि दसवें दिन भी पिता द्वारा नामकरण किया जाता है। लेकिन इसके लिये यज्ञ का आयोजन कर सूतिका का शुद्धिकरण करवाया जाता है। नामकरण संस्कार 100वें दिन या एक वर्ष बीत जाने के पश्चात भी किया जाता है। गोभिल गृहयसूत्रकार लिखते भी हैं – “जननादृशरात्रे व्युष्टे शतरात्रे संवत्सरे वा नामधेयकरणम्”।
नामकरण संस्कार के दौरान बच्चे को शहद चटाया जाता है, इसके पश्चात आशीर्वचन करते हुए जातक को सूर्यदेव के दर्शन करवाये जाते हैं। सूर्य के दर्शन करवाने के पिछे मान्यता है कि बच्चा भी सूर्य की तरह तेजस्वी हो। धरती माता को भी नमन किया जाता है। सभी देवी-देवताओं का स्मरण किया जाता है। इसके पश्चात शिशु का नाम लेकर उपस्थित जनों द्वारा उसकी लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य व उसके जीवन में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। नामकरण किसी विद्वान ज्योतिषाचार्य द्वारा ही करवाया जाता है क्योंकि जातक का जन्म जिस नक्षत्र में होता है उसी नक्षत्र के अक्षर से जातक का नाम रखा जाता है। नामकरण के दौरान जातक के जातिनाम, वंश, गौत्र आदि का भी ध्यान रखा जाता है। वहीं नाम की सार्थकता भी विशेष ध्यान रखा जाता है। नामकरण के दौरान जातक के दो नाम रखे जाते हैं। एक प्रचलित नाम होता है जो सबको बताया जाता है वहीं एक गुप्त नाम भी जातक का रखा जाता है जिसकी जानकारी केवल माता-पिता को होती है। मान्यता है कि इससे जातक मारण, उच्चाटन, मोहन आदि तंत्र-मंत्र, टोने-टोटकों से बचा रहता है, जातक का अहित चाहने वालों द्वारा किये गये इस तरह के अभिचार कर्म असफल रहते हैं।
तो नामकरण संस्कार बहुत ही अच्छा संस्कार है आप भी अपने बच्चे का कोई सुंदर व सार्थक सा नाम रखें। ऐसा नाम कदापि न रखें जिसके कारण बालक को आगे चलकर अपने नाम के कारण किसी हीन भावना का शिकार होना पड़े। अपनी कुंडली के अनुसार प्रेम, विवाह, संतान आदि योगों के बारे में जानने के लिये आप हमारे ज्योतिषाचार्यों से परामर्श कर सकते हैं। ज्योतिषियों से बात करने के लिये यहां क्लिक करें।
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