परशुराम वैसे तो महर्षि जमदग्नि और रेणुका की संतान थे लेकिन उन्हें भगवान विष्णु का ही आवेशावतार माना जाता है। इन्हीं भगवान परशुराम के नाम पर अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले से लगभग 24 किलोमीटर दूरी पर स्थित है परशुराम कुंड। इस कुंड को प्रभु कुठार के नाम से भी जाना जाता है। कुंड का नाम परशुराम क्यों पड़ा इसके पिछे एक पौराणिक कहानी है। आइये जानते हैं परशुराम कुंड की मान्यता और कहानी के बारे में।
परशुराम कुंड के बारे में मान्यता प्रचलित है कि इस कुंड में स्नान करने पर व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। चाहे कोई कितना ही महापापी क्यों न हो लेकिन सच्चे मन से यदि कोई पश्चाताप की अग्नि में जलता हुआ इस कुंड में स्नान करता है तो उसके पाप धुल जाते हैं व उसका मन निर्मल हो जाता है। यही कारण है कि लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ इस कुंड में स्नान करने के लिये उमड़ती है। मकर संक्रांति पर तो यहां का नजारा वाकई देखने लायक होता है। इस समय यहां उमड़ने वाले जन सैलाब की तुलना महाकुंभ से की जाती है।
एक बार की बात है कि महर्षि जमदग्नि की पत्नि रेणुका हवन के लिये जल लेने गंगा नदी पर गई हुई थी वहीं उस समय नदी पर अप्सराओं के साथ गंधर्वराज चित्ररथ को विहार करता हुआ देखकर वह उन पर आसक्त हो गई। इसी कारण उन्हें जल लेकर जाने में देरी हो गई। उधर हवन में देरी के कारण महर्षि जमदग्नि बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने एक-एक कर अपने पुत्रों को अपनी माता का वध करने का आदेश दिया। भगवान परशुराम से बड़े उनके चार भाई थे लेकिन किसी ने भी माता का वध करने का दुस्साहस नहीं किया। जब महर्षि ने परशुराम को ये जिम्मेदारी सौंपी तो भगवान परशुराम ने फरसे से अपनी माता का शीष एक झटके में धड़ से अलग कर दिया। महर्षि जमदग्नि ने अपने बाकि पुत्रों को पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने की सजा देते हुए श्राप देकर उनकी चेतना शक्ति को नष्ट कर दिया। महर्षि परशुराम के आज्ञापालन से प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने के लिये कहा। तब भगवान परशुराम ने अपने पिता से तीन वर मांगे। उन्होंने कहा की मेरी माता पुन: जीवित हो जायें। दूसरे वर में उन्होंने मांगा की माता को मृत्यु का स्मरण न रहे और तीसरा सभी भाईयों की चेतना वापस लौट आये। महर्षि जमदग्नि ने उन्हें तीनों वरदान दे दिये और सब कुछ सामान्य हो गया। लेकिन एक चीज उनके साथ और हुई जिसे लेकर वे परेशान हुए। हुआं यूं की वर मांगने के कारण माता तो जीवित हो गई लेकिन उन्होंने अपनी माता की हत्या तो की थी उसका दोष उन्हें लग गया और जिस फरसे से माता की हत्या की थी वह उनके हाथ से चिपक गया। उन्होंने अपने पिता से इसका उपाय पूछा तो उन्होंनें उन्हें देश भर में पवित्र नदियों और कुंडों में स्नान करने की कही और कहा कि जहां भी यह फरसा हाथ से छुट जायेगा वहीं तुम्हें इस दोष से मुक्ति मिलेगी।
माना जाता है कि अरुणाचल प्रदेश के लोहित स्थित इसी कुंड में स्नान करने पर भगवान परशुराम का फरसा उनके हाथ से छिटक कर कुंड में गिरा और उन्हें मातृहत्या के पाप से मुक्ति मिली।
यहां भी है मान्यता
मेवाड़ का अमरनाथ कहे जाने वाले परशुराम महादेव गुफा मंदिर से कुछ मील की दूरी पर स्थित मातृकुंडिया नामक स्थान को लेकर भी यही मान्यता है कि भगवान परशुराम को यहां मातृहत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।
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