संसार के पालनहार भगवान कृष्ण के स्वरूप भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए मंदिर से बाहर आते है, ये पल भक्त और भगवान दोनों के लिए बेहद खास होता है, जानें रथयात्रा 2022 के बारे में सबकुछ, अभी पढ़ें।
जगन्नाथ रथयात्रा, रथ यात्रा या पुरी रथयात्रा को हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस रथयात्रा का आयोजन हर साल पुरी में विशाल स्तर पर किया जाता है जिसमें हिस्सा लेने के लिए दुनियाभर से भक्त एवं श्रद्धालु आते हैं। जगन्नाथ रथयात्रा के साक्षी बनने वाले भक्त अपने आपको सौभाग्यशाली मानते है। यह एक ऐसा दिन होता है जब साल में एक बार स्वयं जगन्नाथ मंदिर के इष्ट देव मंदिर से बाहर आते है और भक्त मंदिर के बाहर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने में सक्षम होते है।
कब है 2022 में जगन्नाथ रथ यात्रा?
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी यात्रा या जगन्नाथ यात्रा को निकला जाता है। यह भव्य रथयात्रा चारों धाम में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है और यह यात्रा निरंतर दस दिनों तक चलती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, हर साल पुरी यात्रा को जून या जुलाई के महीने में आयोजित किया जाता है। आइये जानते है 2022 में कब है रथयात्रा?
जगन्नाथ रथयात्रा की तिथि: 01 जुलाई 2022, शुक्रवार
रथ यात्रा का समय
द्वितीया तिथि का आरंभ: 30 जून को 10:50:20 से
द्वितीया तिथि की समाप्ति: 1 जुलाई को 13:10:27 पर
कहाँ निकली जाती है जगन्नाथ रथयात्रा?
जैसा कि हमें जगन्नाथ रथ यात्रा के नाम से ही पता लग रहा है कि विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का आयोजन चार धामों में से एक जगन्नाथ मंदिर में किया जाता है। यहाँ जगन्नाथ का अर्थ ‘जगत के नाथ’ यानी भगवान विष्णु से है। उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओं के पवित्र चार धामों में से एक है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि हर इंसान को अपने जीवन में एक बार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन अवश्य करने चाहिए।
इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान है। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में लाखों की तादाद में भक्तजन आते हैं, जिसमे भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों जैसे नेपाल, श्रीलंका, भूटान और बांग्लादेश के हिंदू भी शामिल होते हैं।
क्यों है जगन्नाथ यात्रा सबसे विशेष?
हर साल आयोजित होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में भगवान कृष्ण अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मंदिर से बाहर आकर अपने भक्तों दर्शन देते हैं।
जगन्नाथ रथयात्रा की तैयारियां 2 महीने पहले से यानी अक्षय तृतीया के दिन से ही शुरू हो जाती हैं जो लगातार 58 दिनों तक चलती है। इस दौरान रथों का निर्माण किया जाता है जो परंपरागत कारीगर द्वारा ही बनाये जाते हैं जो पीढ़ियों से ये कार्य करते आए हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई एवं बहन के साथ अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर में 10 दिनों के लिए रहने जाते हैं। गुंडिचा मदिर, जगन्नाथ मंदिर से 3 किमी की दूरी पर स्थित है और यहाँ तक हज़ारों-लाखों भक्तों द्वारा जगन्नाथ जी, बलभद्र जी एवं देवी सुभद्रा के रथों को खींचते हुए लाया जाता हैं।
इस रथ यात्रा के दौरान पूरी भक्तिभाव एवं विधि विधान से तीनों का पूजन किता है। बलभद्र, सुभद्रा एवं जगन्नाथ जी के विशाल एवं सुसज्जित रथों को पुरी की सड़कों पर निकाला जाता है।
इन तीनों रथों में बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’ के नाम से जाना जाता है, जो रथ यात्रा में सबसे आगे होता है। वहीं, सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहते है जो दोनों रथों के मध्य में चलता है। जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदी घोष’ या ‘गरुड़ ध्वज’ कहा जाता हैं, जो सबसे पीछे या सबसे अंत में होता है।
क्या है रथ यात्रा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व?
