ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सभी जातकों का भूत वर्तमान व भविष्य जातक की जन्मकुंडली में ग्रहों की दशाओं से प्रभावित होता है। इसी प्रभाव के कारण कुछ ग्रह अच्छा परिणाम देने वाले माने जाते हैं तो कुछ ग्रहों का प्रभाव बहुत ही नकारात्मक माना जाता है। अपने इन्हीं प्रभावों के कारण शुभ अशुभ ग्रहों के प्रति धारणाएं पूर्वाग्रह भी बन जाती हैं। मसलन शनि, मंगल, सूर्य, राहू-केतु को अक्सर क्रूर अथवा पाप ग्रहों की श्रेणी में रखा जाता है। इनमें भी शनि व राहू-केतु सबसे क्रूर माने जाते हैं। लेकिन अक्सर ऐसा होता नहीं है। यह ग्रह नकारात्मक और सकारात्मक परिणाम अपनी दशा के अनुसार देते हैं। शनि, राहू और केतु भी कई बार इतना अच्छा परिणाम देने वाले होते हैं की जातक की जिंदगी अचानक बदलने लग जाती है और वह रंक से राजा बन जाता है। लेकिन जब यही ग्रह नकारात्मक स्थान पर होते हैं तो राजा से रंक भी बना देते हैं। इस लेख में हम बात करेंगें राहू की।
राहू-केतु वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रह नहीं माने जाते। ज्योतिषशास्त्र में भी इन्हें छाया ग्रह माना जाता है। राहू व केतु को अनिष्टकारी परिणाम देने के लिये जाना जाता है। राहू का नाम सुनते ही जातक को कंपकंपी चढ़ जाती है और अनिष्ट का भय उसे सताने लगता है। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। हम आपको बता रहे हैं कि किन परिस्थितियों में राहू अनिष्टकारी फल देता है।
राहू की एक खासियत यह है कि यह जो भी परिणाम देता है चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक वह अचानक से देता है। यानि यह अर्श से फर्श और फर्श से अर्श पर तुरंत प्रभाव से जातक को ले आता है। जब जातक राहू के लपेटे में आता है तो वह शंकाओं से घिरा रहने लगता है। मानसिक तनाव बढ़ने लग जाते हैं। हर ओर से बूरी खबरें मिलने लगती हैं। जो भी पासा जातक फेंकता है वह उल्टा ही पड़ जाता है। ऐसे में जातक की नींद उड़ जाती है, वह दुर्व्यसनों में पड़कर अपनी सेहत को नुक्सान पंहुचाने लगता है, बूरी संगत में रहकर पाप कर्मों को अंजाम देने लग जाता है। शत्रु बढ़ने लग जाते हैं। हर ओर से हार व हताशा मिलने लगती है। यह सब तब होता है जब राहू अनिष्ट स्थानों पर बैठा हो। मसलन
राहू लग्न में हो, पंचम, सप्तम, अष्टम, द्वादश आदि स्थानों पर हो, और अन्य क्रूर व पापी ग्रहों का साथ भी मिल रहा हो व इसके साथ ही गोचर में शत्रु राशि में विचरण कर रहा हो तो ऐसे जातक के दुखों का कोई अंत नहीं होता। वह अपने जीवन से पिछा छुड़ाने के लिये प्रयत्न करना रहता है। और यदि राहू नीच का हो या अस्त हो रहा हो तो जातक मौत को भी गले लगा सकता है।
वहीं यदि राहू केंद्र का स्वामी हो या फिर छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्वामी होकर इन्हीं स्थानों में बैठ जाये और कोई अन्य पापी ग्रह उसे देखे तो यह शुभ फल भी देता है। विपरीत परिस्थितियों में भी बहुत शुभ परिणाम जातक को मिल जाते हैं। जातक इतनी सफलता व उपलब्धियां अर्जित करता है जिनकी उसने कल्पना भी न की हो।
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