अक्षय तृतीया 2022: क्या है शुभ मुहूर्त, योग व ज्योतिषीय महत्व, जानें!

Fri, Apr 29, 2022
राजदीप पंडित
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अक्षय तृतीया 2022: क्या है शुभ मुहूर्त, योग व ज्योतिषीय महत्व, जानें!

Akshaya Tritiya 2022: वैशाख के समान कोई मास नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं, गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं और अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के समान कोई तिथि नहीं है। इस पंक्तियों से आपको पता चल गया होगा कि हिंदू धर्म में इस अक्षय तृतीया का कितना महत्व है। अक्षय का शाब्दिक अर्थ है कभी न मरने वाला यानी कि अमर, अविनाशी। इस तिथि पर किया गया कार्य सफल व लाभकारी साबित होगा। इस लेख में हम अक्षय तृतीया पर बनने वाले शुभ योग, मुहूर्त व ज्योतिषीय महत्व के बारे में जानेंगे।

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कब है अक्षय तृतीया, क्या है शुभ मुहूर्त व योग

वर्ष 2022 में अक्षय तृतीया 03 मई, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी, वैशाख महीना शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि, भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का प्राकट्य दिवस है। इस दिन रवि योग व शोभन योग बन रहा है। शोभन योग दोपहर 04 बजकर 16 मिनट तक रहेगा तो वहीं रवि योग 4 मई को सुबह 3 बजकर 18 मिनट से 05 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। ज्योतिष में दोनों ही योगों को शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

  • पूजा समय - सुबह 05 बजकर 39 मिनट से दोपहर 12 बजकर 17 मिनट  तक (03 मई 2022)
  • तृतीया तिथि प्रारम्भ - सुबह 05 बजकर 18 मिनट से (03 मई  2022)
  • तृतीया तिथि समाप्त - सुबह 07 बजकर 32 मिनट तक (04 मई 2022) तक

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अक्षय तृतीया पूजा विधि

  1. अक्षय तृतीया के दिन जातक को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए। 
  2. स्नान करने के बाद श्रीहरि विष्णुजी और मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर चंदन और अक्षत चढ़ाना चाहिए। 
  3. इसके बाद शांत मन से भगवान विष्णु व समृद्धि की देवी लक्ष्मी को सफेद कमल का फूल अर्पित करें।
  4. इसके अलावा आपको श्वेत गुलाब, धुप-अगरबत्ती एवं चंदन इत्यादि से पूजा करनी चाहिए। 
  5. पूजा में आप जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि का चढ़ा सकते हैं।
  6. पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। 
  7. इस तिथि पर बर्तन, वस्त्र, गौ, भूमि, जल से भरे घड़े, कुल्हड़, चावल, नमक, घी, चीनी, आदि वस्तु दान करें। इसे पुण्यकारी माना जाता है।

क्या है अक्षय से जुड़ी मान्यताएं

मान्यताओं के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु जी  के नर-नारायण, हयग्रीव जी और भगवान परशुराम अवतरित हुए हैं। इसके अलावा अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) को त्रेता युग की आरम्भ तिथि भी यही मानी जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों और पंचांग में कुछ अबूझ और स्वयं सिद्ध मुहूर्त (विशेष कार्य करने के लिए निश्चित किया गया विशिष्ट समय) कहे गए हैं, देवउठनी एकादशी, वसंत पंचमी व भडल्या नवमी, अक्षय तृतीया इन्हीं  मुहूर्तों में से एक है।

इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने से लाभ होता है। अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। हिंदू धर्म में यह तिथि अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन किये गए कार्य का परिणाम हमेशा शुभ रहता है और उनका अक्षय फल मिलता है।

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अक्षय तृतीया पर करें ये काम, होगा लाभ?

अक्षय तृतीया पर नया वाहन गृह प्रवेश, सोना खरीदना, मकान की नींव, भूमिपूजन, विवाह, मुंडन, तीर्थ यात्रा, मंदिर या धर्म क्षेत्र का निर्माण, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, नई नौकरी, धर्म से जुड़े कार्य, कोई भी नया कारोबार, लम्बी अवधि का निवेश, पॉलिसी खरीदना, शिक्षा या संगीत से संबंधित कार्य करना बेहद लाभप्रद होगा। ऐसा करने से परिणामों में वृद्धि प्राप्त होती है।

अक्षय तृतीया से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

एक हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन देवी अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था। जल, जौ, सत्तू, चना, गेहूँ, गन्ने का रस, जल से भरा कलश, दूध से बने उत्पाद, सात प्रकार के अनाज, नमक, विवाह में सुहाग व श्रृंगार सामग्री, चंदन की लकड़ी, धार्मिक पुस्तकें, वस्त्र, छाता और स्वर्ण का दान करना चाहिए। ऐसा करने पर दानकर्ता के मान-सम्मान में वृद्धि होती है और ख्याति का प्रचार प्रसार होता है। अक्षय तृतीया को किये गए दान-पुण्य का फल कभी समाप्त नहीं होता है।

अक्षय तृतीया के दिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने एवं ब्राह्मणों व जरूरतमंद को भोजन कराने से उत्तम फल प्राप्त होता है।

ज्योतिष में अक्षय तृतीया का महत्व क्या है?

अक्षय तृतीया का ज्योतिष और भविष्य गणना में विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य व चंद्रमा किसी भी जातक की कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभातें हैं। चंद्रमा जहां मन के स्वामी व समस्त परिणामों को प्रत्यक्ष रूप से शीघ्रता से प्रभावित करते हैं, वहीं सूर्य नक्षत्र मंडल के स्वामी व केंद्र हैं और ऊर्जा का स्रोत हैं। इस दिन दोनों ही ग्रह अपनी उच्च राशि में होते हैं और पूर्ण रूप से बली होते हैं।

इस दिन गुरु अपनी राशि मीन में, शुक्र उच्च राशि में, शानि अपनी राशि कुंभ में और राहु केतु एक साथ यानि मेष और तुला में गोचर करेंगे। चन्द्रमा का रोहिणी नक्षत्र में होना भी इन योगों को मजबूती देगा। इस दिन एक अद्भुत ग्रहों का संयोग बन रहा है जो बड़ी रुकावट और परेशानियों को दूर करेगा।

✍️लेखक- राजदीप पंडित

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