जगन्नाथ पुरी रथयात्रा धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगर हम धार्मिक दृष्टि के बारे में बात करें तो रथयात्रा पूर्णतः भगवान जगन्नाथ को समर्पित है जिन्हें जगत के पालनहार भगवान विष्णु का अवतार माना गया हैं।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का वर्णन अनेक धार्मिक ग्रंथों में किया गया है, जिनके नाम इस प्रकार हैं-नारद पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण आदि। भगवान पुरी रथ यात्रा को समूचे भारत में एक पर्व की तरह मनाया जाता है।
जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ीं प्रचलित मान्यताएं है कि श्रीकृष्ण के अवतार 'जगन्नाथ' रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के तुल्य माना गया है। हिन्दू धर्म की एक अन्य मान्यता है कि जगन्नाथ जी के रथ की सिर्फ झलक दिखने मात्र से ही व्यक्ति को मरणोपरान्त मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इस यात्रा के महत्व में ओर भी वृद्धि हो जाती है।
ऐसा भी कहा जाता हैं कि यदि कोई भक्त सच्चे मन, श्रद्धा और भक्ति भाव से जगन्नाथ रथयात्रा में भाग लेते हैं तो उन्हें जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती हैं।
यही वजह है कि रथयात्रा में शामिल होने के लिए दुनियाभर से अनगिनत श्रद्धालु पुरी आते हैं। जगन्नाथ रथयात्रा विश्व भर के सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गई है, साथ ही इस यात्रा का हिंदू धर्म एवं भारतीय सभ्यता में अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व हैं।
रथ यात्रा के दौरान किन परंपराओं को किया जाता है?
भगवान जगन्नाथ को समर्पित एक पवित्र रथयात्रा है जगन्नाथ रथयात्रा ओर इस तरह के अनेक प्रकार की परंपराओं का पालन किया जाता है जो इस प्रकार है:
रथयात्रा की एक धार्मिक परंपरा है पहांडी जो भक्तों के द्वारा बलभद्र जी, सुभद्रा जी तथा भगवान श्रीकृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की रथ यात्रा के दौरान की जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की सच्ची एवं परम भक्त थीं देवी गुंडिचा और उनकी इसी भक्ति के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हुए तीनों भाई-बहन हर वर्ष देवी से मिलने आते हैं।
रथयात्रा के प्रथम दिन छेरा पहरा की रस्म को निभाया जाता है और इस परंपरा के अंतर्गत पुरी के गजपति महाराज के द्वारा रथयात्रा के मार्ग को सोने की झाड़ू से साफ़ किया जाता है। इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य है कि भगवान की नज़रों में हर व्यक्ति समान है चाहे वह राजा हो या आम इंसान। यही वजह है कि वहां के राजा साफ़-सफ़ाई यातर मार्ग की सफाई करते है और इस रस्म को यात्रा के दौरान दो बार किया जाता है। पहली बार जब रथयात्रा को गुंडिचा मंदिर लेकर जाया जाता है और दूसरी बार जब रथों को वापस जगन्नाथ मंदिर लाया जाता है।
जगन्नाथ यात्रा के गुंडिचा मंदिर में पहुँचने पर भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलभद्र जी को पूरी विधि-विधान से स्नान कराया जाता है और उन्हें पवित्र वस्त्र पहनाएं जाते हैं। इस यात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान जगन्नाथ को देवी लक्ष्मी खोजते हुए आती हैं, जो अपना मंदिर छोड़कर यात्रा के लिए निकल आए हैं।
कौनसी रोचक बातें बनाती है जगन्नाथ रथ यात्रा को रोचक?
उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार धामों में से एक है जो 800 वर्ष से अधिक प्राचीन है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण, जगन्नाथ रूप में अपने बड़े भाई बलराम और बहन देवी सुभद्रा के साथ विराजित है।
भगवान जगन्नाथ के रथ को उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है जिसका रंग लाल और पीला होता है, साथ ही इनके रथ नंदीघोष की ऊंचाई 45.6 फीट होती है।
बलराम जी के रथ तालध्वज' का रंग लाल और हरा होता है और इस रथ की ऊंचाई 45 फीट होती हैं।
देवी सुभद्रा के रथ 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ का रंग काला या नीला और लाल रंग का होता है और इसकी कुल ऊंचाई 44.6 फीट होती है।
इन तीनों रथों का निर्माण नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से किया जाता है, जिसे ‘दारु’ कहते हैं।
जगन्नाथ रथयात्रा में प्रयोग होने वाले रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार की कील,कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है।