परशुराम जयंती हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है जो भगवान परशुराम को समर्पित होता है। साल 2023 में कब है परशुराम जयंती? कैसे करें भगवान परशुराम को प्रसन्न? जानने के लिए पढ़ें।
हिन्दुओं का प्रसिद्ध एवं प्रमुख त्यौहार है परशुराम जयंती जो भगवान परशुराम को समर्पित हैं। देशभर में परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti) को अत्यंत धूमधाम, उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता हैं। भगवान परशुराम को श्री हरि विष्णु के 6वें अवतार कहा गया है, जिन्होंने धरती पर क्रूर क्षत्रियों के अत्याचारों से मुक्ति के लिए जन्म लिया था। परशुराम जयंती को भगवान परशुराम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, परशुराम जयंती को प्रति वर्ष वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अर्थात तीसरे दिन मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन सामान्यरूप से अप्रैल या मई के महीने में आता है। परशुराम जयंती का पर्व देश के अधिकांश हिस्सों में अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता हैं और दोनों ही पर्वों को आस्था से मनाने का प्रचलन हैं।
सनातन धर्म में भगवान परशुराम को विशेष स्थान प्राप्त हैं जिन्हें संसार के पालनहार भगवान विष्णु का अवतार माना गया हैं। परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में अवश्य हुआ था किन्तु स्वभाव से ये क्षत्रिय थे
भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ सम्पन्न किया था और इन्द्र देव ने प्रसन्न होकर इन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था और वहीं महर्षि की पत्नी रेणुका ने वैशाख शुक्ल तृतीय पक्ष में भगवान परशुराम को जन्म दिया था।
मान्यता अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार के रूप में परशुराम जी ने तब जन्म लिया था, जब पृथ्वी पर चारों तरफ बुराई फैली हुई थी। योद्धा एवं क्षत्रिय वर्ग हथियारों और शक्तियों का दुरुपयोग करके आम लोगों पर अत्याचार कर रहे थे। भगवान परशुराम ने अत्याचारी योद्धाओं को नाश करके ब्रह्मांडीय संतुलन को बरकरार रखा था।
हिंदू शास्त्रों में भगवान परशुराम को राम भार्गव, राम जामदग्नेय और वीर राम के नाम से भी जाना जाता है। परशुराम जी का पूजन चितल्पन, निओगी भूमि अधिकारी ब्राह्मण, दैवद्न्या, त्यागी, अनावील, मोहाल और नंबुद्री ब्राह्मण समुदायों के संस्थापक के रूप में किया जाता है।
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परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया हिन्दू धर्म के दो प्रसिद्ध त्यौहार हैं जिन्हें एक ही तिथि पर मनाया जाता हैं। परशुराम जयंती के दिन व्रत करना अत्यंत शुभ होता हैं और इस दिन व्रत करना व्रती के लिए फलदायी होती हैं।
ऐसा माना जाता हैं कि इस दिन व्रत करने से भक्त को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, इसी प्रकार जिन जातकों को संतान प्राप्ति में समस्या आ रही हैं तो उन जातकों को परशुराम जयंती पर धार्मिक अनुष्ठान के साथ व्रत रखना चाहिए। ऐसा करने से संतान की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता हैं।
भगवान परशुराम महादेव के अनन्य भक्त थे और इन्होंने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। भगवान परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें वरदान स्वरूप में अपना दिव्य अस्त्र परशु यानि फरसा दिया था।
विष्णु पुराण के अनुसार, परशुराम जी का वास्तविक नाम राम था, लेकिन परशु धारण करने की वजह से परशुराम के नाम से विख्यात हुए।
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार, श्री विष्णु ने भगवान परशुराम को वरदान दिया था कि त्रेता युग में रामावतार होने पर वे पृथ्वी पर वास करेंगे और सदैव तपस्या में लीन रहेंगे। इस आधार पर ऐसा कहा जाता है कि आज भी परशुराम जी जीवित हैं।
भगवान परशुराम को शस्त्र विद्या में पारंगत माना गया है और इन्होंने ही भीष्म, दोष और कर्ण जैसे योद्धाओं को शस्त्र विद्या प्रदान की थी। ऐसा कहा जाता है कि जब कलयुग में भगवान विष्णु का अंतिम अवतार कल्कि होगा, तो भगवान परशुराम ही उन्हें शस्त्र विद्या का ज्ञान देंगे।
कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का संहार किया था।
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परशुराम जयंती के दिन जातक को प्रातःकाल उठकर नित्य कर्मों को करने के बाद स्नान आदि के पश्चात सर्वप्रथम भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।
भगवान परशुराम की मूर्ति न होने पर श्री हरि विष्णु की प्रतिमा का प्रयोग करना चाहिए।
भगवान परशुराम के समक्ष दीपक एवं धूपबत्ती करने के बाद परशुराम जी से संबंधित कथाएं पढ़ें।
जातक द्वारा शुभ परिणामों में वृद्धि के लिए परशुराम जयंती पर भगवान विष्णु की आरती और मंत्रों का उच्चारण आदि करना चाहिए।
इस दिन जो भक्त व्रत का पालन करते हैं, इस दिन उन्हें दाल या अनाज के सेवन से बचना चाहिए। जातक को सिर्फ दूध से बने पदार्थों और फलों का सेवन करना चाहिए।
जब पितृ भक्ति के लिए परशुराम जी ने काटा अपनी माँ का सिर: शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान परशुराम के पिता ने अपनी पत्नी रेणुका से अत्यंत क्रोधित होकर परशुराम जी को उनकी माता की हत्या का आदेश दिया। अपने पिता के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने अपनी मां की हत्या कर दी। भगवान परशुराम से प्रसन्न होकर उनके पिता जमदग्नि ने बेटे से कहा कि, तुम क्या चाहते हो? उस समय बालक परशुराम ने अपनी मां का जीवन वापस मांग लिया था। इस प्रकार भगवान परशुराम ने अपने पिता और मां के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को सिद्ध किया।