सप्तपुरियों में पुरी हों या चार धामों में धाम
सर्वोपरी पुरी धाम में जगन्नाथ का नाम
जगन्नाथ की पुरी भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। उड़िसा प्रांत के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ का मंदिर श्री कृष्ण भक्तों की आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि वास्तुकला का भी बेजोड़ नमुना है। इसकी बनावट के कुछ राज तो आज भी राज ही हैं जिनका भेद इंजिनयरिंग के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने वाले भी नहीं कर पायें हैं। आइये आपको बताते हैं भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर के बारे में।
कहा जाता है कि भगवान जगत के स्वामी जगन्नाथ भगवान श्री विष्णु की इंद्रनील या कहें नीलमणि से बनी मूर्ति एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी। मूर्ति की भव्यता को देखकर धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपा दिया। मान्यता है कि मालवा नरेश इंद्रद्युम्न जो कि भगवान विष्णु के कड़े भक्त थे उन्हें स्वयं श्री हरि ने सपने में दर्शन दिये और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा उस से मूर्ति का निर्माण कराओ। राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें लकड़ी का लट्ठा मिल गया। अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किनसे बनवाये। कहा जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं श्री विश्वकर्मा के साथ एक वृद्ध मूर्तिकार के रुप में प्रकट हुए। उन्होंनें कहा कि वे एक महीने के अंदर मूर्तियों का निर्माण कर देंगें लेकिन इस काम को एक बंद कमरे में अंजाम देंगें। एक महीने तक कोई भी इसमें प्रवेश नहीं करेगा ना कोई तांक-झांक करेगा चाहे वह राजा ही क्यों न हों।
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महीने का आखिरी दिन था, कमरे से भी कई दिन से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, तो कोतुहलवश राजा से रहा न गया और अंदर झांककर देखने लगे लेकिन तभी वृद्ध मूर्तिकार दरवाजा खोलकर बाहर आ गये और राजा को बताया कि मूर्तियां अभी अधूरी हैं उनके हाथ नहीं बने हैं। राजा को अपने कृत्य पर बहुत पश्चाताप हुआ और वृद्ध से माफी भी मांगी लेकिन उन्होंने कहा कि यही दैव की मर्जी है। तब उसी अवस्था में मूर्तियां स्थापित की गई। आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां उसी अवस्था में हैं।
जगन्नाथ पुरी में मध्यकाल से ही भगवान्नाथ की हर वर्ष पूरे हर्षोल्लास के साथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इसमें मंदिर के तीनों प्रमुख देवता भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और भगिनी सुभद्रा को अलग-अलग रथों में पूरी विराजमान किया जाता है। पूरी तरह से सुसज्जित इस रथयात्रा का नजारा भी भव्य दिखाई देता है। वर्तमान में रथ-यात्रा का चलन भारत के अन्य वैष्णव कृष्ण मंदिरों में भी खूब जोरों पर है। अब तो छोटे-छोटे शहरों में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के आयोजन होते हैं।
4 लाख वर्ग फुट के विस्तृत क्षेत्र में फैला भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर चहारदिवारी से घिरा है और कलिंग शैली की मंदिर स्थापत्यकला व शिल्प के प्रयोग से बना भारत के भव्य स्मारक स्थलों में शुमार है। मंदिर का मुख्य ढांचा 214 फुट ऊंचे पाषाण चबूतरे पर बना है। मूर्तियां इसके भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। वैसे तो भारत के बहुत सारे मंदिरों के साथ आश्चर्य जुड़े हुए हैं लेकिन जगन्नाथ मंदिर से जुड़े आश्चर्य बहुत ही अद्भुत हैं। कहते हैं प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर पर जाकर कोई भी इन आश्चर्यों को देख सकता है लेकिन बहुत प्रयासों के बाद भी अभी तक इन रहस्यों से पर्दा नहीं उठा है इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
हवा के खिलाफ लहराती है ध्वजा - मंदिर के शिखर पर स्थित ध्वज हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा क्यों होता है यह एक रहस्य ही बना हुआ है। एक और अद्भुत बात इस ध्वज से जुड़ी है वह यह कि इसे हर रोज बदला जाता है और बदलने वाला भी उल्टा चढ़कर ध्वजा तक पंहुचता है। मान्यता है कि यदि एक दिन ध्वजा को न बदला जाये तो मंदिर के द्वार 18 साल तक बंद हो जायेंगें।
वैसे तो जब भक्त का बुलावा भगवान करते हैं तो वह दुर्गम से दुर्गम स्थल पर भी पंहुच जाता है और जब उसकी मर्जी नहीं होती तो आंखों के सामने होते हुए भी प्राणी अंदर प्रवेश नहीं कर सकता। जगन्नाथ पुरी पंहुचने के लिये रेल, सड़क वायु किसी भी मार्ग से देश के किसी भी हिस्से से आसानी से पंहुचा जा सकता है।
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