शंख हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र माना जाता है। जैसे इस्लाम में अज़ान देकर अल्लाह या खुदा का आह्वान किया जाता है उसी तरह हिंदूओं में शंख ध्वनि से भी देवताओं का आह्वान किया जाता है। अगहन मास यानि कि मार्गशीर्ष के महीने में शंख की विशेष रूप से पूजा की जाती है। शंख की पूजा का महत्व क्या है? हमारे इस लेख को पढ़ने के बाद आप अच्छी तरह से जान जायेंगें तो आइये जानते हैं क्यों की जाती है अगहन मास में शंख की पूजा और कैसे हुई इसकी उत्पति?
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए। इन्हीं रत्नों में से एक हैं शंख। वहीं विष्णु पुराण में शंख को माता लक्ष्मी का सहोदर भाई भी बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सृष्टि आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु आग से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है। शंख की उत्पति इन सभी से मानी जाती है।
मान्यता यह भी है कि संदीपन ऋषि को गुरु दक्षिणा देने के लिये भगवान श्री कृष्ण ने उनके कहने पर समुद्र तट पर शंखासुर को मार गिराया। उसे मारने के बाद उसके शरीर का खोल बच गया। मान्यता है कि उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। मान्यता यह भी है कि यही पांचजन्य शंख था।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार शंखासुर नामक असुर का वध करने के लिये भगवान विष्णु ने मस्त्यावतार धारण किया था। शंखासुर के मस्तक तथा कनपटी की हड्डी का प्रतीक ही शंख बताया गया है। इससे निकला स्वर सत की विजय का प्रतिनिधित्व भी करता है। इसलिये युद्ध के आरंभ और समाप्ति शंखनाद भी किया जाता है।
पुराणों में एक और कथा मिलती है इसके अनुसार श्री राधा के श्राप के कारण कृष्ण भक्त सुदामा को शंखचूर्ण नामक असुर के रूप में जन्म लेना पड़ा। शंखचूर्ण पर विष्णु का दिये रक्षा कवच और पत्नी तुलसी (वृंदा) के पतिव्रता धर्म के कारण विजय पाना किसी के वश में नहीं था। स्वयं भगवान शिव भी उनका वध करने में सक्षम नहीं थे। इसके बाद विष्णु ने ब्राह्मण का वेश धारण कर शंखचूर्ण से दान में रक्षा कवच मांग लिया और फिर शंखचूर्ण का वेश धारण कर उसकी पत्नी तुलसी का शील भंग किया। यह होने के बाद भगवान शिव ने अपने त्रिशूल के प्रहार से शंखचूर्ण का वध किया। शंखचूर्ण की जो अस्थियां समुद्र में गिरी कहते हैं उन्हीं से शंख की उत्पत्ति हुई। तुलसी के श्राप के कारण भगवान विष्णु को शालीग्राम बनना पड़ा। इसी कारण शंख और तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय माने जाते हैं। भगवान विष्णु पर शंख से जल और तुलसी अर्पित करना इसी कारण ही शुभ माना जाता है।
शंख की ध्वनि को ॐ के उच्चारण के रूप में महसूस किया जा सकता है। शंख की यही ध्वनि नाद कही जाती है मान्यता है कि सृष्टि के आदि और अंत में केवल नाद ही मौजूद रहता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हर देवता का अपना अलग शंख होता है। मुख्य तौर पर शंख तीन प्रकार के होते हैं वामावृति, मध्यावृति और दक्षिणावृति। वामावृति शंख भगवान विष्णु का माना जाता है तो दक्षिणावृति शंख माता लक्ष्मी का माना जाता है।
अगहन मास जिसे मंगसर भी कहा जाता है, का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। मान्यता है कि सतयुग की शुरुआत इसी महीने से हुई थी। यह महीना भगवान श्री कृष्ण यानि की विष्णु भगवान की पूजा का माह माना जाता है। मान्यता है कि इस माह में शंख की पूजा करने से तमाम दुख दूर हो जाते हैं और सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है। घर हो या दफ्तर शंख को स्थापित करने से समृद्धि मिलती है और विधि विधान से शंख पूजा करने पर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नकारात्मकता दूर होती है और आस-पास का वातावरण सकारात्मक होने लगता है। लक्ष्मी पूजन के लिये अगहन मास में गुरुवार का दिन बहुत शुभ माना जाता है इस दिन दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करने से जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं रहती। शंख पूजा के लिये प्रात: काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पटिए पर एक पात्र में शंख रखें, अब उसे कच्चे दूध और जल से स्नान कराएं, स्वच्छ कपड़े से उसे साफ करें और उस पर चांदी का वर्क लगाएं। इसके बाद घी का दीया और अगरबत्ती जलायें। फिर शंख पर दूध-केसर के मिश्रित घोल से श्री एकाक्षरी मंत्र लिखें व उसे चांदी अथवा तांबे के पात्र में स्थापित करें। अब
त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे| निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते||
तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:| शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते||
इस मंत्र का जप करते हुए कुंमकुंम, अक्षत व इत्र आदि अर्पित करके सफेद पुष्प चढ़ाएं व नैवेद्य का भोग लगाकर पूजा संपन्न करें।
शंख पूजा के लिये सामग्री के रूप में शंख, कुंमकुंम, चावल, जल का पात्र, कच्चा दूध, एक स्वच्छ कपड़ा, शंख रखने के लिये एक तांबे या चांदी का पात्र, सफेद पुष्प, इत्र, कपूर, केसर, अगरबत्ती, दीया लगाने के लिए शुद्ध घी, भोग के लिए नैवेद्य, चांदी का वर्क आदि।
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